नववर्षारंभदिन (चैत्र शु. प. प्रतिपदा) का संदेश !
चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के शुभमुहूर्त पर नववर्ष का संकल्प किया जाता है । इसलिए हिन्दुआें के धर्मजीवन में इस त्यौहार का अनन्यसाधारण महत्त्व है । आगामी काल भीषण है तथा वर्तमान में देश एवं धर्म से संबंधित घटनेवाली घटनाआें से उसके स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं । आज देशविरोधी और धर्मविरोधी बोलने को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहा जा रहा है ।
राजनीतिक पक्षों द्वारा हिन्दुआें की हत्याएं तथा उन पर बढते अत्याचारों की उपेक्षा की जा रही है तथा दूसरी ओर धर्मांध अहिन्दुआें का उदात्तीकरण किया जा रहा है। परिणामस्वरूप आनेवाले काल में इस देश में देशप्रेमी विरुद्ध देशद्रोही तथा धर्मप्रेमी विरुद्ध धर्मद्रोही ऐसे दो प्रकार का धु्रवीकरण होगा । ऐसे संकटकाल में देशभक्त हिन्दुआें को धर्म के पक्ष में खडा रहना आवश्यक है; क्योंकि आगामी काल का यह संघर्ष पूर्णतः धर्म विरुद्ध अधर्म होनेवाला है । आज देशहित का कार्य करनेवाले बडे संगठन अधर्म को उत्तेजित करनेवाली भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं । इन संगठनों को भी यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि धर्मविरोधी भूमिका का निर्वहन करने से कल वे भी अधर्म के पक्ष में होंगे । यतो धर्मस्ततो जयः।, अर्थात जहां धर्म होता है, वहां विजय होती है । यह धर्मवचन है । इसलिए इस धर्मसंघर्ष में जो धर्म के पक्ष में नहीं होंगे, उनकी रक्षा धर्म अर्थात ईश्वर नहीं करेंगे; परिणामस्वरूप उनका नाश अटल है । इसलिए हिन्दुआें को आनेवाले काल में स्वयं के भीतर धर्म के पक्ष में खडे रहने की पात्रता निर्माण करनी चाहिए । सनातन धर्म का आचरण करना तथा उसमें निहित सिद्धांत, परंपरा तथा उनका वहन करनेवाले संतों पर श्रद्धा रखने से ही सामान्य हिन्दुआें में धर्म के पक्ष में खडे रहने की पात्रता निर्माण होगी । हिन्दुओ, नववर्षारंभदिन के शुभावसर पर ऐसी पात्रता निर्माण करने की सिद्धता करें !
– (परात्पर गुरु) डॉ.जयंत बाळाजी आठवले, संस्थापक, सनातन संस्था.