तीसरा संस्कार : सीमंतोन्नयन

१. उद्देश्य

सीमंतोन्नयन शब्द सीमंत (मांग की रेखा) एवं उन्नयन (केश ऊपर से पीछे की ओर करना), इन दो शब्दों से बना है । सीमंतोन्नयन अर्थात पत्नी के सिर के केश ऊपर से पीछे की ओर कर मांग निकालना । इससे उसके सहस्रार से अच्छी तरंगें शरीर में आकर सुयोग्य गर्भवृद्धि में सहायक होती हैं ।

 

२. मुहूर्त

पुंसवन समान सीमंतोन्नयन के लिए भी पुरुषवाचक नक्षत्र का होना आवश्यक है । सम मास में एवं संभवतः चौथे मास में यह संस्कार हो, तो सही अर्थ में वह अन्वर्थक सिद्ध होता है । यह संस्कार गर्भशुद्धि के लिए किया जाता है । बालक होना जितना महत्त्वपूर्ण है, उतना ही महत्त्वपूर्ण है उस बालक का अव्यंग, निरोगी तथा तीक्ष्ण बुद्धि का होना । गर्भावस्था में बालक के सभी अवयवों की सर्वांगीण वृद्धि होने हेतु सीमंतोन्नयन होना आवश्यक है ।

 

३. विधि

गूलर के (उदुंबर के) फलों का गुच्छा, साही का कांटा (यह एक बहुप्रसवा प्राणी है) एवं चोटी के समान बुने हुए दर्भ के तीन अंकुर, इन वस्तुओं से पति पत्नी के सीमंत का (मांग का) उन्नयन (अलग) करें । कुछ स्थानों पर आचारानुसार गेहूं की बालियों एवं गूलर के फलों की माला स्त्री के गले में डाली जाती है ।

सीमंतोन्नयनांतर्गत मंत्र से अभिमंत्रित हुआ यज्ञप्रसाद, अनेक फल देनेवाले औदुंबरादि औषधीय वनस्पति, साही के (एक बहुप्रसव प्राणी के) शरीर का कांटा इत्यादि वस्तुओं से पति की ओर से पत्नी के सीमंत का (मांग का) होनेवाला उन्नयन (पृथक करना) इत्यादि भावपूर्ण संस्कारों के कारण गर्भवती में विद्यमान चैतन्यशक्ति गर्भ के लिए अधिकाधिक प्रेरणादायी सिद्ध होती है ।

संदर्भ : सनातन – निर्मित ग्रंथ सोलह संस्कार

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