विज्ञान एवं तंत्रज्ञान ने अब तक इतनी प्रगति कर ली है कि हम भारतीय भी चंद्र पर यान भेज सके । ऐसा होते हुए भी किस भाग में अतिवृष्टि होगी, यह विज्ञान अथवा तंत्रज्ञान अब तक अचूकता से बता नहीं पाया । मौसम पूर्वानुमान (wheather forecast) विभाग का अनुमान तो इतना गलत होता है कि उसकी दी हुई सूचना के विषय में तो सार्वजनिकरूप से उपहास उडाया जाता है । मौसम पूर्वानुमान विभाग से तो नंदी बैल ही अच्छा, ऐसी मुहिम इस बार महाराष्ट्र में एक व्यक्ति ने आरंभ की और वह व्यक्ति गांव-गांव नंदीबैल को ले जाकर मौसम पूर्वानुमान विभाग के गलत अनुमान के विषय में जानकारी दे रहा था । मौसम पूर्वानुमान का अथवा वर्षा का अनुमान बताने के विषय में यदि विज्ञान एवं तंत्रज्ञान की ऐसी स्थिति होगी, तो कर्मफलन्याय पर श्रद्धा रखनेवाले (पातक से बचकर रहनेवाले) लोग पंचांग, भविष्य, संतों के वचन, गढरियों का पंचांग (भेढ-बकरियों के वर्तन के आधार पर बनाया गया पंचांग) इत्यादि पर विश्वास रखेंगे तो इसमें क्या गलत है ?
श्री. चेतन राजहंस
अचानक आई बाढ से सर्वत्र हाहाकर मच गया । बाढ की आशंका भांपते हुए कुछ गढरियों ने सांगली-कोल्हापुर से स्थलांतरित होकर अपना बचाव किया । यह घटना सामाजिक जालस्थलों पर भारी मात्रा में प्रसारित हुई है । उन गढरियों ने बताया कि इस बार उनके पंचांग के रजक घर में वर्षा होने से मूसलाधार वर्षा की संभावना उन्हें ज्ञात थी । इसलिए उन्होंने स्थलांतर कर, रून सांगोला में झोपडियां बनाईं । रजक अर्थात परीट ! पंचांग में पृष्ठ ५ पर आखिर से ७ वीं पंक्ति में मेघनिवास परिट के घर होने से बहुत वर्षा होगी, ऐसा दिया है । रुईकर पंचांग में श्रावण मासफल के अंतर्गत भी हवा के दाब के कारण उत्तर-पूर्व दिशा में होने से अतिवृष्टि की संभावना है । फसल जलमय हो जाएगी । नदियों में जलप्रलय आएगी । यातायात ठप्प हो जाएगा, ऐसी भविष्यवाणी की गई थीं । इससे ज्योतिषशास्त्र का और पारंपरिक ज्ञान एवं प्राकृतिक संकेतों का महत्त्व ध्यान में आता है । ज्योतिषशास्त्र भविष्य की घटनाओं के विषय में १०० प्रतिशत योग्य अंदाज होगा ही, ऐसा नहीं है; परंतु ग्रहमान से भविष्यकालीन घटनाओं का वेध अवश्य ही लिया जा सकता है एवं भविष्य का संकट दूर होने के लिए उपाययोजना भी बनाई जा सकती है । यह घटना भी उसी का उदाहरण है । इस प्राचीन ज्ञान का परिचय नए भारत को करवाना आवश्यक है ।
भविष्यवाणी के आश्चर्यचकित करनेवाले अनुमान !
किसी भी प्राकृतिक आपत्ति की पूर्वकल्पना प्राणियों को प्रथम आती है; कारण यह समझने की उनमें प्राकृतिक अथवा जन्मजात प्रगल्भता होती है । आधुनिक शिक्षा ने मनुष्य की ऐसी प्राकृतिक अथवा जन्मजात समझ को नष्ट कर दिया है । इसलिए बुद्धिहीन जानवर भी निसर्ग का संकेत समझ सकते हैं; परंतु बुद्धिवान मनुष्य इसके लिए किसी न किसी अलर्ट पर निर्भर होता है । यह दुर्भाग्यपूर्ण है । आज भी कुछ गावों में भविष्यवाणियां होती हैं । गावों में स्थानीय मेलों में किसी भी शास्त्र का आधार न लेते हुए की जानेवाली भविष्यवाणियां वास्तविकता से मेल साधनेवाली होती हैं । पुणे जिले की पुरंदर तालुका में वीर की श्रीनाथ म्हस्कोबा की यात्रा में, इसके साथ ही कोल्हापुर जिले की अप्पा की वाडी में हालसिद्धनाथ की भविष्यवाणी होती है । इस भविष्यवाणी के आधार पर स्थानीय किसान वर्षा का अनुमान लेकर खेतीसंबंधी निर्णय लेते हैं । पुरंदर जिले की भविष्यवाणी के समय अनाज से भरी थैलियां चारों दिशाओं में फेंकी जाती है । फिर अगले दिन वे खोली जाती हैं । जिस अनाज में अंकुर निकल आए हैं, उस दिशा में अच्छी वर्षा होगी, ऐसा अर्थ होता है । ऐसे अनेक उदाहरण हैं । हवामान खाता के लिए भी लज्जाजनक है, ऐसा यह ज्ञान की आश्चर्यचकित करनेवाली धरोहर है । महंगे उपकरण, उपग्रह, सिद्धांत हाथों में होते हुए भी हवामान खाते का अनुमान कितना योग्य होता है, इसकी कल्पना प्रत्येक व्यक्ति को है । उस पार्श्वभूमि पर पंचांगों में दी वर्षा के वर्णन का, गावों में होनेवाली भविष्यवाणियों का, इसके साथ ही निसर्ग के सान्निध्य में रहनेवाले लोगों के अनुभव (प्रतीति) अधिक परिपूर्ण होते हैं, यह महत्त्वपूर्ण है ।
पक्षियों के वर्तन से लगाया अनुमान !
केवल इतना ही नहीं, अपितु पक्षियों के बर्ताव से भी वर्षा का अनुमान लगाया जाता है । जैसे कौए ने वृक्ष पर पूर्व दिशा में घोंसला बनाया, तो वर्षा अच्छी होती है और पश्चिम में बनाया, तो अल्प वर्षा होती है । वृक्ष के सिरे पर यदि कौआ घोंसला बनाता है, तो अकाल पडता है । पपीहा पक्षी का आगमन होने पर वर्षा होती है और धोबी पक्षी के आने पर वर्षा रुक जाती है । आज भी ग्रामीण भागों में पक्षियों की गतिविधियों पर खेती के निर्णय लिए जाते हैं ।
आधुनिकतावादियों का अवैज्ञानिकपना !
इस परंपरागत ज्ञान को सहेजना एवं उस पर शोधन होना भी अपेक्षित है । विदेश में हुए एक शोधन के अनुसार व्यक्ति यदि गाय के सान्निध्य में रहे, तो उसका मानसिक तनाव अल्प होता है । आज विदेश में अनेक लोग शुल्क देकर कुछ घंटे गाय के सान्निध्य में व्यतीत करते हैं; परंतु यह बात भारत में प्राचीन काल से चली आ रही है । भारत में पहले लगभग प्रत्येक घर में एक गाय होती ही थी । संक्षेप में भारत की जो प्रथा, रीति-रिवाज, परंपरा, प्राचीन ज्ञान, प्रकृति का अभ्यास था, वह कितना वैज्ञानिक था, यह पंचांग की भविष्यवाणियां, प्राकृतिक घटकों के विषय के निरीक्षण, अथवा गोसान्निध्य के शोधन से सिद्ध हो रहा है; परंतु अंनिस, आधुनिकतावादी एवं कथित विज्ञानवादी लोग मात्र धर्म एवं ज्योतिष को पाखंड घोषित करने में ही धन्यता मान रहे हैं । इन विज्ञानवादियों की अवैज्ञानिकता पर जितनी तरस खाओ, कम ही है ।