सारणी
१. होली की एक पुरुष जितनी ऊंचाई होना क्यों आवश्यक है ?
२. होली के बीच में खडा करनेके लिए विशिष्ट पेडोंका ही उपयोग क्यों किया जाता है ?
३. होली की रचना में गाय के गोबर से बने उपलोंके उपयोग का महत्त्व
४. होलिका-पूजन एवं प्रदीपन करने के लिए आवश्यक सामग्री
१. होली की एक पुरुष जितनी ऊंचाई होना क्यों आवश्यक है ?
१ अ. होलीके कारण साधारणतः मध्य वायुमंडल एवं भूमिके पृष्ठभागके निकटका वायुमंडल शुद्ध होनेकी मात्रा अधिक होती है ।
१ आ. होलीकी ऊंचाई एक पुरुष जितनी बनानेसे होलीद्वारा प्रक्षेपित तेजकी तरंगोंके कारण ऊर्ध्वदिशाका वायुमंडल शुद्ध बनता है । तत्पश्चात् यह ऊर्जा जडता धारण करती है एवं मध्य वायुमंडल तथा भूमिके पृष्ठभागके निकटके वायुमंडलमें घनीभूत होने लगती है । इसी कारणसे होलीकी ऊंचाई साधारणतः पांच-छः फुट होनी चाहिए । इससे शंकुस्वरूप रिक्तिमें तेजकी तरंगें घनीभूत होती हैं एवं मध्यमंडलमें उससे आवश्यक ऊर्जा निर्मित होती है ।
२. होली के मध्य में खडा करने के लिए
विशिष्ट पेडों का ही उपयोग क्यों किया जाता है ?
२ अ. होली की रचना करते समय मध्यस्थानपर गन्ना,
अरंड तथा सुपारी के पेड का तना खडा करने का आधारभूत शास्त्र
गन्ना : गन्ना भी प्रवाही रजोगुणी तरंगोंका प्रक्षेपण करनेमें अग्रसर होता है । इसकी समिपताके कारण होलीमें विद्यमान शक्तिरूपी तेजतरंगें प्रक्षेपित होनेमें सहायता मिलती है । गन्नेका तना होलीमें घनीभूत हुए अग्निरूपी तेजतत्त्वको प्रवाही बनाता है एवं वायुमंडलमें इस तत्त्वका फुवारेसमान प्रक्षेपण करता है । यह रजोगुणयुक्त तरंगोंका फुवारा परिसरमें विद्यमान रज-तमात्मक तरंगोंको नष्ट करता है । इस कारण वायुमंडलकी शुद्धि होनेमें सहायता मिलती है ।
अरंड : अरंडसे निकलनेवाले धुएंके कारण अनिष्ट शक्तियोंद्वारा वातावरणमें प्रक्षेपित की गई दुर्गंधयुक्त वायु नष्ट होती है ।
सुपारी : मूलतः रजोगुण धारण करना यह सुपारीकी विशेषता है । इस रजोगुणकी सहायतासे होलीमें विद्यमान तेजतत्त्वकी कार्य करनेकी क्षमतामें वृद्धि होती है ।
३. होली की रचना में गाय के गोबर से
बने उपलोंके उपयोग का महत्त्व
गायमें ३३ करोड देवताओंका वास होता है । इसका अर्थ है, ब्रह्मांडमें विद्यमान सभी देवताओंके तत्त्वतरंगोंको आकृष्ट करनेकी अत्यधिक क्षमता गायमें होती है । इसीलिए उसे गौमाता कहते हैं । यही कारण है कि गौमातासे प्राप्त सभी वस्तुएं भी उतनी ही सात्त्विक एवं पवित्र होती हैं । गोबरसे बनाए उपलोंमें से ५ प्रतिशत सात्त्विकताका प्रक्षेपण होता है, तो अन्य उपलोंसे प्रक्षेपित होनेवाली सात्त्विकताका प्रमाण केवल २ प्रतिशत ही रहता है । अन्य उपलोंमें अनिष्ट शक्तियोंकी शक्ति आकृष्ट होनेकी संभावना भी होती है । इससे व्यक्तिकी ओर कष्टदायक शक्ति प्रक्षेपित हो सकती है । कई स्थानोंपर लोग होलिका पूजन षोडशोपचारोंके साथ करते हैं । यदि यह संभव न हो, तो न्यूनतम पंचोपचार पूजन तो अवश्य करना चाहिए ।
४. होलिका-पूजन एवं प्रदीपन हेतु आवश्यक सामग्री
पूजाकी थाली, हल्दी-कुमकुम, चंदन, फुल, तुलसीदल, अक्षत, अगरबत्ती घर, अगरबत्ती, फुलबाती, निरांजन, कर्पूर, कर्पूरार्ती, दियासलाई अर्थात मॅच बाक्स्, कलश, आचमनी, पंचपात्र, ताम्रपात्र, घंटा, समई, तेल एवं बाती, मीठी रोटीका नैवेद्य परोसी थाली, गुड डालकर बनाइ बिच्छूके आकारकी पुरी अग्निको समर्पित करनेके लिए.
४ अ. सूर्यास्तके समय पूजनकर्ता शूचिर्भूत होकर होलिका पूजनके लिए सिद्ध हों ।
४ आ. पूजक पूजास्थानपर रखे पीढेपर बैठें ।
४ इ. उसके पश्चात आचमन करें ।
४ ई. अब होलिका पूजनका संकल्प करें ।
‘काश्यप गोत्रे उत्पन्नः विनायक शर्मा अहं । मम सपरिवारस्य श्रीढुंढाराक्षसी प्रीतिद्वारा तत्कर्तृक सकल पीडा परिहारार्थं तथाच कुलाभिवृद्ध्यर्थंम् । श्रीहोलिका पूजनम् करिष्ये ।’
अब चंदन एवं पुष्प चढाकार कलश, घंटी तथा दीपपूजन करें । तुलसीके पत्तेसे संभार प्रोक्षण अर्थात पूजा साहित्यपर प्रोक्षण करें । अब कर्पूरकी सहायतासे होलिका प्रज्वलित करें । होलिकापर चंदन चढाएं । होलिकापर हल्दी चढाएं । कुमकुम चढाकर पूजन आरंभ करें ।
४ उ. अब पुष्प चढाएं ।
४ ऊ. उसके उपरांत अगरबत्ती दिखाएं ।
४ ए. तदुपरांत दीप दिखाएं ।
४ ऐ. होलिकाको मीठी रोटीका नैवेद्य अर्पित कर प्रदीप्त होलीमें निवेदित करे । दूध एवं घी एकत्रित कर उसका प्रोक्षण करे। होलिकाकी तीन परिक्रमा लगाएं । परिक्रमा पूर्ण होनेपर मुंहपर उलटे हाथ रखकर ऊंचे स्वरमें चिल्लाएं । गुड एवं आटेसे बने बिच्छू आदि कीटक मंत्रपूर्वक अग्निमें समर्पित करे । सब मिलकर अग्निके भयसे रक्षा होने हेतु प्रार्थना करें ।
४ ओ. कई स्थानोंपर होलीके शांत होनेसे पूर्व इकट्ठे हुए लोगोंमें नारियल, चकोतरा (जिसे कुछ क्षेत्रोमें पपनस कहते हैं – नींबूकी जातिका खट्टा-मीठा फल) जैसे फल बांटे जाते हैं । कई स्थानोंपर सारी रात नृत्य-गायनमें व्यतीत की जाती है ।
संदर्भ : सनातनका ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत’