प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को खुला पत्र
कुछ दिन पूर्व भाजपा नेताओं की मृत्यु के पीछे विरोधकों की ‘मारक शक्ति’ का प्रयोग कारणभूत है !’, ऐसा विधान भाजपा के सांसद साध्वी प्रज्ञासिंह ने किया था । हाल ही में ‘भाजपा के नेताओं की मृत्यु के धाराप्रवाह में अगला क्रमांक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी का होगा’, ऐसी दर्पोक्ति पाकिस्तानी वंश के ब्रिटिश सांसद लॉर्ड नजीर अहमद ने की । तथा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह माओवादियों की ‘रडार’ पर हैं, ऐसा समाचार था । कुल मिलाकर देखें तो वर्तमानमें भारत को अत्युच्च स्थान पर लाने के लिए प्रयास करनेवाले इन राष्ट्रप्रेमी नेताओं के प्राण संकट में हैं । इस संदर्भ में सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस द्वारा लिखा यह खुला पत्र यहां प्रस्तुत है ।
परिवार के किसी व्यक्ति से हम आत्मीय चर्चा करते हैं, इस भाव से यह पत्र लिख रहा हूं । अनुच्छेद ३७० का रहित होना, एक ऐतिहासिक घटना है । भाजपा शासन ने यह कदम उठाया है, उसका प्रत्येक भारतीय को अभिमान है । ‘अनुच्छेद ३७०’ पहले तीन तलाक और मौखिक तलाक रहित किया गया । ऐसा तलाक देनेवाले को अपराध घोषित किया गया । वहां तीन तलाक को ही ‘तलाक’ दिया गया और हमारे शासन द्वारा उसके लिए निकाला गया ‘ऑर्डिनन्स’ पुनः कानून में रूपांतरित किया । अर्थात निरंतर विचारपूर्वक किए गए प्रयासों के कारण यह हुआ । एक ओर असम जैसे राज्यों में नागरिकता के सूत्र पर कार्रवाई आरंभ हुई, जो कदाचित आप अन्य राज्यों में भी आरंभ करनेवाले होंगे, उसका भी स्वागत है ।
दूसरी ओर विरोधक असावधान थे तब अचानक संविधान का अनुच्छेद ‘३७०’ और ‘३५-अ’ संसद में चर्चा के लिए लाया गया । बिखरे और नगण्य हुए विरोधी पक्ष उसका विरोध कर ही नहीं पाए । कांग्रेस के एक सांसद ने तो अपने अकल के ऐतिहासिक तारे तोडे । ‘कश्मीर का प्रश्न अंतर्गत है या २ देशों के बीच का है, यह भाजपा को पहले स्पष्ट करना होगा । यदि अंतर्गत होगा, तो फिर भारत ने कश्मीर से सिमला करार, लाहौर करार क्यों किया ?’, ऐसा हास्यास्पद प्रश्न उपस्थित कर इस सांसद ने अपनी पात्रता दिखा दी । भारत-पाकिस्तान समस्या के अध्ययनकर्ता इस प्रसंग पर हंस रहे होेंगेें ।
तीन तलाक और अनुच्छेद ३७० के उपरांत अब ‘राममंदिर’ सर्वाधिक चर्चा का विषय है । राममंदिर के विषय में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय कोई भी हों, लेकिन यह पुनः एक बार देश और विश्व को हिलाकर रख देखा । ‘सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय कुछ भी हो, अंततः मंदिर निर्माण तो होकर ही रहेगा’, ऐसी योजनाबद्ध तैयारी भी चल रही हो सकती है । यदि ऐसा है तो उसका भी स्वागत ही है । आगे ‘समान नागरिक कानून’ संभावित है । और भी कुछ ऐसे सूत्र चर्चा और निर्णय के मार्ग पर हैं । इसमें अनपेक्षित रूप से हमें चीन संबंधी नीतियां भी निश्चित करनी पडेंगी । हालांकि अब शांति दिखाई देती हो, तो भी इन सूत्रों पर आंतरिक शोले सुलग रहे होंगे ।
एक ऐतिहासिक कालखंड की देहली पर हम खडे हैं । यह इतिहास कैसे लिखा जाएगा, यह नियती तय करेगी । किंतु यह काल प्रचंड धोखाधडी का है । हम सभी को सजग रहना होगा, यह भी स्पष्ट है ।
अपने देश के प्रमुख नेता के विषय में तो यह सावधानी और भी बरतनी होगी । जवाहरलाल नेहरू को लोगों को बहुत प्रेम मिला । अनभिषिक्त सम्राट की भांति उन्होंने शासन किया; परंतु चीन के विषय में हिमालय जैसी चूकों के उपरांत हुई आलोचना की भरमार उनसे सहन नहीं हुई । इससे उनका मनोबल टूट गया और मरणासन्न हो गए ।
वर्ष १९६५ के युद्ध के उपरांत लालबहादुर शास्त्रीजी को देशमें प्रचंड लोकप्रियता प्राप्त हुई थी । भारत-पाकिस्तान दोनों में करार करने के लिए वह रूस गए थे तब बैठकों के काल में ही उस होटल में उनकी संदेहजनक मृत्यु हो गई । इस विषय में हमने कुछ भी नहीं कहा । वह स्पष्ट रूप से कायरता थी । रूस से कितनी भी मित्रता हो, परंतु देश के सर्वोच्च नेता की संदेहजनक मृत्यु पर चुप बैठना सर्वथा अनुचित था ।
स्वर्णमंदिर में सेना घुसी इसलिए इंदिरा गांधी के सुरक्षारक्षक सतवंत सिंह और बियांत सिंह ने गोलियां चलाकर उनके देह को छलनी कर दिया । १० वर्ष के भीतर श्रीलंका में शांतिसेना भेजी इसलिए लिट्टे के सैनिकों ने आत्मघाती बम का उपयोग कर राजीव गांधी के शरीर के चीथडे उडा दिए ।
इस्लामी आतंकवाद की परंपरा हमारे यहां प्राचीन होते हुए भी स्वतंत्रता के पश्चात उसे ऐसा राजनीतिक स्वरूप नहीं आया, जैसा पाकिस्तान में आया है । वहां उनके ही भूतपूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या राजनीति-आतंकवाद, ऐसे दोनों का मिश्रण की ही है । पाकिस्तान का इतिहास ही ऐसे राजनीतिक-आतंकवाद मिश्रित हत्याओं का है ।
ऐसे हत्याकांडों की ओर हमारे देश में विशेष गंभीरता से नहीं देखा गया है । हमारे देश के शोधकर्ता और वैज्ञानिकों की हुई हत्याएं भी आज तक पर्दे के पीछे ही हैं । वास्तव में वह भिन्न विस्तृत विषय है । देश के अनेक चर्चा न किए हुए पन्ने ऐसे राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी हत्याओं से भरे हैं । इसलिए इस पर ध्यान देना ही होगा ।
हत्या की आशंका केवल आपके जैसे किसी नेता के विषय में है ऐसा नहीं; अनेक महत्त्वपूर्ण नेताओं के विषय में भी यह आशंका है । हमारे बताने पर ही यह सुना जाएगा, इस उद्देश्य से यह पत्र नहीं लिखा गया है । आप यह स्थिति जानते हैं और आपने इसपर समाधान भी निकाले होंगे; परंतु रहा नहीं जाता इसलिए यह बताने का साहस किया है ।
नागरिकों की सजगता महत्त्वपूर्ण है । ये युद्ध सरल नहीं हैं । आनेवाले काल में विरोधी प्रचार होता ही रहेगा । २६/११ के आक्रमण के समय अजमल कसाब और उसके साथी मुंबई में हाहाकार मचानेके लिए प्रभादेवी के सिद्धीविनायक के सामने मिलनेवाले लाल धागे हाथ में बांधकर और भारतीय हिन्दू विद्यार्थियों का परिचय पत्र जेब में डालकर थे । कसाब मर गया होता, तो ये सभी आतंकवादी हिन्दू विद्यार्थी घोषित किए गए होते और जांच भी वैसे ही होती । एक तुकाराम ओंबळे के शौर्य से यह षड्यंत्र सामने आया । नहीं तो हिन्दू आतंकवाद की चर्चा की सुनामी लहर पुनः समाचार पत्र और दूरदर्शन वाहिनियों के माध्यम से हम पर टकराई होतीं ।
इस्लामी आतंकवाद के भाग के रूप में पुणे में आतंकवादी आक्रमण होनेवाला था । दगडूशेट हलवाई मंदिर के बाहर कातिल सिद्दीकी ने बम से भरी थैली रखी भी । थैली रखकर वह वहां से निकल रहा था; परंतु वहां बैठे फूलवाले का इस ओर ध्यान था । फूलवाले ने उसे थैली ले जाने के लिए विवश किया । सैकडों प्राण बचे और तनाव भी नहीं बढा । यह सतर्कता आज प्रत्येक नागरिक को बढानी होगी ।
मोदीजी और शाहजी, आपके हाथों में देश का सुरक्षित भविष्य है; इसलिए आपको अपनेआप को संभालना होगा !
आपका विनम्र,
चेतन राजहंस,
राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था.