धर्मो रक्षति रक्षितः – धर्माचरण में है वर्तमान सभी समस्याआें का समाधान !

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वर्तमान स्थिति को देखते हुए लगता है कि अब देश विनाश की ओर ही जानेवाला है । इस स्थिति में परिवर्तन लाने के लिए हिन्दू राष्ट्र लाना ही एकमात्र पर्याय है । वर्तमान स्थिति में परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवले हिन्दू राष्ट्र लाने का प्रयत्न कर रहे हैं ।

१. स्वार्थ और दुष्ट प्रवृत्ति के कारण समाज की होनेवाली हानि

१ अ. सामान्य जनता को प्रलोभन दिखाकर अपने दल में
सम्मिलित कर उनसे मनचाहा कार्य करवा लेनेवाले राजनीतिक दल !

वर्तमान में अनेक लोग अपने स्वार्थ के लिए समाज के अज्ञानी लोगों को अपने जाल में फांसकर उनसे मनचाहे कार्य करवा लेते हैं । समाज में जो हो रहा है, अज्ञानी लोगों को वह सत्य लगता है और वे उसमें फंस जाते हैं । इसमें राजनीतिक दल लोगों को विविध प्रकार के प्रलोभन दिखाकर और ठगकर अपने दल में सम्मिलित कराते हैं और उनसे मनचाहे कृत्य करवा लेते हैं । कुछ संप्रदायों में ऐसा भी होता है ।
 

१ आ. जिहादी आतंकवादियों द्वारा संपूर्ण विश्व में विनाश के बीज बोए जाना एवं इस स्थिति में परिवर्तन लाने का प्रयत्न न करने पर सभी का विनाश अटल होना

वर्तमान समय में राज्यकर्ता स्वयं तथा अपने आगे की पीढी के लिए उपयुक्त हो, इसलिए अनुचित मार्ग सेे धन बटोर रहे हैं । अयोग्य कर्म के कारण व्यक्ति विनाश की ओर जाता है, ऐसा गीता में लिखा है । जिहादी आतंकवादियों ने संपूर्ण विश्‍व में विनाश के बीज बोए हैं । उनके इन कर्मों के फल, विनाश के रूप में ही भोगने होंगेे । इन सभी का परिणाम भयंकर हैं । इस स्थिति में परिवर्तन लाने के लिए प्रयत्न नहीं करेंगे, तो सभी का विनाश अटल है । दुष्ट कर्म करने वालों के ध्यान में यह नहीं आता । अब भी समय है । सब के लिए आनंदमय जीवन जीने का एक ही मार्ग है और वह है हिन्दू राष्ट्र स्थापित होने के लिए संगठितरूप से प्रयत्न करना ।
 

१ इ. पश्चिमी देशों द्वारा अपने स्वार्थ के लिए प्रथम दुष्ट शक्ति का उपयोग करना, तदुपरांत दुष्ट शक्ति बलवान होने पर उन पर एकाधिकार जताना (हावी होना) और उन्हें नष्ट करने का प्रयत्न करना

आतंकवादियों ने पेरिस पर आक्रमण किया । उसके प्रतिशोध में फ्रांस ने आक्रमण कर आतंकवादियों के अड्डे नष्ट कर दिए । वर्तमान समय अत्यंत कठिन है । भविष्य में होने वाले परिणामों का विचार कर आतंकवादियों को नष्ट करने के लिए सभी राष्ट्रों को संगठित होना आवश्यक है । इस परिस्थिति के लिए अमेरिका ही उत्तरदायी है; क्योंकि उसीने प्रथम इराक में सद्दाम हुसेन के समय जो परिस्थिति उत्पन्न की थी, उसी का यह फल है । पश्‍चिमी देश सदैव अपने स्वार्थ के लिए ही प्रथम दुष्ट प्रवृत्ति का उपयोग कर कार्य करते हैं। तदुपरांत जब दुष्ट प्रवृत्तियां बलवान हो जाती हैं, तो उन्हीं पर पलटवार करने लगती हैं । तब जाकर ये देश उसे नष्ट करने के लिए एकत्र आने का वे आवाहन करते हैं और उसे नष्ट करने का प्रयत्न करते हैं । उनकी इस वृत्ति के कारण ही आज विश्‍व में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो गई है ।
 

१ ई. ग्लोबल वॉर्मिंग (पृथ्वी का तापमान बढना), एक ईश्वरीय योजना !

प्राकृतिक दृष्टि से विचार किया जाए, तो उन्हीं के दुष्कृत्यों के कारण आज ग्लोबल वॉर्मिंग का प्रश्न उत्पन्न हुआ है । मानव के दुष्ट कृत्यों का पर्यावरण पर हुआ परिणाम ही ग्लोबल वॉर्मिंग है । वर्तमान में ग्लोबल वॉर्मिंग की यह समस्या सभी के लिए भयानक हो गई है । इस पर समाधान के रूप में फ्रांस में परिषद का आयोजन किया गया । प्रकृति को संतुलित करने के लिए ग्लोबल वॉर्मिंग के रूप में ईश्वर ने ही अवतार लिया है । इसे ईश्‍वर की ही योजना समझनी होगी । उत्पत्ति, स्थिति और लय (विनाश), ईश्ववर का कार्य है । नवनिर्मिति के लिए लय महत्त्वपूर्ण है । इससे प्रकृति की अनिष्ट बातें समाप्त होंगी और प्रकृति के लिए जो आवश्यक होगा, वही सृष्टि में रहेगा । इस दृष्टि से ईश्वर के अनुरूप आचरण करना, हम सभी का दायित्व है । प्रकृति का संतुलन संजोए रखने का संपूर्ण दायित्व मानव पर है । मानव के प्रत्येक विचार और कार्य का प्रभाव प्रकृति पर पडता है । इसलिए मानव को सदैव धर्म के पक्ष में रहना चाहिए ।
 

२. हिन्दू धर्मानुसार आचरणकरना, उपर्युक्त परिस्थिति पर रामबाण औषधि !

२ अ. हिन्दू धर्मानुसार धर्माचरण न होने से समाज में अनिष्ट विचारों का प्रभाव बढना

धर्माचरण से स्वयं की उन्नति हो, इस दृष्टि से हिन्दू धर्म में विचार किया जाता है; इसीलिए कहा गया है, सर्वेत्र सुखिनः सन्तु, अर्थात सभी सुखी हो जाएं । अन्य पंथियों में अपने स्वार्थ हेतु और उसमें भी भौतिक सुखों की अधिकाधिक प्राप्ति हो और दूसरों का विनाश हो, इसके लिए प्रयत्न करने को कहा जाता है । अतः पहले से ही विद्यमान रज-तम में इन विचारों के कारण वृद्धि होने से, वातावरण में रज-तम विचारों का प्रभाव बढ गया है । हिन्दू धर्मानुसार धर्माचरण न होने से समाज में अनिष्ट विचारों का प्रभाव बढ गया है । इसलिए अन्य धर्मी छल-कपट से हिन्दुआें का धर्मपरिवर्तन कर रहे हैं ।
 
हिन्दू धर्म के अतिरिक्त विचारों के कारण ईश्‍वर से प्राप्त संसाधनों का लाभ लेकर हम आनंद का उपभोग नहीं ले सकते । साथ ही ईश्‍वर द्वारा हमें प्राप्त बुद्धि का उपयोग न करके, हम स्वयं दुःखी और निराश रहते हैं और दूसरों को भी आनंद से वंचित रखते हैं ।
 
इन सर्व समस्याआें पर स्थायीरूप से समाधान मिलने के लिए हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना अनिवार्य है ।
 

२ आ. धर्माचरण न करने से विवेकबुद्धि नष्ट होना, इससे योग्य विचार मन में न आना और उस व्यक्ति का विनाश, अर्थात पतन होना

गीता (२ – ६२) में लिखा है, किसी भी प्रसंग का सामना करते समय अविवेक से कार्य करने पर उसका स्वार्थ साध्य नहीं होता । इसलिए वह मनुष्य क्रोध से उद्वेलित हो जाता है । ऐसे क्रोध से उसमें कुविचार उत्पन्न होते हैं । कुविचार से उसकी स्मरणशक्ति भ्रष्ट होती है और उसकी बुद्धि का, अर्थात ज्ञान का विनाश होता है । उसके मन में योग्य विचार नहीं आते । इससे उसका विनाश अर्थात पतन होता है । इसलिए क्रोध से आक्रमण कर आने वाले विनाश का समाधान नहीं होगा । इससे बचने के लिए सभी को धर्माचरण कर हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने के लिए प्रयत्न करना होगा । अतः सभी मिलकर यदि योग्य विचार कर कार्य करें, तो भविष्य में उसके दुष्परिणाम नहीं होंगे । धर्म के नियमानुसार आचरण करना, अर्थात हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होने के लिए सभी को सम्मिलित होना, काल की आवश्यकता हो गई है ।
 

३. हिन्दू राष्ट्र के लिए संगठित हो जाएं !

३ अ. समाज को दिशा देने वाला व्यक्ति यदि धर्माचरण करेगा, तो उसमें जागृत चैतन्य से समाज पर उसका प्रभाव पडेगा !

हिन्दू राष्ट्र में प्रत्येक व्यक्ति कर्म के प्रति आसक्ति का त्याग कर और ईश्‍वर के साथ आंतरिक सत्संग में रहकर ईश्‍वर से एकरूप होने का प्रयत्न करेगा । ऐसा व्यक्ति झूठे प्रलोभन दिखाकर किसी को ठगेगा नहीं । धर्माचरण कर स्वयं में साधकत्व उत्पन्न करने का प्रयत्न करेगा । वर्तमान स्थिति में परमात्मास्वरूप स्थिर पुरुष को शास्त्रविहित कर्म करने चाहिए । समाज को दिशा देने वाला व्यक्ति यदि धर्माचरण करेगा, तो उसमेंे चैतन्य जागृत होकर वह जैसा कहेगा, उसके अनुसार जनता आचरण करेगी । इसलिए उसका प्रभाव समाज पर पडेगा ।
 

३ आ. प्रत्येक कार्य परिपूर्ण करने और अन्यों से करवा लेने पर ही हिन्दू राष्ट्र आएगा !

अब साधकों को प्रत्येक कार्य परिपूर्ण और त्रुटि रहित करना चाहिए । दिनभर का कोई कृत्य अथवा सेवा परिपूर्ण ही होनी चाहिए । स्वयं परिपूर्ण कृत्य करने तथा अन्यों से करवाने से सभी हिन्दू राष्ट्र की दिशा में अग्रसर होंगे।
 

३ इ. हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने और उसे सुरक्षित रखने के लिए भावी पीढी में हिन्दू राष्ट्र का बीज बोने का प्रयत्न करना आवश्यक !

वर्तमान स्थिति में जिस प्रकार हिन्दू राष्ट्र आने के लिए प्रयत्न करना आवश्यक है, उसी प्रकार उसे आगामी सहस्रों वर्ष तक सुरक्षित रखने के लिए भावी पीढी में हिन्दू राष्ट्र का संस्कार अंकित करना आवश्यक है । अभी यदि हिन्दू राष्ट्र का बीज नहीं बोया गया, तो कुछ वर्षों के लिए हिन्दू राष्ट्र आएगा और तत्पश्‍चात की पीढियां उसे सुरक्षित रखने में असमर्थ सिद्ध हुईं, तो हिन्दुआें की स्थिति और भी विकट हो जाएगी । ऐसा न हो, इसलिए दूरगामी विचार कर भावी पीढी में हिन्दू राष्ट्र का बीज बोना चाहिए । ऐसा दूरगामी विचार कर और निसर्गनियमानुसार आचरण करने से ही भावी पीढियां सुख से जीवन जी सकेंगी और अपना अभ्युदय करवा सकेंगी ।
 

३ ई. साधकों के मन में हिन्दू राष्ट्र संबंधी ध्येय तथा नीतियां स्पष्ट होना आवश्यक !

हिन्दू राष्ट्र स्थापना का ध्येय सामने रखकर कार्य करने वाले साधकों के मन में हिन्दू राष्ट्र से संबंधित ध्येय और नीतियां स्पष्ट होनी चाहिए । हमारेे संकल्प समान होने चाहिए । कार्य करने वाले सभी के हृदय और मन इस दिशा में एक होने चाहिए । इससे आपसी संगठन से कार्य सफल होगा । सभी की साधना ईश्‍वर को अपेक्षित होने पर सभी की वाणी में चैतन्य आएगा और इसी से शीघ्र कार्यसिद्धि होगी ।
समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः ।
समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति ॥ – ऋग्वेद, मंडल १०, सूक्त १९१, ऋचा ४ और अथर्ववेद, कांड ६, सूक्त ६४, खंड ३
अर्थ : हमारे संकल्प एकसमान हों, हमारे हृदय एक हों, मन एकसमान हों, इससे हमारे कार्य संगठितरूप से एवं उत्तम प्रकार से संपन्न होंगे ।
 

४. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कार्य को महान कार्य के रूप में देखने पर ही आज की भयंकर स्थिति में सुधार आएगा और सभी का जीवन सुखमय होगा !

भटके हुए समाज को दिशा देना, यूनो का कार्य है; परंतु यह संगठन यह कार्य करने में असमर्थ सिद्ध हो चुका है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी संपूर्ण जगत को दिशा दे रहे हैं । ईश्‍वर ने संपूर्ण जगत को सुधारने का महान कार्य परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को दिया है । वे सनातन संस्था के रूप में निरपेक्ष लोकसंग्रह कर हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने के लिए प्रयत्नरत हैं । उनके इस कार्य को छोटा न समझें । सभी को इस कार्य की ओर महान कार्य के रूप में देखना चाहिए । ऐसा करने से ही आज की भयानक स्थिति में सुधार आकर सभी का जीवन सुखमय होगा ।

५. धर्मप्रसार का कार्य ईश्‍वर के आंतरिक सत्संग में रहकर करने से ही ईश्‍वर को अपेक्षित, ऐसा होगा !

साधकों को यह भान रखते हुए कार्य करना चाहिए कि ईश्‍वर ने ही हमें धर्मप्रसार की सेवा दी है । समाज का उद्बोधन योग्य प्रकार से होना चाहिए । धर्मप्रसार का कार्य ईश्‍वर के आंतरिक सत्संग में रहकर करने से ही वह ईश्वर को अपेक्षित ऐसा होगा । इसके लिए निरंतर नामजप और प्रार्थना करनी चाहिए । ईश्वर द्वारा सौंपा गया महान धर्मप्रसार का कार्य करने का अवसर मिल रहा है, इसके प्रति निरंतर कृतज्ञताभाव में रहना चाहिए।
 
हे भगवान श्रीकृष्ण, आप हम सभी से आपको अपेक्षित कार्य करवा लीजिए, ऐसी आपके चरणों में प्रार्थना है!
 
– प.पू. पांडे महाराज, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.

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