प्रभु श्रीराम के प्रति उत्कट भाव एवं राममंदिर निर्माण के लिए समर्पित अधिवक्ता हरि शंकर जैन संतपद पर विराजमान !

अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में संतपद प्राप्त करनेवाला पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी प्रथम हिन्दुत्वनिष्ठ !

पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी के सुपुत्र अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन (३३ वर्ष) एवं उनके पोते का भी ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर घोषित !

एक ही परिवार में एक ही समय पर पिता के संत होने के साथ-साथ उनके पुत्र एवं पोते का आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत घोषित होने की दुर्लभ घटना !

विद्याधिराज सभागार (रामनाथ देवस्थान), रामनाथी (गोवा) : धर्मरक्षा की तीव्र लगन, निष्काम भाव से सेवारत रहने की प्रवृत्ति, उत्साह का अक्षय स्रोत और ध्यान में-मन में-स्वप्न में केवल रामराज्य की, अर्थात हिन्दू राष्ट्र की लगन आदि विविध गुणों का संगम है देहली के ‘हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस’ संगठन के अध्यक्ष एवं उच्चतम न्यायालय में वकालत करनेवाले अधिवक्ता हरि शंकर जैन ! उनका प्रभु श्रीरामजी के प्रति उत्कट भाव है । अयोध्या की श्रीरामजन्मभूमि पर भव्य राममंदिर बनाया जाए; इसके लिए तन, मन, धन एवं प्राण भी समर्पित करने की उनकी तैयारी है । इस उद्देश्य से वे २९ वर्षाें से जीतोड न्यायालयीन संघर्ष कर रहे हैं । ‘हिन्दू राष्ट्र के लिए अखंड कार्यरत धर्मयोद्धा !’ अर्थात अधिवक्ता हरि शंकर जैन ! ऐसा उनका वर्णन किया जा सकता है । ऐसे निष्काम कर्मयोगी अधिवक्ता पू. हरि शंकर जैन (६५ वर्ष) के संतपद पर विराजमान होने की आनंदवार्ता हिन्दू जनजागृति समिति के मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने अष्टम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में दी । धर्मरक्षा के कार्य के साथ ही आध्यात्मिक गतिविधियों में भी पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी के पदचिह्नों पर चलनेवाले उनके सुपुत्र अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन (३३ वर्ष) एवं उनका पोता चि. वृषांक (१ वर्ष १० मास) इन दोनों की ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर जन्म-मृत्यु के फेरे से मुक्त होने की घोषणा हुई । इसे सुन उपस्थित हिन्दुत्वनिष्ठों का आनंद द्विगुणीत हो गया । हिन्दू जनजागृति समिति के मार्गदर्शक पू. नीलेश सिंगबाळजी के शुभहस्तों पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैन का सम्मान तथा अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन एवं चि. वृषांक का सत्कार किया गया । इस अवसर पर पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी की पत्नी श्रीमती उमा जैन, बहू श्रीमती डोना जैन, उनकी बेटी श्रीमती वैष्णवी दवे एवं दामाद श्री. सोहम् दवे भी उपस्थित थे ।

पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी का सम्मान करते हुए हिन्दू जनजागृति समिति के पू. नीलेश सिंगबाळजी
अधिवक्ता विष्णु शंकर जैनजी का सम्मान करते हुए पू. नीलेश सिंगबाळजी

सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने बताई
पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी की गुणविशेषताएं

१. त्यागी वृत्ति : गत ४० वर्षाें से वे राष्ट्र, धर्म एवं समाज के लिए अपने पैसे से जनहित याचिका प्रविष्ट कर संघर्ष कर रहे हैं ।

२. कर्तृत्ववान : कुछ वर्ष पहले नेपाल में ‘हिन्दू राष्ट्र का संविधान कैसा होगा ?’, इस पर चर्चा हो रही थी । तब नेपाल के जानकार लोग हिन्दू राष्ट्र के संविधान बनाने के लिए पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी की सहायता लेते थे । पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी सभी के आधारस्तंभ हैं ।

३. दो दिन पहले राष्ट्रीय अधिवक्ता अधिवेशन में जब उन्होंने मार्गदर्शन किया, तब अनेक लोगों को चैतन्य की अनुभूति हुई ।

 

पू. (अधिवक्ता) हरि शंकरजी जैनजी का मनोगत

परम पूज्य गुरुजी (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी) की कृपा से मुझे यह सम्मान मिला !

संतपद पद पर विराजमान होने पर पू. (अधिवक्ता) हरि शंकरजी जैन बोले, ‘‘आज का क्षण अत्यंत आनंददायी है । परम पूज्य गुरुदेवजी (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी) ने मुझे यह सम्मान दिया है । इस सम्मान से मेरा दायित्व और बढ गया है । इसके उपरांत अब मुझे और अधिक तत्परता और मन लगाकर सेवा करनी है । मुझसे अबतक की सेवा में जो कुछ कमी रह गई होगी, उसे अब दूर करना है और राममंदिर निर्माण के कार्य में अपना शेष जीवन समर्पित करना है । मेरा संत के रूप में सम्मान किया जाएगा, इसकी अपेक्षा मैंने कभी नहीं की थी । उपस्थित लोगों का प्रेम, रामभक्तों और भगवान का आशीर्वाद तथा परम पूज्य गुरुजी की (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की) कृपा के कारण यह हुआ ।’’

रामजन्मभूमि का अभियोग लडने के विषय में देवी सीता और श्री हनुमान का दृष्टांत होना

वर्ष १९९० के काल में रामजन्मभूमि प्रकरण को इतना महत्त्व नहीं था । न्यायालय में राममंदिर का अभियोग चल रहा था । इस अभियोग में मुझे भी रुचि थी । राममंदिर का अभियोग लखनऊ के उच्च न्यायालय में आ गया है, ऐसा मुझे स्वप्न में दृष्टांत हुआ । इसमें माता सीता और हनुमानजी ने मुझे इस अभियोग में सम्मिलित होने का संकेत किया । तत्पश्चात मैंने हिन्दू महासभा से विनती की कि ‘मुझे यह अभियोग लडने का अवसर दें ।’ हिन्दू महासभा ने भी मुझे यह अभियोग को लडने की अनुमति दी । तब से हिन्दू महासभा की आेर से मैं यह अभियोग नि:शुल्क लड रहा हूं ।

 

धर्म के लिए कार्य करना, प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है !

धर्म के लिए कार्य करना, प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है । जो अपने धर्म का कार्य नहीं करता, धर्म भी उसकी रक्षा नहीं करता; वह मनुष्य ही नहीं है । धर्म की रक्षा करना, यह हमारा कर्तव्य है । परम पूज्य गुरुजी के आशीर्वाद से मैं अपना दायित्त्व और अधिक निश्चयपूर्वक संपन्न करूंगा ।

 

पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी का क्षात्रतेज

पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी बोले, ‘‘भगवान ने जितना मुझे सामर्थ्य दिया, उसी अनुसार मैंने सेवा की । भगवान की कृपा से मैंने रामजन्मभूमि प्रकरण से कोई समझौता नहीं किया । ईश्वर की कृपा से सर्वाेच्च न्यायालय में भी राममंदिर का पक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं । एक बार न्यायालय में किसी ने कहा, ‘जिसने बाबरी मस्जिद का ढाचा गिराया, वे तालिबानी है ।’ तब भगवान की कृपा से भरे न्यायालय में जोरदार प्रत्युत्तर देते हुए कहा, ‘हां, वह तालिबानी हिन्दू मैं ही हूं । मुझे जो दंड देना है, दीजिए । बाबरी मस्जिद गिराने का मुझे गर्व है ।’ उस समय मुझे भगवान ने ही शक्ति दी थी ।’’

 

६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करने के
पश्‍चात अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन द्वारा व्यक्त मनोगत

पिताजी के रूप में गुरु तथा ‘आध्यात्मिक गुरु’ परात्पर गुरु
डॉ. आठवलेजी के चरणों में कृतज्ञता ! – अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन

‘आज मुझे आश्‍चर्य हो रहा है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने मुझे इस सम्मान के पात्र बनाया और इसके लिए मैं उनके चरणों में कृतज्ञ हूं । पिताजी के रूप में गुरु एवं ‘आध्यात्मिक गुरू’ की न्यूनता की आपूर्ति करनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों में मैं कृतज्ञता व्यक्त करता हूं । उन्हीं की कृपा से ही मैं यह स्तर प्राप्त कर सका । सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति ने मुझे जो सम्मान दिया, उसके लिए मैं उनका आभारी हूं । ‘हिन्दू राष्ट्र स्थापना के कार्य में मैं और मेरे परिवार को अपने पैर जमाने की तथा सभी प्रकार की आहुतियां देने का अवसर प्राप्त हो’, यह परात्पर गुरु डॉक्टरजी के चरणों में प्रार्थना करता हूं ।’

अधिवक्ता विष्णु शंकर जैनजी द्वारा अपने माता-पिता के प्रति व्यक्त की गई कृतज्ञता

‘न्यायालय में अन्य अधिवक्ता जब मेरे पिता के विषय में बोलते थे, तब ‘पिताजी हिन्दुत्व का कार्य करते हैं’, इसपर मुझे सदैव गर्व होता रहा । मेरी मां ने उनके कार्य में सदैव ही प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में उनकी सहायता की । इसके आगे भी उसका सहयोग मिलता रहे । पिताजी ने वकालत के व्यवसाय की एक नई व्याख्या सिखाई । उन्होंने ‘धर्म के लिए संघर्ष करते रहो और धर्मरक्षा हेतु सदैव खडे रहो’ की शिक्षा दी ।

अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने उपस्थित अधिवक्ताओं का आवाहन करते हुए कहा, ‘‘आप हिन्दू राष्ट्र के लिए कार्य करते समय किसी भी प्रकार के लालच की बलि न चढें ।’’

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