१. सामान्य नियम
नींद का उद्देश्य शरीर को विश्राम मिले, यह होता है । इस दृष्टि से जिस स्थिति में शरीर को सर्वाधिक विश्राम मिलेगा, वह नींद की स्थिति अच्छी होती है, यह सामान्य नियम है । प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति एवं तत्कालीन स्थिति के अनुसार आराम की स्थिति अलग-अलग हो सकती है । हमें किस स्थिति में सोना चाहिए, यह हमें नींद आनेतक ही हमारे हाथ में होता है । नींद आने के पश्चात की शरीर की स्थिति हमारे हाथ में नहीं होती है ।
२. नींद की विविध स्थितियों का विवेचन
नींद की निम्नांकित ४ स्थितियों का विश्लेषण –
२ अ. औधा (पेटपर) सोना
नवजात शिशु और छोटे बच्चों को इस स्थिति में सुलाने से उन्हें घुटन होने की संभावना होती है; इसलिए उन्हें औधा नहीं सुलाना चाहिए । औधा सोने से पीठ की रीढपर अन्य स्थितियों की अपेक्षा अधिक तनाव आता है ।
२ आ. सीधे (पीठ टेककर) सोना
जब हम खडे होते हैं, तब हमारी रीढ की हड्डीपर बननेवाला दबाव १०० प्रतिशत कहा जाए, तो सीधे सोने से यह दबाव ७५ प्रतिशत न्यून होकर २५ प्रतिशत ही रह जाता है । सीधे सोने से रीढ की हड्डियोंपर सबसे अल्प दबाव आने के कारण रीढ से संबंधित विकारवाले लोगों को सीधे सोने से लाभ मिलता है । सीधे सोकर घुटनों के नीचे छोटासा सिरहाना लेने से रीढ को और अधिक आराम मिलता है ।
२ आ १. सीधा सोना और खर्राटे भरने का संबंध
जिन्हें खर्राटे भरने की आदत है, उनका खर्राटा भरना सीधे सोने से बढता है । नींद में जब गले की अंतस्त्वचा (अंदर की त्वचा) में ढिलाई आकर सांस के मार्ग में बाधा उत्पन्न होती है और तब खर्राटे भरना आरंभ हो जाता है । करवटपर सोने से ढिली हुई अंतस्त्वचा श्वसनमार्ग से अलग होनेपर खर्राटे भरना रुकता है । इसलिए अनेक लोगों को करवटपर सोने से खर्राटे भरना न्यून होने का अनुभव होता है ।
२ इ. करवटपर सोना
करवटपर सोए हुए स्थिति में रीढपर खडे होने की स्थिति की अपेक्षा ७५ प्रतिशत अधिक दबाव होता है । दाहिनी करवटपर सोने से चंद्रनाडी, तो बाईं करवटपर सोने से सूर्यनाडी के संचालन में सहायता होती है ।
प्राक्शिरा दक्षिणाननो दक्षिणशिराः प्रागाननो वा स्वपेत् ।
– आचारेन्द, शयनविधिप्रयोग
अर्थ : पूर्व की ओर अथवा दक्षिण की ओर सिर रखकर करवटपर सोना चाहिए ।
धर्मशास्त्र में करवटपर सोने की बात कही जाने से विशिष्ट कारणवश अन्य स्थिति में सोने की आवश्यकता नहीं होती, ऐसे लोगों को करवटपर सोना ही अधिक उचित है ।
२ इ १. करवटपर सोने से होनेवाली प्रक्रिया
जब हम करवटपर सोते हैं, तब नीचेवाली नासिका धीरे-धीरे बंद होने लगती है । उसके एक विशिष्ट क्षमतातक बंद होनेपर हम करवट बदलते हैं । उससे धीरे-धीरे वह नासिका खुलती है और दूसरी अर्थात करवट बदलने से तब नीचे आनेवाली नासिका बंद होने लगती है । इन नासिकाओं के एक के पश्चात एक बंद होने से हम नींद में एक विशिष्ट समय पश्चात करवटें बदलते हैं ।
२ ई. नींद की स्थिति में बदलाव से होनेवाला लाभ
हम प्रतिदिन अपना एक चतुर्थांश समय नींद में व्यतीत करते हैं । प्रतिदिन इतने समयतक एक ही स्थिति में रहने से त्वचापर दबासजन्व व्रण (बेडसोअर्स) उत्पन्न होते हैं । नींद में बीच-बीच में हमारी स्थिति में बदलाव आने से शरीर के एक ही भागपर अधिक समयतक दबाव नहीं आता और उससे त्वचापर दबावजन्य व्रण (बेडसोअर्स) नहीं आते ।