भारत को ऋषिमुनियों की महान परंपरा प्राप्त है । ऋषिमुनियों द्वारा लिखे गए वेद, उपनिषद पुराण आदि ग्रंथ मनुष्य को सर्वांगीण ज्ञान प्रदान करते हैं । उनमें मनुष्य के लिए आचारधर्म, उपासना, साधना, संरक्षण आदि सभी विषय अंतर्भूत हैं । ऋषिमुनियों को यह ज्ञान उनके तपोबल के कारण अर्थात आध्यात्मिक सामर्थ्य से प्राप्त हुआ । उन्हें साधना में जब पूर्णत्व प्राप्त हुआ, तब उन्हें ईश्वर से यह ज्ञान मिलाल । इस अमूल्य ज्ञान के कारण मनुष्य को उनके प्रति कृतज्ञता प्रतीत होनी चाहिए !
प्राचीन काल में भारत में ऋषिमुनियों के आश्रम विश्वविद्यालय ही थे । भारद्वाजमुनी एवं दुर्वासऋषी के आश्रम में एक ही समयपर १० सहस्र छात्र शिक्षा हेतु निवास करते थे । द्वापरयुग में सांदीपनी ऋषी का आश्रम शिक्षा का बडा केंद्र था । महाभारत के युद्ध के पश्चात तक्षशिला, नालंदा आदि विश्वविद्यालय भारत में बने थे । ऋषिमुनियों ने केवल ज्ञान ही प्राप्त नहीं किया, साथ में इस प्रकार से ज्ञानदान का कार्य भी किया । उस समय लेखन की बहुत सामग्री उपलब्ध न होने से शिष्य ऋषियों से प्राप्त ज्ञान को मुखोद्गत करते थे । इस प्रकार यह ज्ञान वृद्धिंगत होता गया और वर्षोंतक टिका रहा । लाखों वर्ष पूर्व लिखे हुए ये ग्रंथ आज भी कुछ मात्रा में टिके हुए हैं, वह केवल उनमें प्रदत्त शाश्वत रूप में विद्यमान ज्ञानसामर्थ्य और चैतन्य के कारण ही ! इसी के अंतर्गत केरल के प्रसिद्ध गणिती माधवम् के महान कार्य की जानकारी लेने हेतु हम त्रिशूर गए थे ।
१. केरल राज्य के संगमग्राम गांव में वर्ष १३५० में कार्यरत प्रसिद्ध गणिति माधवम् !
केरल राज्य के त्रिशूर जनपद में संगमग्राम नामक एक गांव है, जो अब इरनालक्कुडा नाम से जाना जाता है । इस गांव में वर्ष १३५० में माधवम् नामक एक प्रसिद्ध गणिति थे । इस गांव में माधवम् जहां रहते थे, उस स्थान का महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोधकार्य विभाग के कुछ साधकों ने अवलोकन किया । तब उनके वंशज श्री. राजकुमार नंवसरी ने माधवम् और श्रीकृष्ण मंदिर के संदर्भ में जानकारी दी ।
२. माधवम् द्वारा भूमिति के पाई की संख्या को पूर्णांक के पश्चात
१६ अंकोंतक निर्धारित कर गणितशास्त्र में दिया हुआ बहुत बडा योगदान !
माधवम् को केरल विद्यालय के खगोलशास्त्र एवं प्राचीन गणितशास्त्र का संस्थापक माना जाता है । माधवम् ने भूमिति के पाई की संख्या (वृत्त के परीघ की लंबाई नापते समय कल्पित स्थिरांक अथवा अव्यय राशि का अर्थ है पाई, परिघ की लंबाई = व्यास ÷ पाई) पूर्णांक के पश्चात १६ अंकोंतक (१६ अपूर्णांक) निर्धारित कर गणितीयशास्त्र में बहुत बडा योगदान दिया था । माधवम् इरनालक्कुला के श्रीकृष्ण मंदिर के पुजारी थे । वे वहांपर स्थित २ शिलाओं पर लेटकर आकाश का निरीक्षण करते थे ।१ उन्होंने तारों के निरीक्षण के आधारपर गणित के कई महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों का अविष्कार किया । इन दोनों शिलाओं को कृष्णशिला कहते हैं ।
३. भारतीयों द्वारा माधवम् ने किए गए
शोधकार्य की अक्षम्य उपेक्षा करने से जेजुईट मिशनरी के
प्रचारकों को भारत के अमूल्य गणितशास्त्र को विदेश ले जाना संभव होना
माधवम् ने अपना कुछ शोधकार्य देवनागरी एवं पुराने मलयालम् भाषाओं में मंदिर की शिलाओंपर अंकित किए हैं । उसपर शोधकार्य होना अभी शेष है । एक प्रसिद्ध गणिति होते हुए भी भारत में उनके संदर्भ में शोधकार्य तो दूर ही; किंतु उनके द्वारा अविष्कारित गणितशास्त्र के अमूल्य गणित की जानकारी का जतन करने में भारतीय असमर्थ रहे । माधवम् द्वारा शिलाओंपर लेटकर किए गए शोधकार्य के लेखन के ८ ग्रंथ थे । इन ग्रंथों में गणित के संबंध में अमूल्य जानकारी लिखकर रखी गई थी; किंतु जेजुईट मिशनरी के प्रषसारक उन्हें विदेश ले गए । अब विदेश में केरला मैथेमैटिक्स सिखाया जाता है । न्यूटन, गैलीलियो आदि द्वारा बताए गए सिद्धांतों में से कई सिद्धांत उनसे ३०० वर्ष पूर्व माधवम् ने लिखकर रखे थे । केरला स्कूल ऑफ मैथेमैटिक्स में माधवम् के सिद्धांत सिखाए जाते हैं; किंतु माधवम् ने जहां शोधकार्य किया, उस श्रीकृष्ण मंदिर के संदर्भ में कहीं बताया नहीं जाता ।
इस प्रकार से भारत का सोने से भी अमूल्य ज्ञानरूपी वैभव भारत से मिट गया ।