देवीमाहात्म्य, शक्तिपीठ दर्शन और अध्यात्मशास्त्र
उज्जैन, मध्य प्रदेश के प्रमुख मंदिरों में श्री हरसिद्धि देवी मंदिर की गणना होती है । यह देवी राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी थीं । प्राचीन काल में यह देवी मांगलचाण्डिकी के नाम से जानी जाती थीं । गढकालिका देवी के समान ही यहां के मंदिर में महालक्ष्मी और महासरस्वती देवी की मूर्तियों के मध्यभाग में श्री हरसिद्धि देवी की सिंदूरलेपित मूर्ति है । तांत्रिक परंपरा में इस स्थान को सिद्धपीठ माना जाता है । शिवपुराण के अनुसार यह ५१ शक्तिपीठों में से एक है और यह मंदिर ऊर्जा का बडा स्रोत है । सती के हाथ की कोहनी इस स्थान पर गिरी थी । स्कंदपुराण के अनुसार चण्ड और मुण्ड, इन दैत्यों का संहार करने के कारण यह देवी हरसिद्धि के नाम से प्रसिद्ध हुईं । यहां पर भैंस की बलि देने की प्रथा है ।
श्री हरसिद्धि माता के चरणों में ११ बार स्वयं का शीश अर्पण करनेवाले राजा विक्रमादित्य !
उज्जैन के सम्राट राजा विक्रमादित्य बुद्धि, पराक्रम और उदारता के गुणों के लिए जाने जाते थे । विक्रमादित्य के नाम से विक्रम संवत चल रहा है । प्रत्येक अमावस्या को राजा विक्रमादित्य श्री हरसिद्धि देवी के मंदिर में विशेष पूजा करते थे । राजा के मन में देवी के प्रति अगाध भक्ति होने से राजा ने अपना शीश काटकर माता के चरणों में अर्पण किया । तब देवी ने विक्रमादित्य का शीश पुन: जोडा । इस प्रकार ११ बार राजा विक्रमादित्य ने देवी के चरणों में स्वयं का शीश अर्पण किया था ।
मंदिर का इतिहास
तेरहवीं सदी के कुछ ग्रंथों में इस मंदिर का उल्लेख है; परंतु वर्ष १४४७ में मराठों ने वर्तमान मंदिर का निर्माण किया है । मंदिर के पूर्व में महाकाल मंदिर और पश्चिम में रामघाट है । मंदिर परिसर में मराठा शैली के २ दीपस्तंभ हैं । नवरात्रि के समय यहां अनेक दीप लगाए जाते हैं । इससे मंदिर का परिसर प्रकाशमान हो जाता है । मंदिर में देवी के गर्भगृह के सामने के सभामंडप में देवी का यंत्र है । परिसर में ८४ महादेवों में से कर्कोटेश्वर महादेव का मंदिर और अन्य कुछ देवताओं के मंदिर हैं । मंदिर के भीतर घुमट पर महात्रिपुर सुन्दरी, शिवकामेश्वरी काल्था शिवा, षोडशी महानित्या, इन देवियों और उनसे संबंधित अन्य देवियों के सुंदर चित्र बने हैं । चैत्र और आश्विन माह की नवरात्रि की अवधि में मंदिर में उत्सव मनाया जाता है ।
संदर्भ : जालस्थल – सिंहस्थ उज्जैन, पत्रिका
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