महाराष्ट्र के परळी वैजनाथ, में संपन्न सोमयाग
के परिणामस्वरूप वृष्टि गर्भधारणा होने के संकेत
देनेवाले पश्चिम क्षितिज पर दिखाई दिए सिंदूरिया मेघ !
सोमयाग, ऋषिमुनियों द्वारा मानवकल्याण हेतु दिया अद्भुत विज्ञान !
महाराष्ट्र के सोलापुर जनपद के बार्शी ग्राम में अश्वमेधयाजी प.पू. नारायण (नाना) काळेगुरुजी श्री योगीराज वेद विज्ञान आश्रम द्वारा वेदाध्यापन कर यज्ञशिक्षा दे रहे हैं । काळेगुरुजी ने आज तक सैकडों सोमयाग, पर्जन्ययाग आदि वैदिक शास्त्रों में प्रतिपादित विविध यज्ञ किए हैं । वर्ष २००६ में उन्होंने सोमयाग के वर्षा पर होनेवाले परिणामों के संदर्भ में वैज्ञानिक पद्धति से शोधकार्य किया ।
आधुनिक वैज्ञानिकों की दृष्टि से ये निष्कर्ष आश्चर्यजनक थे । ये निष्कर्ष उन्होंने सौमिक सुवृष्टि योजना, इस नाम से ग्रंथरूप में प्रकाशित किए हैं । यह ग्रंथ इंडियन इन्स्टिट्युट ऑफ ट्रॉपिकल मीटियोरोलॉजी ने (आइ.आइ.टी.एम.) अपने जालस्थल पर रखा है । प.पू. नानाजी ने हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के लिए आध्यात्मिक बल प्राप्त होने हेतु अश्वमेध यज्ञ किया है । वर्ष २०१६ में भारत में ऋतुसंतुलन पूर्वक सुवृष्टि और सकल आपदाआें का निवारण हो, इसलिए महाराष्ट्र के जनपद सोलापुर के बार्शी ग्राम के श्री योगीराज वेद विज्ञान आश्रम की ओर से अश्वमेधयाजी प.पू. नाना काळेगुरुजी के चैतन्यमय मार्गदर्शन में १ जुलाई २०१५ से २० मई २०१६ की कालावधि में सौमिक सुवृष्टि योजनांतर्गत २५ सोमयागों का नियोजन किया गया है । प.पू. नाना काळेगुरुजी तथा अन्य अनेक अभ्यासियों का मत है कि, प्रकृति का संतुलन बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण ऐसा सोमयाग, ऋषि-मुनियों द्वारा मानवकल्याण हेतु दिया अद्भुत विज्ञान ही है । इस लेख में सोमयाग के कारण पर्जन्यदायी मेघों की निर्मिति की प्रक्रिया संबंधी सोमयाग अश्वमेधयाजी प.पू. नाना काळेगुरुजी द्वारा वैदिक विज्ञान की दृष्टि से प्रतिपादित विचार प्रस्तुत किए हैं ।
१. सोमयाग के परिणामस्वरूप
पर्जन्यदायी मेघों की निर्मिति होती है !
१ अ. सोमयाग के परिणामस्वरूप
वृष्टि गर्भधारणा होना और लाल रंग के मेघों
के रूप में उसके लक्षण आकाश में स्पष्ट दिखाई देना
सोमयाग में विशिष्ट मंत्र का उच्चारण कर अग्नि में गाय का घी और अन्य हवनद्रव्यों की आहुति दी जाती है । इससे वृष्टि के (पर्जन्यवृष्टि के लिए कारणभूत) सूक्ष्म रक्तबीजों की निर्मिति होती है । इसी को वृष्टि गर्भधारणा होना कहते हैं । वृष्टि का (पर्जन्य का) सूक्ष्म-बीज लाल रंग का होने से उसे रक्तबीज कहते हैं । इसके परिणामस्वरूप सोमयाग के स्थान से लगभग ३५० कि.मी. अथवा उससे अधिक दूरी के प्रदेश में सूर्योदय के पहले १५ मिनटों तक पूर्व दिशा में और सूर्यास्त के पश्चात २० मिनटों तक पश्चिम दिशा में गहरे लाल रंग के मेघ दिखाई देते हैं। कभी-कभी वे बसंती, गुलाबी अथवा केसरिया रंग के भी दिख सकते हैं ।
१ आ. वृष्टिप्रसव (पर्जन्यवृष्टि होना)
वातावरण में विद्यमान पर्जन्य के रक्तबीजों के कारण सोमयाग के पश्चात लगभग १९५ दिनों के उपरांत सोमयाग किए परिसर में पर्जन्यवृष्टि होती है । इस कालावधि को वृष्टि प्रसवकाल कहते हैं ।
१ इ. वृष्टि गर्भधारणा होने के आरंभ से
वृष्टिप्रसव होने तक की इस पूर्ण प्रक्रिया में विश्वांतर्गत
इच्छा, ज्ञान और क्रिया, इन शक्तियों के कार्य का दर्शन होना
मानव के जीवनचक्र में स्त्री में गर्भधारणा होने के पश्चात ९ माह के उपरांत (महीनोपरांत) बच्चा प्रसूत होता है । तब तक मां के गर्भ में उसकी वृद्धि होती है । वहां वह सुरक्षित रहता है । इसी प्रकार सोमयाग के कारण वृष्टि गर्भधारणा होने पर लगभग १९५ दिनों के उपरांत पर्जन्यवृष्टि होती है । तब तक वृष्टिगर्भ वैश्विक गर्भ में सुरक्षित रहता है । मानवीय गर्भ को जिस प्रकार जन्म कब लें ?, इसका ज्ञान होता है, वैसा ज्ञान वृष्टिगर्भ को भी होता है । अर्थात वृष्टि गर्भधारणा होने के आरंभ से वृष्टिप्रसव होने तक की प्रक्रिया यांत्रिक नहीं, अपितु एक सजीव प्रक्रिया है । विश्वांतर्गत इच्छा, ज्ञान और क्रिया, इन शक्तियों का कार्य इसमें दिखाई देता है । सोमयाग में मंत्रांतर्गत संकल्प द्वारा वृष्टिबीजों की निर्मिति इच्छाशक्ति, वृष्टिबीज को प्रसूतिकाल तक वैश्विक गर्भ में रहने के लिए प्रेरित करना ज्ञानशक्ति, तो प्रसूतिकाल में पर्जन्यवृष्टि होना, क्रियाशक्ति का कार्य है ।
२. सोमयाग के उपरांत प्रकृति में दिखाई देनेवाले कुछ लक्षण
आचार्य वराहमिहिर ने सैकडों वर्ष पूर्व सोमयाग, पर्जन्ययाग आदि के कारण होनेवाली मेघों की निर्मिति, पर्जन्यवृष्टि की कालावधि आदि के संदर्भ में गहन अध्ययन कर निरीक्षण लिख रखे हैं । उनका सैकडों वर्ष पूर्व किया शोधकार्य इतना परिपूर्ण है कि उनके द्वारा प्रतिपादित आकाशीय लक्षण आज भी पर्जन्यवृष्टि के संदर्भ में अचूक जानकारी देते हैं । उनके अनुसार सोमयाग के उपरांत भारद्वाज अथवा तास जैसे पक्षी, वर्षामेघ, रक्तवर्णीय मेघ दिखना, बिजली चमकना, अत्यल्प वृष्टि होना, आंधी इत्यादि कुछ लक्षण दिखाई देते हैं ।
– अश्वमेधयाजी प.पू. नारायण काळेगुरुजी, श्री योगीराज वेद विज्ञान आश्रम, बार्शी, सोलापुर, महाराष्ट्र.
सोमयाग के परिणामस्वरूप
दिखाई दिए सिंदूरिया रंग के मेघ !
अश्वमेधयाजी प.पू. नाना काळेगुरुजी ने बताया, सोमयाग का प्रभाव लगभग ३५० कि.मी. की दूरी तक दिखाई देता है । परळी वैजनाथ में संपन्न हुए इस सोमयाग के समय अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा वृष्टि गर्भधारणा और मेघों का अध्ययन किया गया । इसमें दिखाई दिया कि लगभग ८०० कि.मी. की दूरी पर भी मेघों के रंग में परिवर्तन आया है । इससे ध्यान में आया कि इतनी दूरी तक भी यज्ञ का प्रभाव पडता है । परळी वैजनाथ में जिसप्रकार सिंदूरिया रंग के मेघ दिखाई दिए, उसी प्रकार इस कालावधि में पनवेल और पुणे में भी सिंदूरिया रंग के मेघ दिखाई दिए ।
श्रद्धालुआें का आवाहन !
सोमयागों में यथाशक्ति योगदान देकर अपना धर्मकर्तव्य निभाएं !
सोमयाग में सहायता हेतु इच्छुक संपर्क करें ।
अश्वमेधयाजी प.पू. नारायण (नाना) काळे गुरुजी
पता : योगीराज वेद विज्ञान आश्रम, कासारवाडी, ताल्लुका बार्शी, जिला सोलापुर, महाराष्ट्र.
संपर्क : ९८५०५०७७२७