हिन्दू राष्ट्र की स्थापना और विश्व कल्याण हेतु तमिलनाडू के महान योगी प.पू. रामभाऊस्वामीजी ने किया सनातन संस्था के गोवा स्थित आश्रम में उच्छिष्ट गणपति यज्ञ !
संकल्प कर यज्ञ में दी जानेवाली प्रथम आहुति
को स्पर्श करते हुए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी, बाएं
से पू. (श्रीमती) अंजली गाडगीळ व पू. डॉ. मुकुल गाडगीळ
रामनाथी (फोंडा, गोवा) – छत्रपति शिवाजी महाराज के सद्गुरु रामदासस्वामी की परंपरा के तथा तमिलनाडू स्थित तंजावुर के संत एवं श्रीगणेशजी के उपासक परम पूज्य रामभाऊस्वामीजी का, सनातन संस्था के गोवा स्थित आश्रम में १३ जनवरी को आगमन हुआ ।
उनके साथ उनके पुत्र एवं शिष्य श्री. गणेश गोस्वामीजी भी थे । मकर संक्राति के शुभ अवसर पर साधकों की रक्षा तथा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु संस्था के आश्रम में उच्छिष्ट गणपति यज्ञ भावपूर्ण वातावरण में संपन्न हुआ । विश्व के कल्याण हेतु, साधकों की रक्षा होने तथा संसार में शांति व्याप्त होने के लिए प.पू. रामभाऊस्वामीजी यज्ञ करते हैं, तथा यज्ञ की अग्नि में प्रवेश करते हैं । इस यज्ञ के यजमान पद पर, सनातन संस्था के संत दंपति पू. डॉ. मुकुल गाडगीळ तथा पू. (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी थे । उन्होंने विधिवत गोपूजन, गजराज पूजन एवं धर्मध्वज पूजन किया गया ।
उच्छिष्ट शब्द के अर्थ
२. ईश्वव का वर्णन करते समय वेद नेति नेति, अर्थात यह इतना ही नहीं, यह इतना ही नहीं, यह कहते हैं । इस प्रकार प्रत्येक वस्तु के लिए वह नहीं, वह भी नहीं, ऐसा कहने पर अंत में जो शेष रहता है, वही है परब्रह्म ।
उच्छिष्ट (उत् + शिष्ट), अर्थात सर्व व्याप्त कर शेष रहा, अर्थात परब्रह्म । यहां उच्छिष्ट गणपति अर्थात महागणपति अथवा परब्रह्मस्वरूप गणपति ।
– परमपूजनीय रामभाऊस्वामी, तंजावुर, तमिलनाडू. उच्छिष्ट गणपति यज्ञ
उच्छिष्ट गणपति यज्ञ
गणपति, ॐकार स्वरूप हैं । इस गणपति रूपी परब्रह्म के लिए किया जाने वाला यज्ञ, अर्थात उच्छिष्ट गणपति यज्ञ !
वैज्ञानिक और यज्ञ संबंधी अभ्यासी तथा इस विषय की शिक्षा लेनेवाले विद्यार्थियों को वैज्ञानिक दृष्टि से शोध करने की विनती !
१. परम पूजनीय रामभाऊस्वामीजी पर अग्नि की दाहकता का परिणाम नहीं होता । उनकी देह कहीं भी जलती नहीं तथा उनके शरीर पर कोई शारीरिक घाव नहीं होते, इसके पीछे वैज्ञानिक कारण क्या हो सकता है ?
२. इसी प्रकार यज्ञ की अग्नि में प्रवेश करने पर भी उनके द्वारा परिधान किए वस्त्र अथवा शाल जलते नहीं है; परंतु यही शाल अन्यत्र की अग्नि के संपर्क में आने पर, तुरंत जल उठती है, इसका क्या वैज्ञानिक कारण होगा?
३. वर्ष १९७५ से उन्होंने जलप्राशन नहीं किया है । वर्ष १९७७ से प्रतिदिन केवल दो केले और एक प्याली दूध लेते हैं । जिस दिन यज्ञ होता है, उस दिन वे कोई आहार नहीं लेते, किंतु रात में केवल एक प्याली दूध पीते हैं । ७८ वर्ष के होकर भी उनका स्वास्थ्य अच्छा होने का क्या वैज्ञानिक कारण होगा ?
४. परम पूजनीय रामभाऊस्वामीजी द्वारा किए यज्ञ के धुएं का वातावरण पर कितनी दूर तक और क्या परिणाम होता है ?, इस संदर्भ में वैज्ञानिक दृष्टि से शोध करनेवालों की सहायता मिलने से हम कृतज्ञ रहेंगे !
यज्ञ देखकर भी प.पू. रामभाऊस्वामीजी की महानता न स्वीकारनेवाले बुद्धिवादी !