‘नादब्रह्मस्वरूप, अनादि और अनंत परमेश्वर का सगुण-साकार रूप है ॐकार ! ऐसे इस परमेश्वर के सगुण-साकार रूप के संदर्भ में संत ज्ञानेश्वरजी कहते हैं,
अकार चरण युगल । उकार उदर विशाल । मकार महामंडल । मस्तकाकारें ।
हे तिन्हीं एकवटले । तेथ शब्दब्रह्म कवळलें । ते मियां श्रीगुरुकृपा नमिलें । आदिबीज ॥
– ज्ञानेश्वरी अध्याय १ श्लोक १९ एवं २०
अर्थ : जिस समय ‘अकार’, ‘उकार’ और ‘मकार’ एकत्रित हुए, उस समय उसमें शब्दब्रह्म अंतर्भूत होकर ॐकार रूप बन गया । उस आदिबीज को मैं श्रीगुरु निवृत्तिनाथजी की कृपा से नमस्कार करता हूं ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के नियमित उपयोगवाले सिरहाने के
आवरण के २ स्थानोंपर ॐ अंकित होना तथा उसकी आध्यात्मिक कारणमीमांसा
८.७.२०१९ को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के नियमित उपयोगवाले सिरहाने के आवरण के २ स्थानोंपर ॐ अंकित हुआ दिखाई दिया । इसकी आध्यात्मिक कारणमीमांसा निम्न प्रकार से है –
अ. शरीर से प्रक्षेपित होनेवाले चैतन्य से निर्गुण तत्त्व की सहायता से साकारता प्रकट होती है; इसलिए ॐकारधारणा से कार्य करनेवाले जीव उन्नत होते हैं । इससे परात्पर गुरुदेवजी एक उन्नत योगी हैं, यह प्रमाणित होता है ।
आ. सिरहाने के आवरणपर अंकित ॐ का आकार सगुण क्रियाशक्ति के स्तर का है । उससे कार्य को चेतना प्राप्त होने हेतु सहायता होने के लिए ॐ कार के माध्यम से सगुण साकारता धारण हुई । यह प्रक्रिया शक्ति के स्तरपर अर्थात अधिकतर सगुणदर्शक कार्यकारी होती है । उसके कारण स्थल की भाषा में कार्य करने की व्यापकता अधिक होती है ।
इ. सिरहाने के आवणपर अंकित ॐ को प्राप्त विशिष्ट आकार के कारण ईश्वर के निर्गुण स्वरूप का घनीकरण होकर वह सगुण-साकार बन जाता है अर्थात आकार धारण कर लेता है । ईश्वर के आकारधारणा से दृश्यमानता प्राप्त होती है । उसके कारण परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के सिरहाने के आवरणपर अंकित ॐ से निर्गुण चैतन्य के तरंगों का प्रक्षेपण होकर कक्ष में विद्यमान निर्गुण तत्त्व की मात्रा में वृद्धि होती हुई प्रतीत होती है । स्थूलशरीर से सगुण स्तर के ईश्वरीय तत्त्व का निर्गुण तत्त्व में रूपांतरण होता है और यही निर्गुण तत्त्व ऊर्जा के स्वरूप में वातावरण में स्थित होता है । इस प्रकार से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के शरीर में विद्यमान निर्गुण तत्त्व के कारण उनके सिरहाने के आवरणपर सगुण से ॐ अंकित हुआ ।
‘ॐ’ कार के दर्शन का अर्थ ईश्वर द्वारा परिपूर्णता की प्रमाणितता !
साधना के कारण जीव की सात्त्विकता बढने लगती है । जैसे-जैसे साधना बढने लगती है, वैसे-वैसे स्थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि से परे अर्थात सूक्ष्म का ज्ञात होने लगता है । ‘केवल आंखों से जो दिखाई देता है, वही सत्य है’, ऐसा न मानकर किसी विषयपर ध्यान केंद्रित कर देखनेपर उसमें विद्यमान अच्छे और कष्टदायक स्पंदन प्रतीत होते हैं अथवा उसके संदर्भ में अनुभूति होती है । ‘ॐ’ कार के सर्वव्यापी और स्वस्वरूपी होने के कारण वह परिपूर्ण होता है, साथ ही वह पूर्णता प्राप्त करा देनेवाला है । ‘ॐ’ कार दिखाई देने का अर्थ ईश्वर द्वारा परिपूर्णता को प्रमाणित किया जाना है ।’
– कु. प्रियांका विजय लोटलीकर, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, फोंडा, गोवा
वैज्ञानिक दृष्टि से शोधकार्य करनेवालों से अनुरोध !
‘रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम में कई बुद्धिअगम्य घटनाएं घटित हो रही हैं । आश्रम में निवास करनेवाले संत तथा उच्च आध्यात्मिक स्तरवाले साधकों के शरीरपर, आश्रम में रखी फलसब्जियां और आश्रम के फर्शपर ॐ अंकित हुए हैं । आश्रम में किए गए यज्ञों से उत्पन्न ज्वालाओं में ॐ अंकित होने का ध्यान में आया । साथ ही भारत के विविध राज्यों में स्थित सनातन संस्था के आश्रम और सेवाकेंद्र, साथ ही साधकों के घरों में भी ॐ अंकित हुए दिखाई दिए हैं । इस प्रकार से विविध स्थानोंपर ॐ और अन्य शुभचिन्ह (स्वस्तिक, कमल इत्यादि) अंकित होने का क्या वैज्ञानिक कारण है ?, उसका परिणाम कितनी दूरीतक होता है ? व्यक्ति के शरीर, मन और बुद्धिपर उसका क्या परिणाम होता है ?, कुछ विशिष्ट स्थानोंपर ही इस प्रकार से इन चिन्हों के अंकित होने के पीछे क्या कारण हैं ?, उसपर किस यंत्र की सहायता से शोध किया जाना चाहिए ?’ इस संदर्भ में वैज्ञानिक दृष्टि से शोध करनेवालों की सहायता मिली, तो हम उसके लिए कृतज्ञ रहेंगे ।’