केवल साधक ही नहीं, ,अपितु प्राणी, पशु और पक्षियोंपर भी प्रेमकी वर्षा कर उन्हें अपनानेवाले प.पू. गुरुदेवजी !

सनातन संस्थाके अनेक साधक, बालसाधक एवं युवासाधक पूर्णकालीन साधना हेतु आश्रममें रहने आते हैं, वह केवल परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा उनपर किए जानेवाले निरपेक्ष प्रेमभावके कारण ही ! उन्होंने जिस प्रकारसे साधकोंपर निरपेक्ष प्रेम किया है, उसके साथ वे प्राणियोंपर भी निरपेक्ष प्रेम करते हैं । ऐसा प्रेम केवल भगवान ही कर सकते हैं । उनके प्राणियोंके प्रति निरपेक्ष प्रेमको दर्शानेवाले कुछ उदाहरण आगे दिए गए हैं …

कु. प्रियांका लोटलीकर

१. परात्पर गुरुदेवजीका तितलीके प्रति प्रेमभाव !

१ अ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके कक्षमें आई एक तितलीका ३ दिनोंतक एक ही स्थानपर बैठे रहना

एक दिन परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके कक्षमें स्थित हस्तप्रक्षालन पात्र (बेसिन)के पास एक तितली आकर बैठी थी और वह ३ दिनोंतक वहीं बैठी रहीं । चौथे दिन वह कक्षसे बाहर आई और परात्पर गुरु डॉक्टरजी जिस कक्षमें ग्रंथलेखनकी सेवा हेतु बैठते हैं, उस कक्षमें उनके आसंदीके नीचे आकर बैठी । परात्पर गुरुदेवजीने मुझे वह तितली दिखाई ।

१ आ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीद्वारा एक चम्मचमें
शहद (मधु)-पानी डालकर उसे तितलीके पास रखा जाना और इसे
देखकर कुत्तेके पीछे घी लेकर भागनेवाले संत एकनाथ महाराजजीका स्मरण होना

कुछ समय पश्‍चात उन्होंने एक चम्मच में शहद-पानी भरकर उसे उस तितलीके पास लाकर रखा और वे मुझे कहने लगे, बेचारी तितलीने ३ दिनोंसे कुछ नहीं खाया है । इस वाक्यको सुनते ही मेरा भाव जागृत हुआ । कुछ समय पश्‍चात वह तितली उडकर पासकी चौपाईके नीचे जाकर बैठ गई । तब मेरे मनमें कदाचित उस तितलीको बहुत उडना नहीं आता होगा, यह विचार आया । कुछ समय पश्‍चात परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीने वह तितली जहां जाकर बैठी थी, वहां पुनः उस शहद-पानीको लाकर रखा । उस समय मुझे कुत्तेके पीछे घी लेकर भागनेवाले संत एकनाथ महाराजजीका स्मरण हुआ ।

१ इ. तितली द्वारा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीकी
आसंदीके नीचे प्राण त्याग किए जाना और गुरुचरणोंमें अपने प्राण
त्यागने हेतु ही तितली उनके कक्षमें आई होगी, ऐसा प्रतीत होकर मन भर आना

दोपहरतक भी उस तितलीने कुछ नहीं खाया और दोपहर पश्‍चात उसने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीकी आसंदीके नीचे अपने प्राण त्याग दिए । उस समय उस तितलीने ईश्‍वरके चरणोंमें अपने प्राण त्याग दिया और कदाचित वह उसके लिए ही उनके कक्षमें आई होगी, ऐसा लगकर मेरा मन भर आया । तब मैने ईश्‍वरसे मुझे भी मेरे जीवनके अंतिम क्षणतक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके चरणोंमें रखें, यह प्रार्थना कर मैने उस तितलीके परात्पर गुरु जिस तुलसीके पौधे को प्रतिदिन पानी देते थे, उस तुलसीके मूलपर रखकर उसे नमस्कार किया ।

 

२. परात्पर गुरु डॉक्टरजी को आश्रमके
सामनेके सडकसे जानेवाले गायके बछडेका रंभाना
सुनकर उसके अपने मां से बिछड जानेकी बात ध्यानमें आ जाना

आश्रमके सामनेके सडकसे अनेक गायें, भैंसे और बछडे प्रतिदिन आते-जाते हैं । मानो वह गोकुल ही है !उसके एक दिन एक गायका बछडा जोर-जोरसे रंभा रहा था । उसके रंभानेकी ओर हमारा ध्यान ही नहीं था; परंतु परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीने उसे सुना और वे कहने लगे, अरे ! ऐसा लगता है कि वह बछडा अपनी मां से बिछड गया है । उनके ऐसे कहनेके पश्‍चात हमें ऐसा प्रतीत हुआ कि उस बछडेका रंभाना रोने जैसा हुआ था । उसके पश्‍चात हमने हमारी सेवापर ध्यान केंद्रित किया । कुछ समय पश्‍चात बछडेके रंभानेकी आवाज रुक गई । तब परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीको पुनः उस बछडेका स्मरण हुआ और वे कहने लगें, ऐसा लगता है कि उस बछडेको उसकी मां मिल गई है ! उनके इस वाक्यसे मुझमें प्रेमभाव और संवेदनशीलता कितनी अल्प है, इसका भान हुआ और परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी साक्षात ईश्‍वर होनेसे और उनमें विद्यमान निरपेक्ष प्रेमभावके कारणही वे सभीका इतना ध्यान रखते हैं, यह मेरे ध्यानमें आ गया ।

३. साधिकाके आश्रमसे घर जाते समय परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी
द्वारा उसे उनके घरके कुत्तेके लिए भी मिठाई ले जानेके लिए कहा जाना

आश्रमके एक साधिकाके घरमें कुत्ता है । वह साधिका किसी कारणवश अपने घर जानेवाली थी । यह बात गुरुदेवजीको ज्ञात होनेपर उन्होंने उस साधिकासे कहा,  तुम घर जाते समय तुम्हारे घरके कुत्तेके लिए भी मिठाई लेती जाओ । हमें कौनसा जीव पृथ्वीपर किस कारणके लिए आया होगा ?, यह भगवानको ज्ञात होता है और वे प्रत्येक जीवकी चिंता करते हैं ।

प.पू. नारायण (नाना) काळेगुरुजी द्वारा यज्ञ हेतु भेजे गए अश्‍वके सिरपर हाथ फेरते हुए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

४. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके प्रेमभरे स्पर्शसे अश्‍वकी आंखोंमें आंसू आना

रामनाथी आश्रममें प.पू. नारायण (नाना) काळेगुरुजीके मार्गदर्शनमें अश्‍वमेध यज्ञका संकल्पविधि संपन्न हुआ । संपूर्ण एक वर्षतक चलनेवाले इस यज्ञके लिए उन्होंने एक यज्ञीय अश्‍व रामनाथी आश्रममें लाया था । कुछ समय पश्‍चात उस अश्‍वको दूसरी एक विधिके लिए बार्शी (जनपद सोलापुर,महाराष्ट्र) में ले जाया गया । एक वर्ष पश्‍चात यह अश्‍व अन्य एक साधकको सौंपनेका सुनिश्‍चित किया गया । प.पू. नाना काळेगुरुजीने उस अश्‍वको वहांसे ले जाने से पहले परात्पर गुरुदेवजीसे मिलवाने हेतु रामनाथी आश्रममें भेजा । उसे ले जानेके समय परात्पर गुरु उसे मिलने हेतु द्वारके पास गए और उन्होंने उस अश्‍वके सिरपर हाथ फेराया । उस समय उस अश्‍वके आंखोंसे आंसू निकल आए ।

उक्त तथा ऐसे अनेक प्रसंगोंमें परात्पर गुरु डॉक्टरजीमें विद्यमान प्राणी, पक्षी और प्रत्येक जीवके प्रति प्रेमभावको देखकर भावजागृति होती है । ऐसे प्रेमस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके चरणोंमें कृतज्ञता !

– कु. प्रियांका लोटलीकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा

 

५. विपरीत दिशा में मछली के तैरने की मीमांसा करना तथा उसकी चिकित्‍सा करने के लिए कहना

‘रामनाथी आश्रम में स्‍थित कमलपुष्‍प के कुण्‍ड में लाई गई मछली देखकर परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी बहुत आनंदित हुए । किसी छोटे बच्‍चे के प्रति हममें उत्‍सुकता होती है, उसी प्रकार उस मछली के प्रति भी वे बहुत उत्‍सुक थे । उस समय वह मछली सामान्‍य दिशा में न तैरकर विपरीत दिशा में तैर रही थी । परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी ने साधकों को इसका ध्‍यान दिलाया और रामनाथी आश्रम के साधक डॉ. अजय जोशी को वह मछली और उसका तैरना देखने के लिए कहा । डॉ. अजय जोशी ने मछली देखकर उसके गलमुच्‍छों में ‘फंगस’ (एक प्रकार का फफूंद) आने की बात बताई । उसके कारण वह आगे की दिशा में न तैरकर पीछे की दिशा में जा रही थी । उन्‍होंने मछली के गलमुच्‍छों पर स्‍थित फफूंद निकाल दिया, तब वह सामान्‍य पद्धति से तैरने लगी । गुरुदेवजी की कृपा के कारण मछली को आ रही समस्‍या का समाधान मिला ।’

– श्रीमती रंजना गौतम गडेकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (६.३.२०१९)

संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

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