शिष्य के जीवन में गुरु का महत्व अद्वितीय है; क्योंकि वह गुरु के बिना ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता। गुरु का भक्तवत्सल रूप, दयालु दृष्टि और विभिन्न माध्यमों से उसे उपदेश देने से शिष्य की आध्यात्मिक उन्नति होती है। ऐसे महान गुरुओं के महत्व का वर्णन ‘ज्योत से ज्योत जगाओ’ स्वामी मुक्तानंद विरचित आरती में दिया गया है।
आरती में शब्दों का उच्चारण कैसे करना है, शब्दों के उच्चारण की गति कैसी होनी चाहिए, कौन-से शब्द जोड़े या अलग-अलग कहने चाहिए, यह भी इससे पता चलेगा। इस आरती को सुनने से और उसी तरह से उच्चारण करने से हममें अधिकाधिक भावजागृति होने के लिए सहायता होगी।
अब सुनते हैं श्री सद्गुरु की आरती…
ज्योत से ज्योत जगाओ ।
सद्गुरु ज्योत से ज्योत जगाओ ।
मेरा अंतर्-तिमिर मिटाओ ।
सद्गुरु ज्योत से ज्योत जगाओ ।। धृ० ।।
हे योगेश्वर, हे ज्ञानेश्वर, हे सर्वेश्वर, हे परमेश्वर ।
निज कृपा बरसाओ ।
सद्गुरु ज्योत से ज्योत जगाओ ।। १ ।।
हम बालक तेरे द्वार पे आये ।
मंगल दरस दिखाओ ।
सद्गुरु ज्योत से ज्योत जगाओ ।। २ ।।
शीश झुकाय करें तेरी आरती ।
प्रेम सुधा बरसाओ ।
सद्गुरु ज्योत से ज्योत जगाओ ।। ३ ।।
अंतर् में युग-युग से सोई ।
चित् शक्ति को जगाओ ।
सद्गुरु ज्योत से ज्योत जगाओ ।। ४ ।।
साची ज्योत जगे हृदय में ।
सोऽहं नाद जगाओ ।
सद्गुरु ज्योत से ज्योत जगाओ ।। ५ ।।
जीवन मुक्तानंद अविनाशी ।
चरणन शरण लगाओ ।
सद्गुरु ज्योत से ज्योत जगाओ ।। ६ ।।
– स्वामी मुक्तानंद