श्रीविष्णुजी के दिव्य शरीरपर विद्यमान ‘श्रीवत्स’ चिन्ह

१. श्री विष्णुजी की छातीपर विद्यमान श्रीवत्स चिन्ह महालक्ष्मी का स्थान होना

परात्पर गुरुमाता द्वारा धारण किया गया ‘श्रीवत्स’ पदक

‘महर्षि व्यासजी ने श्रीमद्भागवत में लिखा है, ‘‘वैकुंठ में सभी लेग श्रीविष्णुजी की भांति दिखते हैं । केवल एक ही बात ऐसी है कि केवल श्रीविष्णुजी के शरीरपर ही ‘श्रीवत्स’ चिन्ह है । महाविष्णुजी की छातिपर दाहिनी बाजू में श्‍वेत बालों का एक पूंजिका है, जिसे ‘श्रीवत्स’ चिन्ह कहा जाता है । ‘श्री’ अर्थात ‘श्री महालक्ष्मी’ और ‘वत्स’ अर्थात ‘प्रिय’ अर्थात जो श्रीमहालक्ष्मीजी को प्रिय है, वह है श्रीवत्स ! भगवान श्रीविष्णुजी की छातीपर विद्यमान श्रीवत्स चिन्ह अर्थात श्री महालक्ष्मी का स्थान है !

वक्षस्य शुक्लवर्ण-दक्षिणावर्त-रोमावली । शब्दकल्पद्रुम

व्युत्पत्ति : वक्षस्य अर्थात छातीपर, शुक्ल वर्ण अर्थात बेला की भांति श्‍वेत रंग, दक्षिणावर्त अर्थात दाहिनी दिशा में मुख का होना और रोमावली अर्थात छातीपर बालों की पूंजिका !

अर्थ : श्रीमहाविष्णुजी की छातीपर बेला की भांति श्‍वेत रंग के तथा दाहिनी ओर मुडे छाती के बालों की पूंजिका के कारण उत्पन्न चिन्ह ‘श्रीवत्स’ है !

कलियुग में श्रीवत्स चिन्ह ध्यान में आए; इसलिए कमलपर आरुढ द्विभुजा लक्ष्मीजी का जागृत रूप दिखाया जाता है । दशावतारां में से कल्की अवतार में भगवान के शरीरपर श्रीवत्स चिन्ह होगा’, ऐसा भागवत में कहा गया है ।

 

२. श्रीवस्त चिन्ह की अन्य कुछ विशेषताएं

‘श्रीवत्स’ पदक का रेखाचित्र

अ. ‘श्रीवत्स’ चिन्ह अष्टधा प्रकृति का प्रतीक है । ‘श्रीवत्स’ का अर्थ माया और माया अर्थात दिखाई देनेवाला संपूर्ण ब्रह्मांड और जगत् ! अष्टधा प्रकृति अर्थात श्रीविष्णुजी की शक्ति और वही श्री महालक्ष्मीजी हैं !

आ. श्रीवत्स चिन्ह के रूप में जानी जानेवाली वह श्‍वेत रंग की राम अर्थात न जिसे आदि है और न ही अंत है, ऐसे निर्गुण परमेश्‍वर का सगुण चिन्ह !

इ. भृगु महर्षिजी ने जब श्रीविष्णुजी की छातीपर लात मारी, तब श्रीविष्णुजी के हृदय में श्रीवत्स रूप में वास करनेवाली श्री महालक्ष्मीजी वैकुंठ से निकल गईं और उसी कारण ही श्रीविष्णुजी को तिरुपति बालाजी अर्थात श्रीनिवास अवतार धारण करना पडा ।

ई. इस कलियुग में सभी को ज्ञात श्रीविष्णुजी का अवतार अर्थात तिरुपति बालाजी तथा उनके शरीरपर श्रीवत्स चिन्ह होने के संदर्भ में कहा जाता है । केवल इतना ही नहीं, अपितु विशिष्ट व्यक्ति अथवा संतों को मंदिर की ओर से देवता की छातीपर विद्यमान श्रीवत्स चिन्हपर लगाए जानेवाले चंदन का लेप एक छायाचित्र को चौकट में भेंटप्रसाद के रूप में दिया जाता है । उस चंदन के लेप की ओर देखनेपर ध्यान में आता है कि तिरुपति बालाजी की छातीपर विद्यमान ‘श्रीवत्स’ चिन्ह अर्थात कमलपर विराजमान श्री महालक्ष्मीजी !

 

३. अलग-अलग ऋषियों द्वारा श्रीवत्स चिन्ह का किया गया वर्णन

अ. विष्णुपुराण में (अंश १, अध्याय २२ और श्‍लोक ६९) पराशर ऋषी मैत्रेयी को बताते हैं, ‘‘हे मैत्रेयी, मुझे वसिष्ठ ऋषीजी ने ‘श्रीवत्स’ चिन्ह के संदर्भ में बताया, ‘श्रीवत्ससंस्थानधरम् अनन्ते च समाश्रितम् प्रधानम् ।‘ अर्थात श्रीविष्णुजी ने सृष्टि के मूलतत्त्वों में से प्रधान तत्त्व श्रीवत्स के रूप में धारण किया है ।

आ. लक्ष्मीवल्लभ, ऐसा जो श्रीविष्णुजी का रूप है, उसे श्रीविष्णुजी द्वारा धारण किए जाने से वह उन्हें प्राप्त हुआ है । लक्ष्मीवल्लभ अर्थात जो श्रीलक्ष्मीजी को प्रिय है ।

इ. श्रीवत्स चिन्ह धारण करने के कारण श्रीवत्सवक्ष, अर्थात जिसे छातीपर श्रीवत्स चिन्ह को धारण किया है । श्रीमद्भागवत में भी कई स्थानोंपर श्रीवत्सधारी श्रीविष्णुजी का उल्लेख है ।

ई. वत्स नामक एक ऋषी है । जिनके कारण श्रीवत्स गोत्र उत्पन्न हुआ । श्रीविष्णुजी के छठें अवतार परशुरामजी का जन्म श्रीवत्स गोत्र में हुआ था । सनातन संस्था की सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी का जन्म भी श्रीवत्स गोत्र में हुआ है ।

उ. श्रीमद्भागवत में बताया गया है, ‘श्रीकृष्णजी के काल में काशी के निकट के पुंड्र देश के राजा पौंड्रक ने स्वयं ही श्रीकृष्ण होने का ढोंग किया था । उन्होंने श्रीकृष्णजी की भांति मोरपीस धारण किया था । वह श्रीकृष्णजी की भांति  संपूर्ण वेशभूषा करता था और हाथ में झूठा सुदर्शन चक्र पकडता था । जिस मय पौंड्रक ने श्रीकृष्णजी के विरुद्ध झूठेपन का आरोप लगाकर उन्हें युद्ध के लिए ललकारा, तब श्रीकृष्णजी उसके महल में पहुंचे । भगवान श्रीकृष्ण पौंड्रक से कहते हैं, ‘‘अरे मूर्ख, जो कभी कोई चूक नहीं करता, जो शुद्ध मन का है, जिसका अंतकरण शुद्ध है और जो चराचर विश्‍व में पूजनीय है, केवल वही श्रीवत्समुद्रा धारण कर सकता है ।’ उसके पश्‍चात श्रीकृष्णजी ने सुदर्शन चक्र चलाकर पौंड्रक का वध किया ।’

– श्री. विनायक शानभाग, जयपुर, राजस्थान (१६.४.२०१९)

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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