वर्ष २०१६ में भारत में विपुल सुवृष्टि हो तथा आपात्काल का निवारण होे इस हेतु सौमिक सुवृष्टि योजनांतर्गत सोमयागों का आयोजन !

क्या ऐसा विचार और तत्संबंधी
कृत्य एक भी राजनेता कर सकता है ?

अश्‍वमेधयाजी प.पू. नारायण काळे गुरुजी

वर्ष २०१६ में भारत में विपुल सुवृष्टि हो व आपात्काल का निवारण हो, इस हेतु महाराष्ट्र के बार्शी (सोलापुर) स्थित श्री योगीराज वेद विज्ञान आश्रम की ओर से अश्‍वमेधयाजी प.पू. नाना काळे गुरुजी के मार्गदर्शन में सौमिक सुवृष्टि योजनांतर्गत २५ सोमयागों का नियोजन किया गया है । ये सोमयाग १२ ज्योतिर्लिंगों सहित अन्य स्थानों पर भी होंगे ।

शरद ऋतु में होनेवाले सोमयाग को वाजपेय सोमयाग कहते हैं । वाज, अर्थात अन्न व पेय, अर्थात जल, ऐसा वाजपेय शब्द का अर्थ है । यज्ञ-याग से निर्मित तेजोतरंगें वैश्‍विक मंडल तक पहुंचती हैं और जीवसृष्टि के लिए आवश्यक प्राणशक्ति की तरंगों को खींचकर भूमंडल पर लाती हैं । इसके साथ ही वे रज-तमात्मक तरंगों का उच्चाटन करती हैं ।

१. कृत्रिम वर्षा के प्रयोगों से वर्षा होगी, इसकी निश्‍चिति न होते
हुए भी उस पर जनता के करोडों रुपए व्यय करनेवाले आधुनिक वैज्ञानिक और वर्षा की पूर्ण निश्‍चिति देनेवाली ऋषि-मुनियों द्वारा प्रतिपादित वैदिक पद्धतियां !

प्रकृति संतुलित रहे और महत्त्वपूर्ण बात यह कि सुव्यवस्थित पर्जन्यवृष्टि हो, इसलिए सोमयाग, पर्जन्ययाग आदि प्रभावी उपाय ऋषि-मुनियों ने बताए हैं । इस संदर्भ में श्री योगीराज वेद विज्ञान आश्रम के ऋषितुल्य अश्‍वमेधयाजी प.पू. नाना काळे गुरुजी ने बताया, कृत्रिम वर्षा के प्रयोगों पर शासन ने करोडों रुपए व्यय किए । ऐसा करने पर भी अपेक्षित सफलता नहीं मिली । साथ ही कृत्रिम वर्षा के प्रयोग करने पर वर्षा होगी ही, इस बात की निश्‍चिति नहीं होती; परंतु सोमयागों पर होनेवाला व्यय कृत्रिम वर्षा पर किए जानेवाले व्यय की तुलना में अत्यल्प है । साथ ही आचार्य वराहमिहीर ने और प्राचीनशास्त्रों में ऐसा बताया है कि, सोमयाग करने से उस स्थान पर १९५ दिनों के उपरांत वर्षा होती है । हमने इसका अनुभव कई बार किया है ।

प.पू. नाना काळे गुरुजी ने आजतक सैकडों सोमयाग, पर्जन्ययाग आदि वैदिक शास्त्रों में बताए विविध यज्ञ-याग किए हैं । पर्जन्यवृष्टि के लिए वैदिक यज्ञविधियों के उपाय ही विश्‍वसनीय हैं । वर्ष २००६ में उन्होंने सोमयाग के वर्षा पर होनेवाले परिणामों के संदर्भ में वैज्ञानिक पद्धति से शोध किया । इसके निष्कर्ष अभूतपूर्व थे । आधुनिक वैज्ञानिकों के लिए ये निष्कर्ष आश्‍चर्यजनक थे । ये निष्कर्ष उन्होंने सौमिक सुवृष्टि योजना, इस नाम से ग्रंथरूप में प्रकाशित किए हैं । यह ग्रंथ इंडियन इन्स्टिट्युट ऑफ ट्रॉपिकल मिटिओरोलॉजी(आय.आय.टी.एम्.) नामक संस्था के जालस्थल पर उपलब्ध है ।

२. वर्ष २०१५ के मराठवाडा (महाराष्ट्र) के
अकाल में पर्जन्ययाग की उपयुक्तता ध्यान में आना

पर्जन्ययागों के संदर्भ में श्री योगीराज वेद विज्ञान आश्रम के वाजपेययाजी चैतन्य काळेगुरुजी ने अनुभव कथन किया कि, वर्ष २०१५ की वर्षा ऋतु में अगस्त माह में पर्याप्त वृष्टि न होने से महाराष्ट्र के मराठवाडा क्षेत्र में अकाल पडा था । पानी की किल्लत के कारण किसान आत्महत्या करने के लिए विवश हुए थे । वैदिक यज्ञपद्धति पर श्रद्धा रखनेवाले लोग पुरोहितों से पूछने लगे कि, क्या वृष्टि होने हेतु कुछ यज्ञ करोगे ? तदुपरांत सितंबर २०१५ के पहले सप्ताह में मराठवाडा में विविध स्थानों पर पर्जन्ययागादि विधि किए गए । इस परिसर में ५० से अधिक पर्जन्ययाग किए गए होंगे । उनका परिणाम दिखाई दिया; अकालग्रस्त मराठवाडा में सितंबर के दूसरे सप्ताह में वृष्टि हुई । उन्होंने आगे कहा, पर्जन्ययाग का लाभ केवल पर्जन्यवृष्टि के अभाव के समय ही नहीं अपितु अतिवृष्टि के होते समय उसे रोकने हेतु भी होता है । ऋषि-मुनियों ने ऐसे मंत्रों की योजना की है ।

३. हिन्दू धर्म के प्रति श्रद्धा न रखनेवाले
एक शोधकर्ता का हास्यास्पद वरुणयंत्र (वरुणयाग) !

वरुणयाग के स्थान पर वर्षा होती है, यह समझने पर एक (कथित धर्मनिरपेक्ष) शोधकर्ता ने वरुणयंत्र में (वरुणयाग के लिए बनाई यज्ञवेदी, जिसे ये शोधकर्ता ईटों का हौद कहते हैं ।) लकडियां जलाने से वर्षा होती है, इसलिए मंत्रोच्चारण किए बिना ही लकडियां जलाएंगे; परंतु इस (अति) बुद्धिमान शोधकर्ता के प्रयोग को सफलता नहीं मिली ।

४. वरुणयंत्र में प्लास्टिक का कूडा जलाएं,
ऐसा बतानेवाले एक विख्यात समाजसेवक !

एक विख्यात समाजसेवक ने प्रयोग सुझाया । इसके अनुसार वरुणयंत्र में लकडियों की अपेक्षा गांव का प्लास्टिक का कूडा एकत्रित कर उसे जलाने से कूडा भी जलेगा और वर्षा भी होगी । यह उदाहरण बताकर प.पू. नानाजी ने कहा, ऐसे (तथाकथित) बुद्धिमान लोग हमारे देश में हैं । इनकी बुद्धिमानी पर हंसे या रोएं ? प्लास्टिक जलाने से वातावरण प्रदूषित होता है, क्या यह सामान्य ज्ञान भी इन समाजसेवकों को नहीं है ?

– कु. प्रियांका लोटलीकर, अध्यात्म विश्‍वविद्यालय, गोवा.

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