केंद्रीय अन्वेषण विभाग वास्तविक अपराधी को छोडकर सनातन के साधक और अधिवक्ता को ही गिरफ्तार कर रहा है। डॉ. दाभोलकर हत्या प्रकरण में पुणे पुलिस ने पहले कुख्यात अपराधी एवं शस्त्र आपूर्तिकर्ता मनीष नागोरी एवं विकास खंडेलवाल को गिरफ्तार किया था। उन्होंने नागोरी से हत्या के लिए उपयोग किए गए पिस्तौल को भी नियंत्रण में लिया था। पुलिस प्रशासन ने ही यह जानकारी दी थी। उसके पश्चात उनके विरोध में आरोपपत्र प्रविष्ट न किए जाने से वे जमानत पर छूट गए और उसके पश्चात इस प्रकरण से उनके नाम हटा दिए गए। इसका कारण यह बताया गया कि, जिस दिन डॉ. दाभोलकर की हत्या हुई थी, उस दिन ये दोनों आरोपी मुंब्रा पुलिस की हिरासत में थे। इस संपूर्ण घटना का अध्ययन करने के पश्चात यह ध्यान में आता है कि, डॉ. दाभोलकर की हत्या एक बडे षड्यंत्र का भाग है, जिसमें हत्या के आरोपी के रूप में सनातन संस्था के साधक और अधिवक्ताओं को ही अपराधी प्रमाणित करने का प्रयास किया जा रहा है !
दाभोलकर की हत्या में पहले गिरफ्तार किए गए ये दोनों उक्त आरोपी पुलिस प्रशासन के रेकॉर्ड के अनुसार कुख्यात अपराधी हैं और शस्त्रों के आपूर्तिकर्ता भी है ! फिर भी केंद्रीय अन्वेषण विभाग की ओर से उन्हें एक बार भी पूछताछ के लिए बुलाया नहीं गया अथवा न ही उस दिशा में जांच की जा रही है। यह एक अचंभित करनेवाली बात है !
समाचारपत्रों के माध्यम से प्राप्त जानकारी के अनुसार केंद्रीय अन्वेषण विभागद्वारा सनातन संस्था के अधिवक्ता श्री. संजीव पुनाळेकर को जिस आधार पर गिरफ्तार किया गया है, वह कारण अत्यंत हास्यास्पद है; क्योंकि मुंबई उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार किसी भी अधिवक्ता को उसकेद्वारा दिए गए योग्य अथवा अयोग्य सलाह के लिए उत्तरदायी प्रमाणित नहीं किया जा सकता ! केंद्रीय अन्वेषण विभागद्वारा डॉ. दाभोलकर हत्या प्रकरण में बंदी बनाए गए सहआरोपी की जुबानी के आधार पर अधिवक्ता श्री. पुनाळेकर के विरोध में हत्या के लिए उपयोग में लाए गए शस्त्रों को फेंक देने की सलाह दिए जाने का आरोप लगाया गया है, यह बात ही समझ के परे है !
संपूर्ण घटनाक्रम से यह दिखाई देता है कि, केवल और केवल सनातन के साधक एवं उनके अधिवक्ताओं को इस अभियोग में फंसाना और सनातन संस्था को अपकीर्त करना ही उनका उद्देश्य है ! मेरा यह पूर्ण विश्वास है कि, कोई भी हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन हत्या जैसा गंभीर अपराध नहीं कर सकता !