‘शनिवार २२.६.२०१९ (ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष पंचमी) को रात ११ बजकर २३ मिनट को मंगल ग्रह कर्क राशि में प्रवेश करेगा । (कर्क राशि में मंगल ग्रह को अशुभ (नीच राशि में) माना गया है ।) मंगल ग्रह एक राशि में डेढ मासतक रहता है । इस डेढ मास के पहले ८ दिनोंतक अधिक परिणामकारी फल मिलता है । २२ जून से ८ अगस्त २०१९ तक मंगल ग्रह कर्क राशि में होगा । ९.८.२०१९ को प्रातः ४.४६ बजे मंगल ग्रह सिंह राशि में प्रवेश करेगा ।
(संदर्भ : दाते पंचांग)
१. कर्क राशि में मंगल ग्रह को अशुभ (नीच राशि मे) माने जाने का कारण
‘ज्योतिषशास्त्र में ग्रहों की उच्च एवं नीच राशियों को सुनिश्चित किया गया है । ‘जब ग्रह किसी नीच राशि में होता है, तब वह जिन बातों का कारक होता है तथा कुंडली के जिन स्थानों का स्वामी होता है, उनके लिए वह अशुभ फलदायी सिद्ध होता है, यह नियम है । कर्क राशि जलतत्त्व की राशि है । कर्क राशि का स्वामी चंद्रमा ग्रह है । कर्क राशिमें प्रेम, सहानुभूति, संवेदनशीलता, चंचलता एवं भावनाप्रधानता ये गुणधर्म दिखाई देते हैं । मंगल ग्रह अग्नितत्त्व का और पुरुषकारक ग्रह है । मंगल ग्रह को पराक्रम, अन्याय के विरुद्ध क्षोभ, साहस और धैर्य जैसे गुणधर्मों के प्रकट करने का अवसर नहीं मिलता । अतः कर्क राशि में मंगल ग्रह को अशुभ माना गया है ।
२. राशि के अनुसार मंगल ग्रह के स्थान
कर्क राशि में प्रवेशित मंगल कर्क राशि के लिए पहला, मिथुन राशि के लिए दूसरा, वृषभ राशि के लिए तीसरा, मेष राशि के लिए चौथा, मीन राशि के लिए पांचवा, कुंभ राशि के लिए छटा, मकर राशि के लिए सांतवा, धनू राशि के लिए आंठवां, तूला राशि के लिए दसवां, कन्या राशि में ११वां और सिंह राशि के लिए १२वां है ।
३. मंगल ग्रह का महत्त्व
मंगल ग्रह सूर्यमाला में पृथ्वी के बाहर स्थित पहला ही ग्रह है; इसलिए उसे बहिर्ग्रह कहा जाता है । उसके सूर्य के निकट होने से उसे सूर्य की शक्ति और तेज मिलता है । मंगल सूर्यमाला से ४ करोड ८० लाख मील दूरीपर है । मंगल पुरुष ग्रह है तथा वह लाल-भूरे रंग का है । वह प्राकृतिकदृष्टि से अतिपापग्रह है । मंगल अग्नितत्त्व का कारक है तथा वर्ण से क्षत्रिय है । मंगल ग्रह को ग्रहों के सेनापति माना जाता है । पराक्रमी, शूर, साहसिक, उत्तम नेतृत्वगुण, तथा कर्तृत्वता मंगल के गुणधर्म हैं ।
४. कर्क राशि में स्थित मंगल ग्रह से होनेवाले परिणाम
मंगल ग्रह शौर्य, पराक्रम, घरबार, भूमि, खेती, अधिकारपद, शक्ति एवं कर्तृत्व का कारक है । मंगल ग्रह के कर्क राशि में प्रवेश करनेपर मंगल ग्रह के कारकतत्त्वों से संबंधित अशुभ फल प्राप्त होने की संभावना होती है । इस अवधि में नूतन वास्तु अथवा भूमि से संबंधित लेनदेन टालने चाहिएं ।
४ अ. शारीरिक कष्ट
शरीर में मंगल का प्रभाव रक्तपर होता है । उसके कारण रक्त से संबंधित विकार, रोगप्रतिकार शक्ति का न्यून होना, प्राणशक्ति का न्यून होना, महिलाओं के विकारों का बढना तथा गरमी से संबंधित विकारों की संभावना होती है, उदा. बुखार आना, फोडे आना, मुंह में छाले आना, सिरदर्द, पित्त इत्यादि मंगल ग्रह विस्फोटक एवं दाहक होने से जलना, कट जाना, बिजली का झटका लगना, वाहनों की दुर्घटना आदि की संभावना होती है ।
४ आ. मानसिक कष्ट
अपनों-अपनों में मतभेद एवं संघर्ष की संभावना होती है । इसमें स्वभावदोषों की तीव्रता बढती है, उदा. क्रोध आना, निराशा प्रतीत होना, तीव्र स्वरूपवाले नकारात्मक विचार आना, वासना के विचार बढ जाना, उतावलापन, विस्मरण, स्वयं के मतपर दृढ रहना इत्यादि
४ ई. आध्यात्मिक परिणाम
१. साधना की अपेक्षा माया के विचारों की मात्रा बढ जाना
२. साधना के प्रयासों की निरंतरता घट जाना
३. साधना छोडकर आश्रम से घर जाने का मन होना
५. मंगल ग्रह के कर्क राशि के भ्रमण की अवधि में करनी आवश्यक साधना
५ अ. मंगल ग्रह के पीडानिवारक दान
सुवर्ण, तांबा, पुष्कराज, मसूर की दाल, गूड, लाल वस्त्र एवं लाल फूल
५ आ. मंगल का पौराण मंत्र
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कांतिसमप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं च मंगलं प्रणमाम्यहम् ॥
– नवग्रहस्तोत्र, श्लोक ३
अर्थ : धरती के पेट से जन्मे, बिजली जैसी अंगकांति, हाथ में शक्तिअस्त्र धारण किए हुए तथा कुमारस्वरूप मंगल को मेरा नमस्कार ।
जापसंख्या : १० सहस्र
६. ग्रहों की अशुभ स्थिति में साधना का महत्त्व
‘गोचर कुंडली में विद्यमान (चालू ग्रहमानपर आधारित कुंडली में) ग्रह अशुभ स्थिति में हो, तो साधना न करनेवले व्यक्ति को अधिक कष्ट होने की संभावना होती है । इसके विपरीत साधना करनेवाले व्यक्ति को उसमें विद्यमान सात्त्विकता के कारण ग्रहों के कारण होनेवाले अशुभ परिणामों का बहुत कुछ कष्ट नहीं होता । इस अवधि में यदि अधिक कष्ट हो रहा हो, तो ‘ॐ गं गणपतये नमः ।’ नामजप करें अथवा उक्त दिया हुआ मंगल का पौराण मंत्र का जाप करें ।
अध्यात्म की एक विशेषता यह है कि उसमें अनुकूल काल की अपेक्षा प्रतिकूल काल में की गई साधना से आध्यात्मिक उन्नति तीव्रगति से होती है । अतः साधक अपने मनपर अशुभ ग्रहस्थिति का परिणाम न कर लेकर साधना के प्रयास अधिकाधिक करने की ओर ध्यान दें । इस अवधि में साधक अहंनिर्मूलन प्रक्रिया को तडप के साथ और श्रद्धा के साथ अपनाई, तो उससे अधिक लाभ होगा ।’
– श्रीमती प्राजक्ता जोशी, ज्योतिष फलित विशारद, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, ज्योतिष विभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा(२०.६.२०१९)
स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात