सारणी
१. होली का त्यौहार
देश-विदेशमें मनाया जानेवाला होलीका त्यौहार रंगोंके साथ उत्साह तथा आनंद लेकर आता है । इसे विभिन्न प्रकारसे ही सही; परंतु बडी धूमधामसे मनाया जाता है । सबका उद्देश्य एक ही होता है, कि आपसी मनमुटावोंको त्यागकर मेलजोल बढे !
२. होली की रचना का सूक्ष्म-चित्र
२ अ. होली की रचना करते समय वहां उपस्थित व्यक्तियोंद्वारा की गई भावपूर्ण प्रार्थना एवं नामजप के कारण होली में प्रार्थना एवं नामजप का वलय निर्माण होता है ।
२ आ. होली की रचना भावपूर्ण रीतिसे करने के कारण होली में भाव का वलय निर्माण होता है ।
२ इ. भावपूर्ण रीतिसे प्रार्थना एवं नामजप करते हुए, ईश्वरीय सेवा समझकर होली की रचना करनेसे प्रार्थना एवं नामजप (कणोंके रूप में) ईश्वर तक पहुंचते है ।
२ ई. ईश्वरीय चैतन्य का प्रवाह होली में आकृष्ट होता है ।
२ उ. होली की रचना में निर्माण हुई सात्त्विकता के कारण उस में शक्ति का कार्यरत वलय निर्माण होता है ।
२ ऊ. इस कार्यरत शक्ति का प्रवाह होली के मध्य में खडे किए गए गन्ने की ऊपरी नोंक तक प्रवाहित होता है और वहां पर इस शक्ति एवं चैतन्य के कार्यरत वलय निर्मित होते हैं ।
२ ए. होली की रचना में चैतन्य का वलय कार्यरत होता है एवं उस वलय से चैतन्य के कण वातावरण में प्रक्षेपित होते है ।
२ ऐ. होली से प्रक्षेपित शक्ति एवं चैतन्य के कारण वातावरण में विद्यमान अनिष्ट शक्तियोंको कष्ट होता है और वे होली के मध्य में खडे गन्ने के पत्तोंपर आक्रमण करती हैं । इस आक्रमण के कारण पत्तोंसे काली शक्ति का प्रसारण होता है एवं कष्टदायक स्पंदनोंका प्रक्षेपण होता है । पूजा आरंभ करनेसे अनिष्ट शक्तियां धीरे-धीरे दूर जाने लगती हैं तथा होलीमें अग्नि प्रज्वलित होनेक उपरांत अनिष्ट शक्तियां अस्वस्थ होकर तीव्र गतिसे दूर चली जाती हैं ।
३. भावपूर्ण रीतिसे होली का पूजन करनेसे
सूक्ष्म स्तर पर क्या परिणाम होता है ?
होली पूजन के समय पूजक एवं पुरोहित दोनोंपर होनेवाले परिणामोंके विषय में जानेंगे ।
३ अ. होलीपूजन के समय दोनोंकी ओर ईश्वरीय चैतन्य का प्रवाह आकृष्ट होता है । जिनका लाभ पूजा अच्छी प्रकारसे होने के लिए होता है ।
३ आ. मंत्रपठन करते समय दोनोंका ईश्वरसे सायुज्य होता है । इससे मंत्रपठन भावपूर्ण होने के लिए ईश्वरीय शक्ति का प्रवाह उनकी ओर आकृष्ट होता है । इसके कारण पूजाविधि के लिए भी शक्ति प्राप्त होती है ।
३ इ. होली की पूजा करते समय पूजक एवं पुरोहित दोनोंके आज्ञाचक्र के स्थानपर एकाग्रता एवं सेवाभाव का गोला निर्माण होता है ।
३ र्इ. पुरोहितद्वारा बताएनुसार पूजक मंत्रोच्चार करता है । इस मंत्रोच्चार के कारण दोनोंके आज्ञाचक्र के स्थानपर मंत्रशक्ति का कार्यरत वलय निर्माण होता है ।
३ उ. पूजा करते समय दोनोंमें भाव का वलय निर्माण होता है ।
३ ऊ. सात्त्विक पुरोहित में प्रार्थना एवं गुरुकृपा का गोला निर्माण होता है । इस कारण वे सेवा कर पाते हैं एवं उन्हें सात्त्विकता का अधिक लाभ प्राप्त होता है ।
३ ए. मंत्रपठन एवं होली में प्रयुक्त उचित प्रकार के वृक्षोंकी लकडियोंके कारण सात्त्विक पुरोहित में शक्ति का वलय कार्यरत होता है एवं उससे वातावरण में शक्ति का प्रवाह प्रक्षेपित होता है ।
३ एे. दोनोंके देह की शुद्धि होती है एवं उनके सर्व ओर ईश्वरीय शक्ति का सुरक्षाकवच निर्माण होता है ।
३ आे. पूजा में निर्माण हुई शक्ति के कारण होली के सर्व ओर भूमि के समांतर शक्ति का एवं चैतन्यका वलय निर्माण होता है ।
४. पूजाविधि के उपरांत होली प्रज्वलित करनेसे होनेवाले परिणाम
४ अ. होली प्रज्वलित करने के लिए पूजकद्वारा हाथ में लिए प्रदिप्त अर्थात जलते हुए कर्पूर में तेजतत्व का वलय निर्माण होता है । उससे चमकीले कण वातावरण में प्रक्षेपित होते है ।
४ आ. अग्निद्वारा शक्ति का वलाय निर्माण होता है तथा उससे शक्ति की तरंगे होली की रचना की ओर प्रक्षेपित होती है ।
४ इ. प्रदिप्त कर्पूर में मंत्रशक्ति का वलाय भी निर्माण होता है तथा उसकेद्वारा मंत्रशक्ति की तरंगें होली की ओर प्रक्षेपित होती है ।
४ ई. मंत्रशक्ति की बाहरी ओर चैतन्य का वलय निर्माण होता है । उससे होली की रचना की ओर चैतन्य की तरंगोंका प्रक्षेपण होता है ।
४ उ. होली प्रदीपन करते समय अग्नि में विद्यमान शक्ति प्रवाह के रूप में पूजक को प्राप्त होती है ।
४ ऊ. पूजकके चारों ओर तेजतत्त्व, शक्ति एवं चैतन्य का सुरक्षाकवच निर्माण होता है ।
४ ए. होली की रचना में सगुण शक्ति एवं सगुण चैतन्य के वलय निर्माण होते हैं । इन वलयोंद्वारा शक्ति तथा चैतन्य के प्रवाहोंका वातावरण में प्रक्षेपण होता है । कुछ मात्रा में शक्ति के वलयोंका भी वातावरण में प्रक्षेपण होता है । यह प्रक्षेपण आवश्यकता के अनुसार कभी तीव्र गतिसे, तो कभी धीमी गतिसे होता है ।
४ ऐ. होली में अग्नि प्रदीप्त करते समय बीच में रखे गन्ने की ऊपरी नोंक में ईश्वरीय शक्ति एवं चैतन्य के प्रवाह आकृष्ट होते हैं । इन प्रवाहोंद्वारा शक्ति एवं चैतन्य के कार्यरत वलय निर्माण होते हैं । इन वलयोंद्वारा वातावरण में शक्ति एवं चैतन्य के प्रवाह प्रक्षेपित होते हैं ।
४ ओ. इन कार्यरत वलयोंद्वारा चैतन्य का सर्पिलाकार प्रवाह होली की रचना की ओर आकृष्ट होता है । वातावरण मे शक्ति के समांतर वलय उर्ध्व दिशा में प्रसारित होते हैं ।
४ औ. शक्ति एवं चैतन्य के भूमिसे समांतर वलय अधो दिशा में प्रसारित होते हैं । शक्ति एवं चैतन्य का प्रक्षेपण उर्ध्व तथा अधो दिशा में होनेसे सभी दिशाओंकी अनिष्ट शक्तियां दूर होती हैं । होली से तेजत्वात्मक मारक शक्ति के कण वातावरण में प्रक्षेपित होते है । इससे वातावरण में विद्यमान अनिष्ट शक्तियां नष्ट होती हैं । इस शक्ति के कारण वहां उपस्थित व्यक्तियोंपर आध्यत्मिक उपाय होते हैं ।
संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत’