साधकों को पूरा समय साधना के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध हो, इसके लिए परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी ने रामनाथी, गोवा में सनातन आश्रम की निर्मिति की है । यहां लगभग ६०० साधक आनंदमय आश्रमजीवन का लाभ ले रहे हैं ।
स्व-अनुशासन एवं कुशल योजना
१. आश्रम में प्रवेश करने पर चप्पलें नियत स्थान पर व्यवस्थित रखना, ध्यानमंदिर में नामजप करना, भोजन के उपरांत थाली में जूठन न छोडना आदि सभी कृत्य अनुशासनबद्ध किए जाते हैं ।
२. आश्रम के साधक दैनिक सेवा, व्यष्टि साधना, प्रासंगिक कार्यक्रम आदि पूर्वनिर्धारित योजना अनुसार समय से करते हैं ।
स्वच्छता एवं सुव्यवस्थिता
१. आश्रम के युवा साधक प्रतिदिन न्यूनतम १ घंटा मन लगाकर आश्रम की स्वच्छता (उदा. फर्श पोंछना, प्रसाधनगृह की स्वच्छता
करना, प्रांगण झाडना आदि सेवाएं) करते हैं ।
२. प्रत्येक वस्तु (उदा. अलमारी में ग्रंथ, भोजन के उपरांत धुली थालियां और कटोरियां) यथास्थान सुव्यवस्थित रखे जाते हैं ।)
प्रत्येक क्रिया सत्यं शिवं सुंदरम् (सात्त्विक) करना
१. प्रत्येक क्रिया से अच्छे स्पंदन उत्पन्न हों, इस उद्देश्य से साधक प्रत्येक क्रिया सात्त्विक पद्धति से करने का प्रयास करते हैं ।
२. सात्त्विक वेशभूषा करना, अलमारी में अपनी व्यक्तिगत वस्तुआें की सुंदर रचना करना, अनाज सुव्यवस्थित एवं सुंदर
पद्धति से सुखाना, इसके कुछ उदाहरण हैं ।
छोटी-छोटी बातों में भी मितव्ययता
१. आश्रम की प्रत्यके वस्तु श्रीगुरु की है । बिजली, पानी आदि राष्ट्रीय सपंत्ति हैं , इस भाव से सर्व वस्तुआेंकी बचत की जाती है ।
२. संगणकीय प्रतियों के लिए एक ओर से लिखे कागद (कागज) का उपयोग करना, लिखने के लिए कागद के छोटे-छोटे टुकडों का भी उपयोग करना, इसके कुछ उदाहरण हैं ।
परिवार की भांति एक-दूसरे के सुख-दु:ख में सहभाग
१. साधकों के जन्मदिन, विवाह, अमृत महोत्सव (७५ वीं) वर्षगांठ आदि आश्रम में धर्मशास्त्रानुसार आनंद से मनाए जाते हैं ।
२. पारिवारिक समस्याएं, दुःखद प्रसंग आदि के समय भी साधक एक-दूसरे की तत्परता से सहायता करते हैं ।
रोगी-साधकों की मन लगाकर सेवाशुश्रूषा
१. जिन्हें पथ्य का भोजन आवश्यक है, उन साधकों की आवश्यकता के अनुसार वैसा भोजन पकाया जाता है ।
२. साधकों के राेग ग्रस्त हाेने पर आश्रम के ही साधक-डाक्टॅर एवं अन्य साधक उनकी सेवा करते हैं । राेगी को घर नहीं जाना पडता ।
साधना की लगन एवं सर्वस्व का त्याग
१. साधना की लगन व सेवा की उत्कंठता के कारण भारत के विविध प्रातों व आयुवर्ग के सकैडों साधक आश्रमजीवन अपनाते हैं ।
२. नाैकरी-व्यवसाय, पारिवारिक सुख आदि का त्याग कर आए ये सभी साधक आश्रम की सभी सेवाएं बिना पारिश्रमिक के करते हैं ।