अनुक्रमणिका
- १. सनातन-निर्मित श्री गणेशजी के सात्त्विक चित्रों
के संबंध में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा बताया गया प्रतिशत
और ‘पिप’ प्रणाली द्वारा उन चित्रों का किया गया परीक्षण एक समान होना
- १ अ. देवता के सात्त्विक चित्रों के निर्मिति की पृष्ठभूमि
- १ आ. श्री गणपति के सात्त्विक चित्र की निर्मिति के चरण
- १ इ. ‘पिप (पॉलीकॉन्ट्रास्ट इंटरफेरन्स फोटोग्राफी)’प्रणाली की सहायता से सनातन-निर्मित श्री गणपति के चित्र के सूक्ष्म स्पंदनों के किए गए अध्ययन में चित्रों में बढते गणेश तत्त्वानुरूप उनके सकारात्मक स्पंदनों की मात्रा बढी हुई दिखाई देना
- १ ई. ‘पिप’ प्रणाली एक सीमा तक सनातन-निर्मित श्री गणपति के चित्रों की सात्त्विकता पहचान पाना तथा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने ‘पिप’ परीक्षण करने से पहले ही ‘गणपति के प्रत्येक चित्र में कितनी सात्त्विकता अर्थात गणेश तत्त्व है ?’,यह अचूक बताया होना
- २. तथाकथित बुद्धिवादियों द्वारा समाज में अध्यात्म से संबंधित फैलाए जा रहे व्यर्थ विकल्पों का भ्रम वैज्ञानिक परीक्षणों के निष्कर्षों से स्पष्ट होना
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने अध्यात्म क्षेत्र में आने से पहले चिकित्सा क्षेत्र में बहुत शोधकार्य किया है । इसलिए उनका अध्यात्मशास्त्र से संबंधित लेखन भी तुलनात्मक सारणियां, प्रतिशत, आलेख आदि शास्त्रीय परिभाषा में होता है, उदा. किसी साधक का आध्यात्मिक स्तर कितने प्रतिशत है, देवता के चित्र में मूल देवता तत्त्व कितने प्रतिशत आकर्षित हो रहा है इत्यादि । इस संबंध में उन्हें सूक्ष्म से विश्वमन, विश्वबुद्धि के माध्यम से जानकारी मिलती रहती है । इस प्रतिशत की सत्यता के संबंध में कुछ बुद्धिजीवी संदेह व्यक्त करते हैं; परंतु प्रत्यक्ष किसी व्यक्ति अथवा वस्तु के संबंध में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा सूक्ष्म से बताया प्रतिशत और कुछ समय पश्चात उस संबंध में आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों के माध्यम से किए प्रयोगों के निष्कर्षों में बहुत समानता दिखाई देती है । इसके कुछ उदाहरण आगे दिए हैं ।
– डॉ. (श्रीमती) नंदिनी सामंत, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा.
१. सनातन-निर्मित श्री गणेशजी के सात्त्विक चित्रों
के संबंध में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा बताया गया प्रतिशत
और ‘पिप’ प्रणाली द्वारा उन चित्रों का किया गया परीक्षण एक समान होना
१ अ. देवता के सात्त्विक चित्रों के निर्मिति की पृष्ठभूमि
देवता का चित्र उनके मूल रूप से जितना अधिक मिलता-जुलता होता है, उतना ही उसमें देवता का तत्त्व अधिक मात्रा में होता है । कलियुग में किसी देवता के चित्र अथवा मूर्ति में अधिकाधिक ३० प्रतिशत तक उस देवता का तत्त्व आ सकता है । वर्तमान में बाजार में देवताओं के जो सर्वोत्तम चित्र उपलब्ध हैं, उनमें संबंधित देवता का तत्त्व ग्रहण करने और उसे प्रक्षेपित करने की क्षमता २ – ३% ही दिखाई देती है । देवता के उपासकों को संबंधित देवता के अधिकाधिक स्पंदन ग्रहण और प्रक्षेपित कर सकनेवाले चित्र उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से तथा अपनी ईश्वरप्राप्ति की साधना के लिए, सनातन के साधक-चित्रकारों ने देवताओं के सात्त्विक चित्रों की निर्मिति परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में प्रारंभ की । उदाहरण के लिए आइए इनमें से श्री गणपति के सात्त्विक चित्र की निर्मिति के विविध चरणों के चित्र देखते हैं ।
१ आ. श्री गणपति के सात्त्विक चित्र की निर्मिति के चरण
वर्ष २००० से पूर्व साधक-चित्रकारों ने संगणक द्वारा श्री गणपति का चित्र बनाना प्रारंभ किया और उन्होंने वर्ष २०१२ तक श्री गणपति के कुल ६ चित्र प्रकाशित किए । प्रथम प्रकाशित चित्र में गणेश तत्त्व ४% आया है, ऐसा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने सूक्ष्म ज्ञान द्वारा बताया । (‘किसी देवता के चित्र में उस देवता कितना तत्त्व है ?’, यह विज्ञान द्वारा मापने की प्रणाली अभी अस्तित्व में नहीं है ।) इसके पश्चात परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में तथा साधक-चित्रकारों को ध्यानावस्था में मिले ज्ञान के आधार पर वर्ष २०१२ तक गणपति के चित्र में जैसे-जैसे सुधार होते गए, वैसे-वैसे उस उस चित्र में गणेश तत्त्व की मात्रा बढती गई । श्री गणपति के चित्रों की निर्मिति का वर्ष और उन चित्रों में गणेश तत्त्व देखने के लिए दाईं ओर दिया चित्र देखें ।
१ इ. ‘पिप (पॉलीकॉन्ट्रास्ट इंटरफेरन्स फोटोग्राफी)’प्रणाली की सहायता से
सनातन-निर्मित श्री गणपति के चित्र के सूक्ष्म स्पंदनों के किए गए अध्ययन में
चित्रों में बढते गणेश तत्त्वानुरूप उनके सकारात्मक स्पंदनों की मात्रा बढी हुई दिखाई देना
उक्त उल्लेखित सनातन- निर्मित श्री गणपति के ६ चित्रों की अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से ज्ञात हुई विशेषताओं का अध्ययन करने के उद्देश्य से उन चित्रों का ‘पिप’ प्रणाली की सहायता से परीक्षण किया गया ।
परीक्षण में मिले श्री गणपति के चित्रों के ‘पिप’ छायाचित्र व विवरण पृष्ठ ८ पर उनके दाईं ओर दिए छायाचित्रों के नीचे देखें ।
१ इ १. सनातन-निर्मित श्री गणपति के चित्रों के ‘पिप’छायाचित्र और उनमें सकारात्मक स्पंदनों की मात्रा
१ इ २. ‘पिप’ छायाचित्रों के निष्कर्ष
अ. गणपति के प्रत्येक चित्र में हुई गणेश तत्त्व की वृद्धि संबंधित ‘पिप’ छायाचित्र में अचूक दिखाई देती है ।
आ. १५% सात्त्विकतावाले सनातन-निर्मित श्री गणपति के चित्र और २७% सात्त्विकतावाले श्री गणपति के चित्र की सात्त्विकता का बडा भेद भी स्पष्ट दिखाई देता है ।
इ. २७ प्रतिशत और २८.५% गणेश तत्त्व से युक्त चित्रों की उच्च सात्त्विकता भी उनके ‘पिप’ छायाचित्रों की शुद्धता अथवा पवित्रता दर्शानेवाले नीलापन लिए हुए श्वेत रंग से तथा सूक्ष्म स्तर की आध्यात्मिक उपचारी-क्षमता दर्शानेवाले हरे रंग से स्पष्ट दिखाई देती है ।
१ ई. ‘पिप’ प्रणाली एक सीमा तक सनातन-निर्मित श्री गणपति के चित्रों की
सात्त्विकता पहचान पाना तथा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने ‘पिप’ परीक्षण करने से पहले
ही ‘गणपति के प्रत्येक चित्र में कितनी सात्त्विकता अर्थात गणेश तत्त्व है ?’,यह अचूक बताया होना
उक्त परीक्षण से सनातन-निर्मित श्री गणपति के चित्रों में उत्तरोत्तर बढती गई सात्त्विकता (गणपति तत्त्व) वैज्ञानिक दृष्टि से भी स्पष्ट हुई । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने यही सत्य ध्यानावस्था में मिले ज्ञान से किसी भी वैज्ञानिक उपकरण के उपयोग के बिना पहले ही बताया था । इतना ही नहीं उससे भी आगे जाकर ‘प्रत्येक चित्र में कितनी सात्त्विकता (गणपति तत्त्व) है ?’, यह भी अचूक बताया था । संतों ने ध्यानावस्था में पहले ही बताए इस सत्य को वैज्ञानिक उपकरण से किए परीक्षण के निष्कर्ष से पुष्टि मिल गई !
२. तथाकथित बुद्धिवादियों द्वारा समाज में अध्यात्म से संबंधित
फैलाए जा रहे व्यर्थ विकल्पों का भ्रम वैज्ञानिक परीक्षणों के निष्कर्षों से स्पष्ट होना
सनातन-निर्मित देवताओं के सात्त्विक चित्रों में देवता तत्त्व, सनातन-निर्मित रांगोलियों का देवता तत्त्व, साधकों का आध्यात्मिक स्तर आदि के आंकडे सनातन द्वारा बताए जाते हैं । इसकी सत्यता के संबंध में तथाकथित बुद्धिजीवी संदेह व्यक्त कर समाज को भ्रमित करते हैं तथा इस प्रकार से समाज की असीमित हानि कर रहे हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने सूक्ष्म ज्ञान द्वारा दिए संबंधित आकडों की सत्यता को वैज्ञानिक परीक्षणों के निष्कर्षों से पुष्टि मिलती है । यह उक्त उदाहरणों से स्पष्ट होता है । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा किए गए ऐसे सैकडों परीक्षणों में प्रत्येक बार ऐसा दिखाई देता है ।