हे हिन्दू नारी, धर्माचरण से है तुम्हारी पहचान ! अबला नहीं, तुम हो रणरागिणी !

पाश्चात्यों के अंधानुकरण से भारतीय परिवार की दुर्दशा !

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१. आज की नारी न पाश्चात्य और न ही भारतीय !

      वर्तमान शिक्षाप्रणाली से सुशिक्षित स्त्रियों में प्रगल्भता की अपेक्षा अत्यंत आत्मकेंद्रित भावना उत्पन्न हो रही है । शालीनता, स्त्री का सबसे बडा आभूषण है; परंतु अधिकतर सुशिक्षित स्त्रियों ने इसका त्याग कर दिया है । उनकी ऐसी धारणा बन गई है कि इस आभूषण से उनकी आधुनिक विचारधारा को ठेस पहुंचेगी ।
पाश्‍चात्यों के अंधानुकरण से आज की नारी न तो पाश्‍चात्य है और न ही भारतीय । धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का, ऐसी उसकी स्थिति हो गई है । आज की भारतीय नारी ने पाश्चात्य संस्कृति का जो त्याज्य भाग है, उसे अपनाया है और भारतीय संस्कृति का जो स्वीकार्य भाग है, उसका त्याग कर दिया है ।

२. परस्पर आत्मीयता के अभाव के कारण घर का अतिथिगृह बन जाना

      उपलब्ध सुख-सुविधाओं के कारण नहीं, अपितु घर के प्रत्येक व्यक्ति को एक-दूसरे के प्रति आत्मीयता के कारण घर, घर (परिवार) होता है । आज सुखी और समृद्ध परिवारों में सर्वत्र आत्मीयता का अभाव दिखता है। इसलिए उनके घर सर्व सुख-सुविधाओं से युक्त लॉजिंग एंड बोर्डिंग हाऊस (अतिथिगृह) बन गए हैं । – श्री. ग.य. धारप (संदर्भ : मासिक प्रज्वलंत, मई १९९९)

३. धर्मपालन न करना

वर्तमान युग की अनेक स्त्रियों को अत्याचार, छेडछाड, बलात्कार जैसी घटनाओं का सामना करना पडता है । चलचित्र हो अथवा कोई भी विज्ञापन हो, उसमें स्त्री को भोगवादी अथवा शोभा की वस्तु जैसा ही स्वरूप दिया जाता है । धर्मपालन न करना और उससे स्वेच्छाचार फैलना, यही इन सभी के पीछे का कारण है । आधुनिकता का ढोंग करनेवाली स्त्री को धर्मपालन करना अर्थात बचकानी प्रथा-परंपरा का पालन करना लगता है । बंधन तोडते हुए इससे होनेवाले परिणामों का उन्हें तिलमात्र भी बोध नहीं होता ।

 

४. काल की आवश्यकता

स्त्रियों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण अलंकार भी उसे चैतन्य और शक्ति प्रदान करते है; परंतु वर्तमान काल की स्त्रियों ने अलंकार परिधान करना भी छोड दिया है । विवाहित स्त्री हेतु महत्त्वपूर्ण मंगलसूत्र भी अनेक स्त्रियां नहीं पहनती । इसके पीछे ‘स्त्रियां ही क्यों मंगलसूत्र पहनें, पुरुष क्यों नहीं पहनते ?’, ऐसा उदंड विचार अंतर्भूत होता है । शालीन
और कुलीन स्त्रियों के मन में ऐसा विचार कभी नहीं आएगा । आधुनिक स्त्री काल, समय, सभी बंधनों से मुक्त होने का प्रयास कर रही है । इसलिए अलंकारों का शास्त्र भी उसे समझ में नहीं आता । वास्तव में स्त्री भगवान द्वारा निर्मित सर्वाेत्कृष्ट कलाकृति है । अपने सद्गुणों के कारण ही वह भारतीय संस्कृति की रक्षा कर सकती है । अहिल्या, द्रौपदी, तारा, मंदोदरी, सीता, गार्गी, मैत्रेयी जैसी स्त्रियों ने नम्रता सहित कर्तव्यनिष्ठा की भावना संवर्धित कर भारतीय संस्कृति का संरक्षण किया है । जीजामाता, रानी लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगनाओं ने भी मातृभूमि हेतु युद्ध किए । वर्तमान काल की स्त्रियों को पहले की इन महान स्त्रियों का अनुकरण करना चाहिए । वैसा करने पर ही उनका जीवन सार्थक होगा । स्त्री ने स्वयं की आत्मशक्ति जागृत करना और देश के उद्धार हेतु प्रतिबद्ध होना, यही काल की आवश्यकता है ।

 

५. हिन्दू राष्ट्र की स्त्री आदर्श और आदरणीय होगी !

‘हिन्दू राष्ट्र की स्त्री प्रत्येक धर्मपरायण हिन्दू के लिए माता और भगिनी समान आदरणीय होगी । हिन्दू राष्ट्र में धर्मद्रोही, वासनांध और व्यभिचारी मनुष्य को कठोर दंड दिया जाएगा, उनका स्थान कारागृह में होगा । हिन्दू राष्ट्र की स्त्री निश्चित रूप से सुरक्षित, आनंदी और उच्चतम आध्यात्मिक स्तर का जीवन अनुभव कर पाएगी, इसमें कोई शंका नहीं । हे हिन्दू नारी, आज विश्व के समस्त राष्ट्रों की स्त्रियों की स्थिति दयनीय है, वे आशा भरी दृष्टि से तुम्हारी ओर देख रही है । कल की नई पीढी आपको आदर्श माता के रूप में देखने के लिए उत्सुक है और आनेवाला समय तुम्हे और केवल तुम्हें ही आदर्श हिन्दू नारी के रूप में देखने के लिए लालायित हुआ है ।

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया: ।

अर्थ : जिस स्थान पर स्त्रियों की पूजा होती है, अर्थात उनका आदर किया जाता है, उस स्थान पर देवता का वास होता है और जिस स्थान पर स्त्रियों को यथोचित सम्मान प्राप्त नहीं होता, वहां सभी काम निष्फल होते हैं ।

६. दया, क्षमा, माया, सहनशीलता, प्रेम एवं भक्ति,
इन गुणों का समुच्चय स्त्री में होना एवं उनके बल पर उसे गृहस्थी की गाडी चलाते आना

‘स्त्री’ शब्द ‘स’, ‘त’ और ‘र’, इन तीन अक्षरों से बना है । ‘स’ अक्षर सत्त्व गुण, साथ ही क्षमा, दया एवं आज्ञापालन, यह लक्षण दर्शाता है ! ‘त’ अक्षर तमोगुण का, साथ ही पाप, भय, दयालुता और लज्जा, इनका प्रतीक है ! ‘र’ यह अक्षर रजोगुण, साथ ही धैर्य, स्वतंत्रता और स्वविवेक बुद्धि से निर्णय लेना दर्शाता है ! इसीलिए स्त्री सामर्थ्यशाली है । दया, क्षमा, माया, सहनशीलता, प्रेम और भक्ति, इन गुणों का समूह स्त्री में होता है । उनके बल पर ही स्त्री गृहस्थी की गाडी चला पाती है; इसलिए स्त्री घर की ‘सम्राज्ञी’ और ‘स्वामिनी’ के रूप में शोभा देती है ।

– श्री. शरद देशपांडे, पुणे, महाराष्ट्र. (संदर्भ : अज्ञात)

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