१. ‘सनातन संस्था के साधक मेरे पास महाप्रसाद ग्रहण करने
हेतु आते थे; इसके कारण पहली बार मेरेपर किसी प्रकार का ऋण नहीं हुआ !’
कुंभपर्व में वंदनीय उपस्थित परमहंस धाम, वृंदावन के महामंडलेश्वर भैया दासजी महाराज ने कहा, ‘‘प्रत्येक कुंभपर्व के पश्चात मुझपर ऋण हो जाता है; किंतु इस कुंभ में पहली बार ही मुझपर किसी प्रकार का ऋण नहीं हुआ है । यह केवल आपके (सनातन संस्था के) सभी साधक मेरे पास महाप्रसाद ग्रहण करने हेतु आते थे; इसी कारण ही संभव हुआ है, ऐसा मुझे लगता है ।’’
२. सनातन संस्था के प्रति प्रेमभाव एवं अपनेपन के कारण अंततक
साधकों के लिए महाप्रसाद का प्रबंध करनेवाले महामंडलेश्वर भैया दासजी महाराज !
२०.२.२०१९ को वे कुंभपर्व से वापस जानेवाले थे; उसकी पहली रात को उन्होंने हमें ‘यह हमारी ओर से अंतिम महाप्रसाद है’, ऐसा बताया था; परंतु दूसरे दिन सुबह भी उन्होंने भ्रमणभाष कर हम सभी को महाप्रसाद ग्रहण करने हेतु आमंत्रित किया । वहां जानेपर साधकों से उन्होंने कहा, ‘‘मेरे मन में यह विचार आया कि आप इतना भोजन कैसे बनाएंगे ? इसलिए आपके लिए सुबह का भोजन बनाकर ही हम यहां से जाएंगे; इसलिए मैंने आपको भ्रमणभाष कर बुला लिया ।’’ उन्होंने जाते समय भोजन बनाने हेतु बडे बरतन और अनाज भी हमें दिया ।