१. भूमाता को की गई प्रार्थना
‘हे भूमाता वसुंधरा, आप साक्षात माता हैं । आपने मुझे मेरे जन्म से ही अन्न, वस्त्र और आश्रय इन आवश्यकताओं की आपूर्ति कर उपकृत किया है । इसके लिए मैं आपके चरणों में शरणागत भाव से कृतज्ञ हूं; परंतु हे भूमाता, मुझे मेरे दिन का आरंभ आपपर चरण रखकर करना पडता है । इस अपराध के लिए आप मुझे क्षमा करें । मेरी आपके चरणों में अनन्यभाव से प्रार्थना है कि मुझे आपके आशीर्वाद सदैव मिलते रहें और संकटकाल में आप मेरी रक्षा करें ।
२. आश्रम के वास्तु में रहने का अवसर मिलने से की गई प्रार्थना
‘हे श्रीकृष्णजी, आपने मुझे इस चैतन्यदायक वास्तु में अर्थात आपके रक्षाकवच में ही मुझे सुरक्षित रखा है; इसके लिए मैं आपके सुकोमल चरणों में कृतज्ञ हूं । आप से और वास्तुदेवता से मेरी प्रार्थना है, ‘आप ही मुझसे इस वास्तु में रहकर गुरुदेवजी को अपेक्षित साधना करवा लें । इस वास्तु में रहने से मुझ में भाववृद्धि हो । इस वास्तु में मुझे और मेरे परिवारजनों को निरामय आनंद प्राप्त हो ।’
३. ईश्वर को अपेक्षित सेवा हो; इसके लिए की गई प्रार्थना
‘हे श्रीकृष्णजी, मुझसे होनेवाले प्रत्येक सेवा निहित समयसीमा में, अचूकता के साथ, भावपूर्ण एवं आनंद के साथ हों’, यह आपके चरणों में प्रार्थना है ।
४. स्वभावदोष एवं अहं का भान होने हेतु की गई प्रार्थनाएं
अ. ‘हे भगवान, हे दयाघन, मुझे मुझ में विद्यमान स्वभावदोष एवं अहं का भान हो’, यह आपके चरणों में प्रार्थना है ।
आ. ‘हे श्रीकृष्णजी, आप प्रतिदिन मुझे मुझ में विद्यमान स्वभावदोष एवं अहं दिखा दें और उनके निर्मूलन हेतु मुझ से प्रामाणिकता के साथ प्रयास करवाकर लें । आपका प्रत्येक गुण मुझमें आए ।’
इ. ‘हे भगवान, मेरी समझ में कुछ नहीं आता; किंतु मुझे आपके चरणों में आना है । मुझे अंततक आपका साथ चाहिए । उसके लिए आपको अपेक्षित प्रयास मुझ से नहीं होते । ‘मेरे स्वभावदोष निश्चितरूप से कौन से हैं और उनके निर्मूलन हेतु मुझे कैसे प्रयास करने चाहिएं ?, यह भी मेरी समझ में नहीं आता । हे भगवान, अब आप ही मेरे लिए दौडकर आईए और आपको जो अपेक्षित है, वह आप करें । आपतक पहुंचने हेतु आप ही मुझ से तडप के साथ प्रयास करवा लेकर मुझे आपके चरणों में लें, यह आपके चरणों में नतमस्तक होकर प्रार्थना करता हूं ।
५. निरंतर सीखने की स्थिति में रहना संभव हो; इसके लिए की गई प्रार्थनाएं
अ. ‘हे श्रीकृष्णजी, प्रातः जागने से लेकर रात को सोनेतक की अवधि में होनेवाला प्रत्येक प्रसंग आप मेरे लिए ही घटित कर रहे हैं, इसका मुझे सदैव भान रहे । मेरे जीवन में घटित होनेवाले प्रत्येक प्रसंग के मूलतक जाकर मुझे उससे सीखना संभव हो । उसके लिए आप मुझे सदैव वर्तमानकाल में रखें । मुझमें सीखने की वृत्ति सदैव जागृत रहे’, यह आपके कोमल चरणों में अनन्य शरणागत भाव से प्रार्थना करता हूं ।
आ. ‘हे श्रीकृष्णजी, मुझे प्रत्येक व्यक्ति, स्थिति और प्रसंगों से सीखना संभव हो ।’
इ. ‘हे श्रीकृष्णजी, ‘मुझे सब ज्ञात है’, मेरे इस भ्रम को दूर कर मुझे इस सृष्टि के समस्त जीवों से सीखना संभव हो । उनके प्रति मेरे मन में निरपेक्ष प्रेम एवं कृतज्ञताभाव उत्पन्न हो’, यह आपके चरणों में प्रार्थना है ।
ई. ‘हे श्रीकृष्णजी, मुझे सदैव परेच्छा से आचरण करना तथा निरपेक्ष रहना संभव हो’, यह आपके चरणों में नतमस्तक होकर प्रार्थना है ।
६. स्वयं में भाव उत्पन्न होने हेतु की गई प्रार्थनाएं
अ. ‘हे दयानिधान, आप ही मेरे अंतकरण में आप के प्रति दृढ भाव उत्पन्न करें, यह आपके चरणों में शरणागत भाव से प्रार्थना है ।’
आ. ‘हे भगवन्, आप का अनुभव करना हमारे लिए संभव नहीं है; किंतु ’शरणागति’, तो आपके द्वारा प्रदान की गई भावभेंट हैं । इसके माध्यम से हमें आपके भावविश्व का पुनः-पुनः अनुभव करना संभव हो तथा आपके भावविश्व में अखंडित रहकर हमें साधना में तीव्रगति से अग्रसर होना संभव हो, यह आपके चरणों में शरणागत भाव से प्रार्थना करता हूं ।’
इ. ‘हे ईश्वर, संत तो पृथ्वीपर विद्यमान आपके सगुण रूप होते हैं । संतों की सेवा करने से उनकी कृपा होकर मुझे आपकी प्राप्ति होनेवाली है, यह भावग मेरे मन में सदैव टिका रहे, यह आपके चरणों में भावपूर्ण प्रार्थना है ।’
ई. ‘हे दयानिधि, ‘आप इस संपूर्ण चराचर में व्याप्त हैं’, यह भाव मेरे मन में सदैव रहे, यह आपके चरणों में अनन्यभाव से प्रार्थना है ।
उ. ‘हे भगवन्, हे दयानिधि, आप ही कर्ता और करवानेवाले हैं । ‘चलता है यह शरीर ईश्वर की इच्छा से । चलानेवाले-बुलवानेवाले हरि नारायण ॥’, यह भाव आप ही मुझ में उत्पन्न करें, यह आपके चरणों में शरणागत भाव से प्रार्थना है ।’
७. फूल की भांति बनना संभव हो; इसके लिए की गई प्रार्थनाएं
अ. ‘हे श्रीकृष्णजी प्रातःकाल में कली के रूप से नारायण के दर्शन हेते हैं । उसके पश्चात उस कली का सुंदर पुष्प में रूपांतरण होता है । यह पुष्प सृष्टि के सभी को ही अपने अस्तित्व, अपनी सुगंध और दर्शन से आनंद प्रदान करता है । ‘मेरा अस्तित्व सूर्यास्ततक ही है’, यह उस पुष्प को ज्ञात होते हुए भी वह पुष्प परोपकार कर सभी को भर-भरकर आनंद देता है और स्वयं आनंदित रहकर सभी को आनंदित करनेवाले पुष्प की भांति मुझे भी निरंतर प्रसन्न, हंसमुख और अंतर्मन से आनंदित रहना संभव हो, यह आपके चरणों में प्रार्थना है ।’
आ. ‘हे श्रीकृष्णजी, एक दिन की आयु प्राप्त पुष्प स्वयं सदैव आनंदित रहकर दूसरों के लिए अपना सबकुछ समर्पित करता है । स्थिती अनुकूल हो, अथवा धूप, हवा, तुफाना अथवा वर्षा की प्रतिकूल स्थिति हो, वह पुष्प आनंदित और स्थिर होता है । तो मुझे भी आप किसी भी स्थिति में स्थिर रखें, यह आपके चरणों में प्रार्थना है ।
८. ईश्वर के अनुसंधान में रहना संभव हो; इसके लिए की गई प्रार्थनाएं
अ. ‘हे श्रीकृष्णजी, मुझे आपसे निरंतर बोलना संभव हो । सदैव मुझे आपके अनुसंधान में रहना संभव होकर आपके साथ एकरूप होना संभव हो, यह आपके चरणों में प्रार्थना करता हूं ।’
आ. ‘हे श्रीकृष्णजी, स्वयं के विचार में व्यस्त रहने की अपेक्षा ईश्वरप्राप्ति के विचार में रहना संभव हो; इसके लिए निरंतर आपके अनुसंधान में रहने का आप ही मुझ से प्रयास करवाकर लें, यह आपके चरणों में प्रार्थना है ।
९. आत्मनिवेदन करना संभव हो; इसके लिए की गई प्रार्थनाएं
अ. ‘हे दयानिधि, मेरे जीवन में उत्पन्न कोई भी समस्या मैं अनन्य शरणागत भाव से आप को बता सकूं, यह आपके चरणों में प्रार्थना है ।’
आ. ‘हे श्रीकृष्णजी, मुझे प्रामाणिकता, निर्मलता और खुलेमन से मेरी मन की सभी बातें आपको बताना संभव हो, यह आपके चरणों में अनन्य शरणागत भाव से प्रार्थना है ।’
– श्री. भालचंद्र जोशी, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल (२७.७२०१८)
Prarthana ek honi chahiye na ki alag alag Devi Devon ki kyuki ishwar ek hi hai roop Anant hai to jab roop hi us Anant Shakti k hai prarthana fir kisi se bhi kro Jani us perammeshwar tak hi
नमस्कार,
जी हां, परमेश्वर एक ही है । किन्तु वह निर्गुण, निराकार है । जब वह विविध कार्य करता है तो वह विविध देवी-देवताओं का, अवतारों का रूप लेकर हमारे लिए प्रकट होता है । उन विविध रूपों के प्रति प्रार्थना-कृतज्ञता व्यक्त कर हम अंत में उस परमेश्वर का ही स्मरण कर रहे है ।‘अनेक से एक में जाना’ और ‘एक से अनेक में जाना’ यह २ अध्यात्मशास्त्र के सिद्धांत हैं । इसके अनुसार एक परमेश्वर का रूप अनेक स्थानों पर अनुभव कर सकते है ।
वैसे ही ‘जितने विश्व में लोग, उतनी प्रकृतियां तथा उतने ईश्वरप्राप्ति हेतु साधनामार्ग’ यह भी एक अध्यात्मशास्त्र का सिद्धांत है । कोई ध्यानमार्गी हो तो उसे भगवान शिव प्रिय लगते होंगे, कोई ज्ञानमार्गी हो तो उन्हें गणेशजी और सरस्वती देवी की साधना करना अधिक भाता होगा, इत्यादि । किन्तु सभी का ध्येय अंतिमतः उस एक परमेश्वर से एकरूप होना ही है । इसलिए उन विविध मार्गों से साधना करनेवालों के लिए विविध उदाहरण दिए है ।