सनातन संस्था के प्रेरणास्थान प.पू. भक्तराज
महाराजजी का छोटा होता गया छायाचित्र का आकार
अधिकांश नियतकालिकों में शब्दपहेलियां होती है । वे बौद्धिक स्तर की होती हैं । सनातन प्रभात आध्यात्मिक नियतकालिक होने से इस लेखमाला में आध्यात्मिक स्तर की पहेलियां दी हैं । इन पहेलियों से यह समझ में आएगा कि मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक स्तर की पहेलियां क्या होती हैं । दैनिक सनातन प्रभात के प्रत्येक रविवार के और साप्ताहिक, पाक्षिक एवं मासिक सनातन प्रभात के प्रत्येक संस्करण में पहेलियां दी जाएगी ।
१ अ. प्रयोग : प.पू. भक्तराज महाराजजी के छायाचित्रों पर से बडे छायाचित्र से छोटे छायाचित्र की ओर धीरे-धीरे दृष्टि घुमाते हुए, प्रत्येक छायाचित्र की ओर देखने पर क्या प्रतीत होता है, इसका अध्ययन करें । ऐसा १ – २ मिनट करें ।
१ आ. उत्तर : बडे छायाचित्र की ओर देखने पर अच्छा लगता है । भाव जागृत होता है ।
१ इ. विश्लेषण : प.पू. भक्तराज महाराजजी का यह छायाचित्र है । उसे हम आंखों से मानसिक स्तर पर देखते हैं । जो छायाचित्र स्पष्ट दिखता है, वह हमें अधिक अच्छा लगता है; इसीलिए हमें उनके बडे छायाचित्र की ओर देखना अच्छा लगता है ।
२. आध्यात्मिक स्तर की पहेलियां
२ अ. अनुभव और अनुभूति में अंतर
२ अ १. अनुभव : पंचज्ञानेंद्रिय, मन और बुद्धि आदि इंद्रियों द्वारा जीव को होनेवाली संवेदनाआें को अनुभव कहते हैं । इसी को कहते हैं, स्थूल का ज्ञान होना । अगरबत्ती लगाने पर नाक द्वारा उसकी सुगंध आने को अनुभव कहते हैं ।
२ अ २. अनुभूति : कक्ष में अगरबत्ती न होते हुए भी उसकी सुगंध आना, इसे अनुभूति कहते हैं । अनुभूति का अर्थ है, पंचज्ञानेंद्रिय, मन और बुद्धि के परे का अनुभव । पंचसूक्ष्मज्ञानेंद्रिय, सूक्ष्म मन और सूक्ष्म बुद्धि द्वारा जीवात्मा और शिवात्मा को आनेवाले अनुभवों को अनुभूति कहते हैं । इसी को सूक्ष्म का ज्ञान होना, ऐसा भी कहते हैं । किसी अनुभव का कार्यकारणभाव बुद्धि की समझ में न आने पर, उसे भी अनुभूति कहते हैं, उदा. किसी बाह्य कारण के न होते हुए कोई वस्तु हिलती हुई स्थूल आंखों को दिखाई देना । अद्वैत की अनुभूति शिवदशा में होती है । अध्यात्म अनुभूति का शास्त्र है । आध्यात्मिक पहेलियों के उत्तर मिलना, एक अनुभूति है, इसलिए इसमें दी पहेलियों के उत्तरों के संदर्भ में बुद्धि से विचार न करें, किंतु मन को क्या प्रतीत होता है, यह अनुभव करें ।
२ आ. साधना में जैसी प्रगति होगी, वैसे पहेलियों के उत्तर अधिकाधिक योग्य होते जाना : पहेलियों के प्रश्नों के योग्य उत्तर मिलने के लिए साधना करना आवश्यक है । साधना से आध्यात्मिक स्तर बढता है और परिणामस्वरूप उत्तर योग्य आने की मात्रा भी बढती है । उत्तरों का विश्लेषण समझने के लिए आध्यात्मिक परिभाषा का ज्ञान होना आवश्यक है । साधना है; परंतु अध्यात्म का अध्ययन नहीं है, तो इसमें दिए उत्तरों का विश्लेषण पढकर अध्यात्म का सैद्धांतिक ज्ञान समझ में आने लगेगा । बुद्धिवादी, अर्थात साधना न करनेवालों के लिए ये पहेलियां नहीं हैं; क्योंकि वे बुद्धि के परे जाकर कुछ अनुभव नहीं कर पाते ।
२ इ. अनुभूतियों के प्रकार : अध्यात्म के सिद्धांत के अनुसार शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध और संबंधित शक्ति एकत्र होते हैं । विषय सुलभ हो, इसलिए यहां शक्ति यह शब्द प्रयुक्त किया गया भी हो, वह शक्ति, भाव, चैतन्य, आनंद, और शांति आदि के संदर्भ में प्रयुक्त किया गया है । प्रत्येक रूप में एकप्रकार की शक्ति होती है । रूप अच्छा होने से उसमें अच्छी शक्ति और विरूप होने से उसमें अनिष्ट शक्ति होती है । यहां विरूप बातों का विचार नहीं किया गया है, अपितु अच्छे रूपों का ही विचार किया गया है । अच्छे रूपों में भी कुछ की ओर देखकर अधिक अच्छा लगता है, तो कुछ की ओर देखकर थोडा अच्छा लगता है, तो कुछ की ओर देखकर तुलना में कष्टप्रद भी लगता है ।
२ ई. पहेलियों का स्वरूप : कान, त्वचा, आंखें, जीभ और नाक इन पंचज्ञानेंद्रियोंमें से एक-एक को पंचमहाभूतों के क्रमशः शब्द (नाद), स्पर्श, रूप (दृश्य रूप), रस (स्वाद) और गंध (महक) का ज्ञान होता है । इनमें से स्पर्श, रस और गंध से संबंधित प्रयोग सनातन प्रभात में छापना संभव नहीं होता । केवल रूप, अर्थात दृश्यरूप से संबंधित प्रयोग सनातन प्रभात में छापना संभव होता है । शब्द के, अर्थात नाद से संबंधित प्रयोग कैसे करें, अर्थात प्रयोग करने के लिए कौनसा नाद सुनना है अथवा उसका उच्चारण कैसे करना है, इसकी जानकारी दी जाएगी । इसके अनुसार पाठक नाद के प्रयोग घर पर कर सकेंगे ।
२ उ. सूक्ष्म-ज्ञान के अगले चरण : आगे दूसरे के मन के विचार भी समझने लगते हैं और मन में आए प्रश्नों के उत्तर भी भीतर से समझने लगते हैं । इसके भी आगे जाने पर काल के आगे अथवा पीछे जाकर उस समय की जानकारी प्राप्त करना संभव हो जाता है ।