अनुक्रमणिका
- १. बाढग्रस्त प्रदेश के हिन्दुओं को भावभक्ति के साथ श्रीगणेशजी की उपासना करनी चाहिए !
- २. सूखाग्रस्त क्षेत्र के हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार बहते पानी में श्रीगणेशमूर्ति का विसर्जन करने के लिए प्रधानता दें !
- ३. सूखे जैसे संकटकाल में बहते जलस्रोत में मूर्ति का विसर्जन संभव न हो, तो क्या करें ?
- ४. धर्माचरण हेतु प्रशासन को अनुकूल स्थिति उत्पन्न करना आवश्यक !
बाढपीडित एवं सूखाग्रस्त हिन्दुओं को विनम्र आवाहन
‘महाराष्ट्र एवं कर्नाटक इन राज्यों में अगस्त मास में बाढ की स्थिति बनने से कई लोगों के घर-बार उजड गए । अब बाढपीडितों को नए सिरे से अपनी गृहस्थी खडी करने में बडी कालावधि लगेगी, यह स्थिति है । अब गणेशोत्सव निकट आने से ‘बाढपीडितों के पास धन के अभाव के कारण, साथ ही घर उजड जाने से श्रीगणेशमूर्ति की प्रतिष्ठापना कैसे करें ?’, यह प्रश्न पूछा जा रहा है । दूसरी ओर राज्य के कुछ स्थानोंपर सूखे की स्थिति है । यहां नियमित उपयोग के कारण पानी की उपलब्धता न होते हुए श्री गणेशमूर्ति का विसर्जन कहां करें ?’, यह भी प्रश्न उठाया जा रहा है ।
हिन्दुओं की इस स्थिति का अपलाभ उठाते हुए आधुनिकतावादियों द्वारा ‘पैसे के अभाव की स्थिति में गणेशोत्सव किसलिए ?’, साथ ही ‘क्या आप प्रदूषित नदियों में गणेशमूर्ति का विसर्जन करेंगे ?’, ये प्रश्न उपस्थित किए जा रहे हैं ।
ऐसी स्थिति में गणेशभक्त और श्रद्धालुओं को निम्नांकित सूत्र ध्यान में लेने चाहिएं …
१. बाढग्रस्त प्रदेश के हिन्दुओं को भावभक्ति
के साथ श्रीगणेशजी की उपासना करनी चाहिए !
बाढग्रस्त प्रदेशों में जिन हिन्दुओं को आर्थिक समस्या के कारण श्री गणेशमूर्ति की प्रतिष्ठापना करना संभव नहीं है, वे गणेशोत्सव के समय में भावभक्ति के साथ श्रीगणेशजी की उपासना करें । अपने घर में श्रीगणेशजी की मूर्ति की स्थापना संभव न हो, तो उस समय में जहां श्रीगणेशमूर्ति की स्थापना की गई हो, वहां जाकर पूजा-अर्चना करें । ऐसा करना भी संभव न हो, तो मानसपूजा करें । स्थिति भले कितनी भी बुरी हो; किंतु हमें गणेशोपासना नहीं छोडनी है । सभी को ‘ईश्वर की कृपा से ही हम इस संकट से भी पार होंगे’, इसके प्रति आश्वस्त होकर गणेशजी से अधिकाधिक प्रार्थनाएं करें, साथ ही नामजप करें ।
२. सूखाग्रस्त क्षेत्र के हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार
बहते पानी में श्रीगणेशमूर्ति का विसर्जन करने के लिए प्रधानता दें !
२ अ. किसी स्थानपर बहता पानी न हो, तो जहां बहता पानी उपलब्ध है, वहां अपने क्षेत्र के सभी को एकत्रित होकर सभी मूर्तियों को एकत्रित कर उनका बहते पानी में विसर्जन करें ।
३. सूखे जैसे संकटकाल में बहते जलस्रोत में मूर्ति का विसर्जन संभव न हो, तो क्या करें ?
३ अ. छोटे आकारवाली अर्थात ६-७ इंच ऊंचाईवाली मूर्ति की स्थापना करें ।
सूखे की स्थिति में विसर्जन के लिए सुसंगत हो, ऐसे छोटे आकारवाली अर्थात ६-७ इंच ऊंचाईवाली मूर्ति की स्थापना करें । उत्तरपूजा के पश्चात इस मूर्ति को घर से बाहर ले जाएं । तुलसी वृंदावन के पास अथवा आंगन में एक बडे पात्र में पानी लेकर उसमें मूर्ति का विसर्जन करें । नगर में सदनिकाओं में अर्थात फ्लैट में रहनेवाले तुलसी वृंदावन में अथवा आंगन उपलब्ध न हो, तो घर में ही बडे पात्र में पानी लेकर मूर्ति का विसर्जन करें । मूर्ति के पानी में संपूर्णरूप से पिघल जाने के पश्चात वह पानी और मिट्टी पैरोंतले न आए, इस पद्धति से बरगद, पीपल जैसे सात्त्विक वृक्षों में डालें ।
३ आ. बडी मूर्ति कालांतर से विसर्जित करना
बडी मूर्ति स्थापित करने का विकल्प चुना हो, तो उस मूर्ति की उत्तरपूजा के पश्चात उसे घर में ही सात्त्विक स्थानपर, उदा. पूजाघर के पास रखें । इस मूर्ति के पूजन की आवश्यकता नहीं । केवल उसपर धूल न जमे; इस प्रकार से उसे किसी खोके में ढंककर रखें । आगे जब बहता पानी उपलब्ध हो, तब उस मूर्ति का बहते पानी में विसर्जन करें । उक्त प्रकार का विसर्जन केवल अनावृष्टि जैसे संकटकाल में आपत्धर्म के रूप में स्वीकार्य है ।’
४. धर्माचरण हेतु प्रशासन को अनुकूल स्थिति उत्पन्न करना आवश्यक !
धर्माचरण करने से अनुकूल स्थिति बन सकती है; किंतु प्रशासन के द्वारा ही धर्माचरण के लिए अनुकूल स्थिति बनाई जानी चाहिए । प्रशासन का यह कर्तव्य है कि उन्हें समाज को धर्मपालन संभव होने हेतु सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिएं ।
४ अ. प्रशासन को नदी में पानी छोडने का प्रबंध करना चाहिए ।
४ आ. हमें प्रशासन को गणेशमूर्ति विसर्जन हेतु नदी में पानी छोडनेपर बाध्य करना चाहिए; किंतु हम वैसा नहीं करते; क्योंकि हमारे पास तात्कालीन हौजों में विसर्जन का विकल्प होता है । अतः हम उसमें मूर्ति का विसर्जन कर अपने दायित्व से छूट जाते हैं ।
४ इ. ईद मनाने हेतु चंद्रमा के न दिखाई देने से मुसलमान दूसरे दिन चंद्रमा दिखाई देने की प्रतीक्ष करते हैं; किंतु चंद्रमा दिखे बिना वे ईद नहीं मनाते । प्रशासन भी ऐसी स्थिति में सरकारी छुट्टी का मेल करते हैं; क्योंकि मुसलमान अपने धर्म को पहले प्रधानता देते हैं । धर्मपालन कैसे करना चाहिए, इसे हिन्दुओं को मुसलमानों से सिख लेना चाहिए ।
४ ई. श्री गणेशमूर्ति का विसर्जन करने से नदी प्रदूषित होती है और नदी प्रदूषित है; इसलिए उसमें विसर्जन नहीं करना चाहिए, ऐसा बतानेवाले तथाकथित आधुनिकतावादी, पर्यावरणप्रेमी, शासन और प्रशासन को वर्षतक अन्य कारणों से जब नदी का प्रदूषण होता है, तब उसपर क्यों उपाय नहीं किए जाते ? उसे वर्षतक स्वच्छ क्यों नहीं किया जाता ?, इस संदर्भ में उनसे पूछना होगा और नदी को स्वच्छ करने हेतु उनपर दबाव बनाना होगा ।