परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का कक्ष तथा उससे संबंधित वस्तुओं में आए बुद्धिअगम्य परिवर्तन !

संतों के केवल अस्तित्व से ही वातावरण की शुद्धि होती है । संतों के सान्निध्य में स्थित वस्तुओं पर भी उनके चैतन्य का परिणाम दिखाई देता है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी समष्टि गुरु एवं जगद्गुरु होने के कारण उनका अवतारकार्य संपूर्ण ब्रह्मांड में चालू रहता है । इस कार्य को पूर्णत्व की ओर ले जाने हेतु उनके कक्ष में कार्यरत पंचतत्त्व अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होती हैं । इसलिए अवतारी कार्य के चालू रहने के समय उनसे सूक्ष्म देह से प्रक्षेपित तरंगों का परिणाम उनके कक्षपर होकर कक्ष के वातावरण में पंचमहाभूतों के स्तरपर विविध परिवर्तन आते हैं । ये बुद्धिअगम्य परिवर्तन कोई चमत्कार नहीं हैं, अपितु आसपास के घटकोंपर साधना के कारण क्या परिणाम होते हैं, इसका शास्त्रशुद्ध अध्ययन है । परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने केवल इन दैवीय परिवर्तनों को जान लिया, ऐसा नहीं; अपितु उन्होंने उसके पीछे की सूक्ष्म की प्रक्रिया और कारणमीमांसा भी की है । इन परिवर्तनों के अध्ययन के समय यह भी ध्यान में आया कि अनिष्ट शक्तियों के विरुद्ध का सूक्ष्म का युद्ध जैसे-जैसी तीव्र बनता जा रहा है, वैसे-वैसे सनातन को ईश्‍वरीय सहायता भी मिल रही है । परात्पर गुरु डॉ.आठवलेजी का निवासकक्ष, ऐसे अच्छे परिवर्तनों का उद्गमस्थान होता है । उसके पश्‍चात विश्‍वभर के साधकों को अपने-अपने स्थानपर अल्पाधिक अंतर से इन्हीं परिवर्तनों का अनुभव होता है । इससे ‘अध्यात्म एक शास्त्र है’, यही सिद्ध होता है ! यहां उनमें से कुछ चुनिंदा अच्छे परिवर्तन प्रकाशित कर रहे हैं ।

 

१.परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कक्ष में आए बुद्धिअगम्य परिवर्तन !

अ.  खिडकी की कांच से तेजतत्त्व के कारण अधिक स्पष्टता से
दिखाई दे रहा बाहरका दृश्य. यह तेजतत्त्व के स्तर का परिवर्तन है ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कक्ष की खिडकी की कांच से तेजतत्त्व कारण सुस्पष्ट दिखाई देनेवाला बाहर का दृश्य

आ. खिडकी की कांच से बाहर देखते समय
(खोली के दृश्य के स्थानपर) दर्पण के प्रतिबिंब की भांति दिखाई देनेवाला दृश्य

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कक्ष की खिडकी की कांच से बाहर देखते समय (कक्ष के दृश्य के स्थानपर) दर्पण के प्रतिबिंब की भांति दिखाई देनेवाला बाहर का दृश्य

इ. पारदर्शी कांच में मूल घटक की अपेक्षा स्पष्ट प्रतिबिंब दिखाई देना

परात्पर गुरु डॉक्टरजी के कक्ष के द्वार की पारदर्शी कांच में दिखाई देनेवाला उसी कक्ष की छज्जा की पीली रेलिंग का प्रतिबिंब मूल रेलिंग की अपेक्षा अधिक स्पष्टता से दिखाई दे रहा है । यह आपतत्त्व के स्तर का एक अच्छा परिवर्तन है । (वर्ष २०१४)

ई. श्‍वेत दीवारपर उत्साहवर्धक हरी आभा

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कक्ष की श्‍वेत दीवारपर हरी आभा आ गई है । यह तेजतत्त्व के स्तर का परिवर्तन है ।

उ. आम के वृक्ष की आश्रम की दिशा में अग्रसर शाखा को अधिक संख्या में आम आना

आश्रम के मुख्य प्रवेशद्वार के पास स्थित आम के वृक्ष को अप्रैल २०१३ तथा अप्रैल २०१४ इन २ वर्षों से आश्रम की दिशा में अग्रसर शाखा में अधिक आम के फल आते हैं ।

 

२. प.पू. डॉक्टरजी से संबंधित वस्तुओं में आए अच्छे परिवर्तन

संतों में सत्त्वगुण बडी मात्रा में होता है । संतों के अस्तित्व के कारण उनके नित्य उपयोग की वस्तुओं में भी सात्त्विकता का संक्रमण होने लगता है । परात्पर गुरु डॉक्टरजी के उपयोग की वस्तुएं भी अब सात्त्विक बनकर उनमें अच्छे परिवर्तन आए हैं । इन वस्तुओं का जतन किया गया है और उनके संदर्भ में वैज्ञानिक पद्धति से शोधकार्य चल रहा है ।

अ. प्रेमभाव के कारण चौबंदी का कहीं-कहींपर गुलाबी हो जाना

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी में विद्यमान प्रेमभाव के कारण उनके उपयोग की श्‍वेत रंग की चौबंदी के रंग में परिवर्तन आकर वह कहीं-कहीं गुलाबी रंग की हो गई है । (वर्ष २००९)

आ. दैवीय इत्र बन जाना और उसमें बढोतरी होना

१. प.पू. डॉक्टरजी के पैरों के तलुओं को तेल का मर्दन करने के लिए उपयोग किए जानेवाले (कांच का मर्तबान) कांस्य के कटोरे में इत्र बन गया । (वर्ष २००७) २. जिस प्लास्टिक की थैली में यह कांस्य का कटोरा रखा गया है (कांच के मर्तबान में) इत्र की मात्रा बढ गई है । (वर्ष २०११)

इ. २ वर्षोंतक उपयोग कर भी दाडी का पल्ला कुंद न होना

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी में विद्यमान तेजतत्त्व के कारण उनके द्वारा दाडी के पल्ले का २ वर्ष से भी अधिक दिनोंतक उपयोग कर भी वह पल्ला कुंद नहीं हुआ है । ऐसे कई पल्ले संग्रह में रखे गए हैं ।

ई. मग का मुट्ठी के पास श्‍वेत रंग का होना

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी में विद्यमान निर्गुण तत्त्व के कारण उनके द्वारा ७ वर्षोंतक उपयोग किया गया मग उसकी मुट्ठी के पास श्‍वेत रंग का हो गया है । (वर्ष २०१४)

उ. संत भक्तराज महाराज के चित्रपर स्थित कांच में
दीप का (ट्यूबलाईट) का तरंग की भांति दिखाई देनेवाला प्रतिबिंब

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कक्ष में स्थित पूजाघर में रखे गए संत भक्तराज महाराज के चित्र की कांच में दीप का (ट्यूबलाईट का) तरंग की भांति दिखाई देनेवाला प्रतिबिंब

 

३. अपनेआप उत्पन्न दैवीय पदार्थ तथा दैवीय आकार !

कक्ष में दत्त के चित्र के पीछे बाजू में अपनेआप उत्पन्न श्‍वेत रंग की विभूति । उस विभूति को एकत्रित करते समय डब्बी में अंकित ‘ॐ’ दिखाया गया है ।
वर्ष २००९ तक उपयोग किए गए तथा उसके पश्‍चात जतन किए गए डिब्बे में सूजी जैसा पदार्थ उत्पन्न हुआ ।
योगविशेषज्ञ प.पू. दादाजी वैशंपायन द्वारा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को दिए गए रुद्राक्ष को जिस थैली में रखा गया था, उस थैली को प्राप्त शंख का आकार

 

४. प्रतिदिन पूजा-अर्चना किए जानेवाले उनके कक्ष में स्थित
संत भक्तराज महाराज के छायाचित्र में काल के अनुसार आए परिवर्तन

मूल छायाचित्र

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा प्रतिदिन पूजा-अर्चना किया जानेवाला उनके कक्ष में स्थित संत भक्तराज महाराज का छायाचित्र (वर्ष २०१०) । कालांतर के पश्‍चात इस छायाचित्र में अनेक अच्छे परिवर्तन दिखाई दिए ।

मुखमंडल का पीला हो जाना तथा प्रभामंडल का बिरला होना

छायाचित्र में स्थित मुखमंडल का मूल चित्र की अपेक्षा पीला हो जाना, ज्ञानदान का, तो प्रभामंडल का अपेक्षाकृत पीला हो जाना अपेक्षाकृत सूक्ष्म के कार्य के लिए निर्गुण तत्त्व का प्रक्षेपण होने का दर्शक । (मार्च २०१२)

मुखमंडल का अधिक पीला हो जाना तथा प्रभामंडळ का गुलाबी हो जाना

संत भक्तराज महाराज के छायाचित्र में ‘मुखमंडल अधिक पील हो जाना’, उच्च स्तर के ज्ञानदान का तथा ‘प्रभामंडल का गुलाबी हो जाना’, प्रेम की वर्षा का दर्शक (मार्च २०१३)

मुखमंडल का श्‍वेतसा पीला तथा प्रभामंडल का घना और गुलाबी बन जाना

छायाचित्र में ‘मुखमंडल का श्‍वेतसा पीला और तनिक अस्पष्ट होना’, निर्गुण तत्त्व की ओर अग्रसर होना दर्शाता है, तो ‘प्रभामंडल का घना और गुलाबी हो जाना’, धर्मप्रसार हेतु आवश्यक कार्यकारी शक्ति का प्रकटीकरण दर्शाता है । (मार्च २०१६)

 

कक्ष में आए कुछ अन्य विशेषतापूर्ण परिवर्तन निम्न प्रकार से हैं –

१. फर्श मुलायम बन गए हैं ।

२. कक्ष की दीवारों से प्रक्षेपित होनेवाले अच्छे तरंगों का हाथ से स्पर्श कर अनुभव किया जा सकता है ।

३. कक्ष में दैवीय गंध आना, दैवीय प्रकाश दिखाई देना, दैवीय नाद सुनाई देना आदि अनुभूतियां भी होती हैं ।

४. परात्पर गुरु डॉक्टरजी के कक्ष का तापमान अन्य कक्षों की अपेक्षा अल्प होना तथा कक्ष में ठंडक प्रतीत होना ।

५. कक्षों के प्रकाश में बढोतरी होना, साथ ही देवताओं के चित्रों में प्रकाश का बढना ।

६. परात्पर गुरु डॉक्टरजी के कक्ष में स्थित पूजाघर में रखी गई संत भक्तराज महाराज की प्रतिमा की ओर किसी भी दिशा में देखा जाए, तो वे सांस लेते हुए दिखाई देते हैं ।

७. परात्पर गुरु डॉक्टरजी के निवासकक्ष के चारों बाजूओं की (दिशाओं की) भूमि की ओर देखनेपर भूमि का आगे-पीछे और उपर-नीचे होता हुआ प्रतीत होना ।

८. परात्पर गुरुदेवजी के कक्ष का आकार बढकर कक्ष का भव्य प्रतीत होना ।

 

बुद्धिअगम्य परिवर्तनों के संदर्भ में परात्पर गुरु डॉक्टरजी का विश्‍लेषण

‘विविध अच्छी और बुरी अनुभूतियों के संदर्भ में मेरे संदर्भ की वास्तविकता ज्ञानेश्‍वरी में बताए जाने की भांति निम्न प्रकार से है –

‘यह मेरे कारण हुआ । परंतु मैने नहीं किया ।’

-ज्ञानेश्‍वरी, अध्याय ४, श्‍लोक ८१

अर्थ : इसमें ‘मेरे कारण हुआ’ का अर्थ मेरे अस्तित्व के कारण हुआ । इसमें ‘मैं’ पन परमेश्‍वर का है, तो ‘मैने नहीं किया’ का अर्थ इसका कर्तापन मेरे पास नहीं है । इसका एक सुंदर उदाहरण यह है कि जब सूर्योदय होता है, तब सभी लोग जागते हैं, फूल खिलते हैं इत्यादि । यह केवल सूर्य के अस्तित्व के कारण होता है । सूर्य किसी से नहीं कहता, ‘उठो’ अथवा वह फूलों से नहीं कहता, ‘अब तुम खिल जाओ’ ! – परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

 

आध्यात्मिक शोधकार्य की ओर सिखने की दृष्टि से देखें !

‘सनातन के साधक साधना के कारण व्यक्ति का अंतर्मन, बाह्यमन और शरीरपर होनेवाले परिणामों का आध्यात्मिक शोधकार्य की दृष्टि से अध्ययन कर रहे हैं । इस शोधकार्य के एक भाग के रूप में सनातन प्रभात नियतकालिकों में सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी के शरीरपर अंकित चिन्ह, (उदा. ॐ और अनिष्ट अनिष्ट शक्तियों के मुख) प्रकाशित किए जा रहे हैं । सनातन संस्था की ओर से ये चिन्ह किन कारणों से अंकित होते हैं, इसके शोधकार्य में सहायता हेतु वैज्ञानिकों का भी आवाहन किया गया है । ‘जिज्ञासु ही ज्ञान का अधिकारी होता है’, इस वचन के अनुसार साधना के कारण होनेवाले परिणामें की ओर जिज्ञासु वृत्ति से देखा, उससे सिखने की और पूछकर लेने की वृत्ति रखी गई, तभी ईश्‍वर इस संदर्भ का अमूल्य ज्ञान हमें देंगे, ‘अन्यथा यह झूठ है !’, ‘ऐसा कैसे हो सकता है?’, इस प्रकार के बुद्धिवादे में फंस जाने से ईश्‍वर हमें भरभर कर जो देन दे रहे हैं, उससे वंचित रहने का कृत्य आपसे हो जाएगा ! – संपादक

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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