प्रथम उद्योगपति अधिवेशन में उद्योगपतियों ने व्यक्त किए अपने विचार !

धर्मकार्य के लिए सर्वतोपरी सहायता करने का उद्योपतियों का निर्धार !

२७ मई को हुए अष्टम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के अंतर्गत उद्योगपति परिषद की ओर से प्रथम उद्योगपति अधिवेशन के तीसरे सत्र में उद्योगपतियों ने जो विचार व्यक्त किए, वह यहां दे रहे हैं ।

 

हिन्दू राष्ट्र-निर्माण रूपी यज्ञ में आहुति देने का अवसर न छोडें !
– राजेंद्र पारेख, बेंगलूरु, कर्नाटक राजेंद्र पारेख, बेंगलूरु, कर्नाटक

राजेंद्र पारेख, बेंगलूरु, कर्नाटक

भारत को विश्वगुरुपद पर आरूढ करानेवाले कार्य की पताका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाथ में ली है । इसके लिए वे भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाएं; क्योंकि हिन्दू राष्ट्र का संकल्प लिए बिना विश्वगुरु होने की प्रक्रिया पूरी नहीं होगी । ब्राह्मण, हिन्दुत्व की आत्मा है । क्षत्रिय, शक्ति; वैश्य, वैभव तथा शूद्र, स्वाभिमान है । धर्मनिरपेक्ष राज्य में ज्योंतियों की ज्वाला बनना आवश्यक है । हिन्दू राष्ट्र-निर्माण कार्य में किसी भी प्रकार की आहुति देने का अवसर मिले, तो उद्योगपति उसे न छोडें ।

राजेंद्र पारेखजी के परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के विषय में गौरवोद्गार !

‘हिन्दुओं ! उठो । अपना पुरुषार्थ और बल पहचानकर जागो’, यह बोध सनातन करा रहा है । जब यह पौरुष जागृत होगा, तब उसके अगले ही पल हमने कदम हिन्दू राष्ट्र में रख दिए होंगे । यह बोध कराने का कार्य परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी कर रहे हैं । परात्पर गुरु डॉक्टरजी के गढे हुए पूर्णकालीन साधक महर्षि दधीचि की भांति हैं । उन्हें भी मैं नमन करता हूं । हिन्दू राष्ट्र-निर्माण यज्ञ में आहुति देनेवाले आप साधकजन अभिनंदन के पात्र हैं । आपके कार्य का फल भविष्य में दिखाई देगा । परात्पर गुरु डॉक्टरजी के हिन्दू राष्ट्र का संकल्प साकार होते दिखाई दे रहा है । वर्तमान परिस्थिति में जो हो रहा है, वह भविष्य के हिन्दू राष्ट्र की झलक है ।

 

सनातन की बताई तनाव-निर्मूलन प्रक्रिया सभी प्रतिष्ठानों के लिए आवश्यक है !
– श्री. सुदीश नायक, सदस्य, राजपूत सारस्वत ब्राह्मण संघ, उडुपी, कर्नाटक

श्री. सुदीश नायक, सदस्य, राजपूत सारस्वत ब्राह्मण संघ, उडुपी, कर्नाटक

म्हापसा, गोवा में वर्ष २००० में हुई एक सार्वजनिक सभा में कुलदेवता और इष्टदेवता के नामजप का महत्त्व मुझे ज्ञात हुआ । कुछ वर्षाें के पश्चात, मैंने उडुपी में व्यवसाय आरंभ किया । यहां, कार्यालय में सनातन का सत्संग आरंभ करने के लिए स्थान दिया । मेरे व्यवसाय के स्थान पर और आसपास के परिसर में साप्ताहिक सत्संग तथा सनातन के विविध उपक्रम और ग्रंथवितरण आरंभ किया । आजकल मेरे कार्यालय में साप्ताहिक सत्संग होता है । इससे ७७ कर्मचारी लाभ ले रहे हैं । जब कभी किसी कारणवश सत्संग नहीं होता, तब उन्हें कुछ खोया-खोया-सा लगता है । कर्मचारी बताते हैं कि सनातन के बताए नामजप से तनाव घट रहा है । सनातन की बताई तनाव-निर्मूलन प्रक्रिया अब सभी प्रतिष्ठानों को चाहिए ।

 

समाज का आध्यात्मिक स्तर ऊपर उठाना, व्यवसायिकों का दायित्व !
– आनंद पाटील, सदस्य, आर्किटेक्ट असोसिएशन, कोल्हापुर, महाराष्ट्र

आनंद पाटील, सदस्य, आर्किटेक्ट असोसिएशन, कोल्हापुर, महाराष्ट्र

१. शिक्षा, चिकित्सा, पुलिस, न्याय आदि क्षेत्रों का स्तर दिनोंदिन गिर रहा है । उसे ऊपर उठाने का दायित्व व्यवसायियों का है । इन क्षेत्र के लोगों को सात्त्विक साहित्य देकर प्रबोधन करने से उनका आध्यात्मिक स्तर उठने में सहायता होगी ।

२. ईश्वरीय अधिष्ठान के कारण व्यवसाय करना सरल होता है, यह मैंने अनुभव किया है । सनातन प्रभात और सनातन संस्था को व्यवसायी के रूप में सहायता करने का मेरा विचार था । मैंने ‘सनातन प्रभात’ में प्रतिदिन छपनेवाले बोधचित्रों की पुस्तिका बनाकर उसे अपने सगे-संबंधियों, मित्रों एवं व्यवसायियों को दी । उन्हें यह पुस्तिका अच्छी लगी । इसलिए उन्होंने विद्यालयों में मेधावी विद्यार्थियों को पारितोषिक के रूप में दिया । सहउद्यमियों की नई परियोजनाओं का उद्घाटन, विवाह, समारोह आदि अवसरों पर मिठाई अथवा पुष्पगुच्छ देने से अच्छा है परात्पर गुरुदेवजी का ग्रंथरूपी ज्ञान सब तक पहुंचाना, यह विचार कर मैंने अनेक ग्रंथ उपहार में दिए ।

३. कोल्हापुर की देवी का दर्शनमंडप बनाने का अवसर मुझे मिला । यह कार्य करते समय अनेक अनुभूतियां हुईं और वह सहजता से होता गया । काम करते समय एेसा लग रहा था कि यहां आनेवाले प्रत्येक श्रद्धालु आनंदित हों और उन्हें छत्रपति शिवाजी के समान कार्य करने की प्रेरणा मिले । यह सब अनुभूति ईश्वर की कृपा और संतों के आशीर्वाद से हुई । हमें केवल भावसहित प्रयत्न करना होता है ।

४. सनातन आश्रम-निर्माण का भी मुझे अवसर मिला । दूसरे किसी भी कार्य की तुलना में आश्रम में निर्माण-कार्य करते समय १ हजार गुना आनंद मिला । मुझे लगता है कि ‘यह ईश्वर का पूर्वनियोजित कार्य है; उन्होंने ही मेरे कार्य की योजना बनाई है ।’

 

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का बताया हुआ
साधनामार्ग सर्वश्रेष्ठ ! – दिनेश एम.पी., व्यवसायी, मंगळूरु

दिनेश एम.पी., व्यवसायी, मंगळूरु

वर्ष २००२ में मैंने व्यापार आरंभ किया । व्यापार बढता जा रहा था; इसलिए मेरी इच्छा हुई कि कर्नाटक, महाराष्ट्र और गोवा में भी व्यापार आरंभ करूं । मैं एक साधक के माध्यम से सनातन संस्था के संपर्क में आया । २ – ३ वर्ष पश्चात मेरे ध्यान में आया कि ‘व्यवसाय बढाना मेरे जन्म का उद्देश्य नहीं है, वह तो कुछ और ही है’, साथ में व्यवसाय भी चल रहा था । उसमें उतार-चढाव भी आ रहे थे । ग्राहकों और कर्मचारियों से विवाद होते रहते थे । इस विषय में विचार करने पर ध्यान में आया कि उन प्रसंगों का कारण, मेरे स्वभावदोष ही थे । तब मैंने अपने स्वभावदोष दूर करने का प्रयत्न किया । इसके पश्चात, व्यवसाय १० प्रतिशत से २०० प्रतिशत बढ गया । अब साधना की शक्ति मेरे साथ रहती है । मैं गाडी से जाते-आते भी नामजप करता हूं । अब मुझे लगता है, ‘दुकान देवता का मंदिर है ।’ धर्म का कार्य कभी नहीं छोडना चाहिए । एक समय परिवार हमें छोड सकता है; परंतु धर्म कभी नहीं छोडता । इसलिए परात्पर गुरुदेवजी के साधकों से मार्गदर्शन प्राप्त करें । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने साधना का जो मार्ग दिखाया है, वह सर्वश्रेष्ठ है ।

 

उद्योगपति अधिवेशन में हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने ‘सनातन संस्था पर लगाए जा रहे आरोप और उनके उत्तर’ इस विषय पर जानकारी देकर, शंकासमाधान किया । उन्होंने उद्योगपतियों का आवाहन किया कि वे हिन्दुत्व का कार्य करनेवाले कार्यकर्ताओं को छात्रवृत्ति देना, उन्हें पारितोषिक देना आदि प्रकार से सहायता करें । इससे उन्हें कार्य करने में प्रोत्साहन मिलेगा ।

 

प्रथम उद्योगपति अधिवेशन का उत्साही वातावरण में समापन !

गुरु को जो अर्पण करते हैं, उससे हजार गुना अधिक गुरु हमें देते हैं ! – संजीव कुमार, सचिव, उद्योगपति परिषद

सनातन के सत्संगों में मुझे जो समझ में आया, उस प्रकार मैंने कृति करना आरंभ किया । नामजप करने लगा । इसके साथ ही आैरों को भी साधना बताना आरंभ कर दिया । अपने कार्यालय में सनातन के सात्त्विक उत्पाद रखने लगा । उत्तरदायी साधक जो भी बताते, मैंने आज्ञापालन किया । मेरा खदान (माइन्स) का व्यवसाय है । मैंने सनातन में आने से पहले जो धन कमाया उसकी साधना में आने के बाद कमाए हुए धन से तुलना हो ही नहीं सकती । ‘हमने जो गुरु को अर्पण किया है, उससे हजार गुना अधिक गुरु हमें देते हैं’, इसकी अनुभूति मैंने ली है । साधना आरंभ करने के उपरांत से मुझे कभी किसी बात की कमी नहीं पडी । गुरुदेवजी की कृपा से मुझे अनेक अनुभूतियां हुई हैं । यदि वे छापी जाएं, तो एक पुस्तक ही तैयार हो जाएगी ।

उद्योगपतियों को उनके सन्मार्गीपन का अपलाभ उठानेवालों को संगठित होकर प्रत्युत्तर देना, यह काल की आवश्यकता ! – पू. नीलेश सिंगबाळ, मार्गदर्शक, पूर्वी एवं उत्तर पूर्वी भारत, हिन्दू जनजागृति समिति

सनातन के अनेक संत एवं साधक उच्च शिक्षित होकर भी वे अपना व्यवसाय तथा नौकरी छोडकर पूर्णकालिक धर्मकार्य कर रहे हैं ! – श्री. विजय सावे, पालघर, महाराष्ट्र

सनातन संस्था से मेरा संबंध आने के उपरांत मुझे समझ में आया कि कौनसे देवता की उपासना करनी चाहिए, हिन्दू धर्म के विविध त्योहार आैर उत्सव कैसे मनाने चाहिए । सनातन के अनेक संत एवं साधक उच्च शिक्षित हैं । अनेक साधक अपना व्यवसाय आैर नौकरी छोडकर पूर्णकालिक धर्म का कार्य कर रहे हैं । वे अपना अमूल्य समय हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए दे रहे हैं । इसलिए इन साधकों की सहायता करना, हमारा कर्तव्य है । उद्योगपति व्यवसाय संभालकर साधना कैसे कर सकते हैं, यह बताते समय उन्होंने कहा, ‘‘हम सनातन के ग्रंथ खरीद सकते हैं । ये ग्रंथ वाचनालय में दे सकते हैं । अपने परिचितों को सनातन प्रभात का सदस्य बना सकते हैं । इसके साथ ही अपने परिचित, कर्मचारी आैर अपने परिसर के लोगों के लिए सत्संग का आयोजन कर सकते हैं । आज हिन्दू धर्म पर विविध मार्ग से आघात हो रहे हैं । उसका वैध (कानूनी) मार्ग से प्रतिकार करना चाहिए । हिन्दू धर्म को कोई हानि पहुंचाने का प्रयत्न करेगा, तो हम नहीं सहेंगे । हिन्दू जनजागृति समिति का कार्य एेसे ही चलता रहा, तो देश में हिन्दू राष्ट्र अवश्य आएगा ।

राष्ट्र के लिए अविरत कार्य करनेवाली हिन्दू जनजागृति समिति, हिन्दू विधिज्ञ परिषद एवं सनातन संस्था के प्रतिनिधियों का सर्वाेच्च न्यायालय के अधिवक्ता जोयदीप मुखर्जी द्वारा सत्कार !

‘आॅल इंडिया लीगल एड फोरम’ के महासचिव आैर बंगाल के अधिवक्ता जोयदीप मुखर्जी द्वारा राष्ट्र के लिए अविरत कार्य करनेवाले हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी, हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर, सनातन संस्था के राष्ट्र्रीय प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस आैर समिति के पूर्वाेत्तर भारत समन्वयक श्री. शंभू गवारे को प्रशस्तीपत्रक देकर सम्मानित किया गया ।

‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के आध्यात्मिक शोधकार्य में योगदान दें ! – श्री. शंभू गवारे, समन्वयक, पूर्वाेत्तर भारत, हिन्दू जनजागृति समिति

 

‘जयतु जयतु हिन्दुराष्ट्रम् ।’ के घोष में उद्योगपतियों ने धर्मप्रसार तथा धर्मकार्य के लिए अर्पण करने का किया संकल्प !

भारतीय संस्कृति में सामूहिक रूप से शुभसंकल्प करने की महान परंपरा है । प्रभु श्रीरामचंद्र ने वानरसेना के समूह सहित शिवपिंडी पर अभिषेक किया था । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए एेसा ही संकल्प उद्योगपतियों ने अधिवेशन में किया । सनातन संस्था की जनसंपर्क प्रतिनिधि श्रीमती स्मिता नवलकर ने अधिवेशन में सहभागी हुए उद्योगपतियों से निम्नांकित संकल्प करवाया ।

१. हम धर्म के अनुसार अर्थार्जन करेंगे आैर हिन्दू धर्म के उत्थान के लिए ही अर्पण करेंगे !

२. हम उत्पादों के वेष्टनों पर आैर विज्ञापनों में धर्म, धर्मग्रंथ, देवी-देवता, संत आैर राष्ट्रपुरुषों का अनादर न हो, इसका पूरा ध्यान रखेंगे !

३. हम लोकतंत्र में फैली भ्रष्ट शासकीय दुष्प्रवृत्तियों को संवैधानिक मार्ग से सबक सिखाएंगे !

४. हम राष्ट्रीय हित ध्यान में रखकर आर्थिक व्यवहार करेंगे !

५. हम संकटकाल में हिन्दू समाज के लिए आवश्यक धन अर्पण करेंगे !

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