आहार का मन से संबंध

आहार से संबंधित धर्मशास्त्र द्वारा बताए नियमों का पालन न करने से जो हानि होती है, उससे भी अधिक हानि आधुनिक आहारपद्धति को अपनाने से हो रही है । ये बाहर के खाद्यपदार्थ होें; कृत्रिम शीतल पेय हों; पिज्जा, बर्गर जैसे ‘फास्ट फूड’ हों अथवा ‘कुरकुरे’ जैसे ‘जंक फूड’ हों, इनके अनेक दुष्परिणाम, जैसे विद्यार्थी दशा में ही चश्मा, मोटापा इत्यादि वर्तमान पीढी में दिखाई दे रहे हैं ।

घर में बने भारतीय खाद्यपदार्थ ताजे, पाचन के लिए हलके एवं पौष्टिक होते हैं । इन पदार्थों का सेवन मानसिक स्वास्थ्य को उत्तम बनाए रखने में भी सहायक होता है । आधुनिक पदार्थों की अपेक्षा घर में बनाए पारंपरिक पदार्थों के सेवन का संस्कार वर्तमान पीढी पर अंकित करने का दायित्व परिवार के ज्येष्ठ सदस्यों पर ही है ।

 

१. आहार का मन से संबंध

अन्न और मन का घनिष्ठ संबंध है । आहार के सूक्ष्मतम भाग से, अर्थात अन्न के सत्त्व, रज और तम घटकों से मन बनता है । इसीलिए आहार के अनुसार हमारे आचार और विचार परिवर्तित होते हैं । सत्त्वगुण बढानेवाले आहार को सात्त्विक आहार और मन में रज और तम दोष बढानेवाले आहार को क्रमशः राजसी और तामसी आहार कहते हैं ।

अ. अन्न के सूक्ष्मतम परमाणु से मन बनना और इससे आहारानुसार आचार-विचार में परिवर्तन होना

अन्न की निंदा कभी न करें । अन्न के विषय में पूज्यभाव होने पर वह शरीर और मन के लिए पुष्टिदायक होता है । ‘मन और इंद्रियों की मांग के अनुसार आहार करने पर ज्ञाननाश और मानसिक विक्षिप्ति (न्युरोसिस) होती है ।’ – गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी

व्यक्ति के मन पर भिन्न-भिन्न परिणाम होने का कारण

स्वच्छ कपडे पर लगा छोटा-सा भी धब्बा सुस्पष्ट दिखाई देता है; किंतु मटमैले कपडे पर धब्बा नहीं दिखाई देता । उसीप्रकार सत्त्वगुणी मनुष्य पर अनिष्ट अन्न का परिणाम तुरंत दिखाई देता है, जबकि रज-तम गुणों से युक्त व्यक्ति पर ऐसे अन्न का परिणाम नहीं दिखाई देता । किसी का शरीर सशक्त होता है, तो किसी का दुर्बल । इसी प्रकार से मन भी होता है । इसीलिए किसी प्रसंग का परिणाम किसी व्यक्ति के मन पर जैसा होता है, वैसा दूसरे व्यक्ति के मन पर नहीं होता ।

आ. अन्न के प्रकारों के अनुसार स्वभाव-विशेषताओं की निर्मिति

आ. १. शाकाहार और मांसाहार

वैज्ञानिकों ने बाघ के एक शावक के सामने केवल रोटी आदि शाकाहार और एक गाय के सामने पकाया हुआ मांस प्रतिदिन रखना आरंभ किया । इस प्रकार दो-चार वर्ष व्यतीत होने पर वह बाघ का शावक अत्यंत शांत और गाय अत्यंत क्रुद्ध एवं उग्र स्वभाव की हो गई । इससे उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि ‘मांस खाने पर प्राणी क्रोधी, उग्र होता है तथा शाकाहार से प्राणी शांत होता है ।’

आ. २. कच्चा और पकाया हुआ मांस

आगे उन वैज्ञानिकों ने एक कुतिया के दो पिल्लों में से एक को कच्चा मांस और दूसरे को पकाया हुआ मांस प्रतिदिन खिलाना आरंभ किया । इस प्रकार से दो-चार वर्ष व्यतीत होने पर ऐसा दिखाई दिया कि कच्चा मांस खाने से प्राणी अधिक क्रूर बनता है तथा पकाया हुआ मांस खाने से वह मध्यम क्रूर बनता है ।

आ. ३. पकाया हुआ अन्न खानेवाले की तुलना में पक्व फल और शाक खानेवाला अधिक तेजस्वी होता है ।

 

उपर्युक्त अनुसार विविध अन्न विविध प्रकार से बनाने पर उनमें विविध गुण उत्पन्न करने की शक्ति आ जाती है |

आहार बनाते समय बनानेवाले के मन के विचारों के गुण, आहार के पदार्थों के गुण और अन्न ग्रहण करते समय मन के विचारों के गुण, इनका जीव पर परिणाम होना तथा उस पर भाव के स्तर पर मात कर पाना

‘अन्न ग्रहण करते समय मन में जिन गुणों के विचार होते हैं, वे गुण उस जीव में बढते रहते हैं । अन्न ग्रहण करते समय मन में तमोगुणी विचार होंगे, तो तमोगुण; रजोगुणी विचार होंगे, तो रजोगुण और सात्त्विक विचार होंगे, तो सत्त्वगुण बढता है । आहार बनाते समय उसे बनानेवाले व्यक्ति के मन में चल रहे विचारों के गुण, आहार के पदार्थों के गुण एवं आहार ग्रहण करते समय मन में विद्यमान विचारों के गुण, इन तीन गुणों का जीव पर परिणाम होता है । साधक के भाव के अनुसार उसे उस आहार से लाभ होता है ।’ – ईश्वर (श्री. कुमार माने के माध्यम से, २३.१२.२००५, दोपहर १२)

आ. ४ व्यक्तिनुसार अन्न का उस पर होनेवाला परिणाम

‘हम अन्न एक जैसा खाते हैं; किंतु …

क्रोधी मनुष्य में उस अन्न से क्रोध बढता है ।

प्रेमी मनुष्य में उस अन्नसे प्रेम बढता है ।

ज्ञानी मनुष्य में उस अन्न से ज्ञान बढता है ।

भक्तों में उस अन्न से भक्ति बढती है !’

(संदर्भ : सनातन का मराठी ग्रंथ ‘अन्नं ब्रह्म । : खंड १’)

      इ. आहार और गुण

१. सत्त्वगुणी आहार : गाय का दूध, घी, अखरोट, बदाम जैसे सात्त्विक आहार खाने से सत्त्वगुण बढता है ।

२. तमोगुणी आहार : तीखा, खारा और खट्टा पदार्थ खाने से तमोगुण बढता है ।

३. ‘मछली खानेवाली स्त्रियां अतिकामुक और उच्छृंखल होती हैं । मछली के सेवन से ग्रंथियों से बहुत स्राव होता है । दूध और घी खानेवाली स्त्रियां सात्त्विक होती हैं ।’ – स्वामी विद्यानंद, मुंबई (वर्ष १९८८)

त्रिगुणों के अनुसार आहार के प्रकार

अ. सात्त्विक : ‘आरोग्यदायी, पवित्र और सहजता से प्राप्त आहार

आ. राजस : जिह्वा को रुचिकर लगनेवाला आहार

इ. तामस : दुःखदायी और अपवित्र आहार’

– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी

किस अन्न से त्रिगुणों में से कौन-सा गुण बढता है ?

अ. संतों के घर का या आश्रम का, तथा प्रसाद का अन्न खाने से सत्त्वगुण बढता है ।

आ. उपाहारगृहों का या विवाह की भोजनपंक्ति का अन्न खाने से रजोगुण बढता है ।

इ. दुष्टों का दिया हुआ अन्न खाने से तमोगुण बढता है ।

 

आहार और ध्यान

‘मांसाहार करने पर ध्यान लगाना कठिन होता है । इसके विपरीत, शाकाहार करने पर ध्यान लगाना सरल होता है ।’ – श्री. स्टीफन एस्., हंगरी

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ “आधुनिक आहारसे हानि”

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