गुरुदेवजी के जन्मोत्सव के समय गायनसेवा प्रस्तुत करनेवाली २ साधिकाओं में से एक साधिका की आंखें बंद होना तथा दूसरी साधिका की आंखे खुली रहना, इसका शास्त्र !

‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ७७वें जन्मोत्सव के अवसरपर अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त साधिका कु. तेजल पात्रीकर एवं कु. अनघा जोशी ने गायन के माध्यम से स्वरांजली समर्पित की । तब कु. तेजल पात्रीकर की आंखें बंद थी; परंतु श्रीमती अनघा जोशी की आंखें खुली थीं । इसका आध्यात्मिक कारण निम्न प्रकार से है –

गायन सेवा प्रस्तुत करती हुईं बाईं ओर से श्रीमती अनघा जोशी एवं कु. तेजल पात्रीकर

 

१. गायनसेवा प्रस्तुत करते समय प्राप्त अनुभूति का शास्त्र !

११.५.२०१९ को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का ७७वां जन्मोत्सव समारोह संपन्न हुआ । उस समय हमें परात्पर गुरुदेवजी की कृपा से (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी)उन्हीं के समक्ष गायनसेवा प्रस्तुत करने का अवसर मिला । इस अवसरपर मैने (कु. तेजल पात्रीकर) आंखें बंद कर गीत गाया, तो श्रीमती अनघा जोशी जब गीत गा रही थी, तब उनकी आंखें खुली थीं । उस समय हमें प्रतीत सूत्र यहां दे रहे हैं ।

१अ. आंखें मूंदकर गायनसेवा प्रस्तुत करते समय कु. तेजल पात्रीकर को प्रतीत सूत्र

अ. गीत गाने से पहले मेरे मन में ‘स्वर ठीक से लगेगा न ?, सबकुछ ठीक होगा न ’ जैसे विचार आ रहे थे । उससे आरंभ में सहजता साधना मेरे लिए कुछ कठिन हो गया था ।

आ. गायन का आरंभ होनेपर मेरे मन में चिंता के विचार आने बंद हुए ।

इ. गायन के समय मेरी आंखें अपनेआप बंद हुईं । तब मुझे ‘यह गायन परात्पर गुरुदेवजी के चरणों में समर्पित हो’, ऐसा लग रहा था ।

ई. स्वर बडी सहजता से अंतरतक पहुंच रहे थे ।

उ. मेरी वृत्ति अंतर्मुख होकर मेरा मन निर्विचार हुआ । उन स्वरों से मुझे ध्यान का अनुभव हुआ ।

ऊ. गायन पूर्ण होनेतक मेरी आंखें बंद थी । मुझे आंखें खोलना संभव नहीं हुआ ।’

– कु. तेजल पात्रीकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा

१आ. आंखे खुली रखकर गायनसेवा प्रस्तुत करते समय श्रीमती अनघा जोशी को प्रतीत सूत्र

अ. गायनसेवा आरंभ करने से पहले मैं आनंदित थी ।

आ. आरंभ में लगभग २ मिनटोंतक मेरे मन में सूर लगने के संदर्भ में विचार थे ।

इ. उसके पश्‍चात ये विचार दूर होकर पुनः मन की अवस्था आनंदित हुई । मैं निर्विचार स्थिति का अनुभव कर रही थी ।

ई. मेरी आंखें खुली होती हुईं भी मेरे मन में किसी प्रकार के विचार नहीं थे । मेरा ध्यान अनुसंधान की ओर था । (इसी को ‘जागृतावस्था में स्थित ध्यानावस्था’ कहा जाता है । – संकलक)

– श्रीमती अनघा जोशी, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा

 

२. कु. तेजल पात्रीकर एवं श्रीमती अनघा जोशी के द्वारा
गायन सेवा प्रस्तुत करते समय उनके संदर्भ में प्रतित सामूहिक सूत्र

अ. दोनों भी भावावस्था में गायन कर रही थीं ।

आ. दोनों के भी कंठ में माता सरस्वती का रूप विराजमान था । उसके कारण इन दोनों के माध्यम से साक्षात सरस्वतीदेवी ने ही गायनसेवा प्रस्तुत की ।

इ. दोनों के स्वर एक-दूसरे के साथ एकरूप होने से उनका गायन सुनते समय २ ध्वनियां सुनाई न देकर एक ही ध्वनि सुनाई दे रही थीं । जब २ गायकों के मन मिलते हैं, तभी उनके स्वर एक-दूसरे के साथ एकरूप होते हैं ।

ई. जब गायक गीत का भावार्थ और स्वर में विद्यमान नाद से एकरूप होता है, तब उसकी आंखें अपनेआप ही बंद हो जाती हैं अथवा खुली रहती हैं तथा उनके हाथों की थोडीसी हलचल होती है ।

 

३. गाते समय आंखें खुली रहना और बंद रहना, इनमें का अंतर

गाते हुए नेत्र खुले होना गाते हुए नेत्र बंद होना
१. भाव के स्वरूप व्यक्त-अव्यक्त अव्यक्त-व्यक्त
२. नेत्रों से प्रक्षेपित होनेवाली ऊर्जा मारक-तारक तारक-मारक
३. मन की वृत्ति बहिर्मुख-अंतर्मुख अंतर्मुख-बहिर्मुख
४. गायक की अवस्था जागृत-ध्यान ध्यान
५. स्वरों से कार्यरत होनेवाला इश्वरीय तत्व सगुण-निर्गुण निर्गुण-सगुण

 

४. साधक गायकों का लंबे समयतक टिका रहनेवाला परिणाम !

साधना न करनेवाले गायकों के गायन का परिणाम श्रोताओं पर बहुत अल्प समयतक टिका रहता है और वह उपरी होता है, तो साधना करनेवाले गायक के गायन का परिणाम लंबे समयतक टिका रहता है तथा वह आध्यात्मिक स्तर का होता है ।’

– कु. मधुरा भोसले (सूक्ष्म से प्राप्त ज्ञान), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा
स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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