१. नर्मदाजी की महिमा
त्रिभिः सारस्वतं पुण्यं सप्ताहेन तु यामुनम् ।
सद्य पुनाति गाड्गेयं दर्शनादेव नार्मदम् ॥
– पद्मपुराण
अर्थ : सरस्वती नदी में ३ दिन स्नान करने से, यमुना नदी में ७ दिन स्नान करने से और गंगा नदी में १ दिन स्नान करने से मनुष्य का पाप नष्ट हो जाता है; किंतु नर्मदा नदी के केवल दर्शन से ही मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं ।
२. नर्मदाजी की उत्पत्ति तथा भगवान शिवजी द्वारा उन्हें प्राप्त आशीर्वाद !
एक बार भगवान शिवजी द्वारा तांडव नृत्य किए जानेपर उन्हें पसीना छूटा । उस पसीने से ही नर्मदाजी की उत्पत्ति हुई है, ऐसा माना जाता है । इसीलिए नर्मदाजी को शिवजी की पुत्री माना जाता है । इस कन्या ने स्रीरूप धारण कर शिवजी की तपस्या की । तब शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि हे नर्मदे, तुम सभी पापों का हरण करेगी ! तुम्हारे जल में विद्यमान सभी पत्थर शिवतुल्य बन जाएंगे !
३. नर्मदा जयंती
यह नर्मदाजी कुमारिका होते हुए भी सभी की माता हैं । नर्मदाजी का उगम अश्विनी नक्षत्र में दोपहर १२ बजे मध्य प्रदेश के अनुप्पुर जनपद के अमरकंटक में हुआ; इसलिए इस दिन नर्मदा जयंती मनाई जाती है ।
४. एकमात्र पश्चिमवाहिनी नर्मदाजी !
नर्मदाजी का उगम पर्वतपर होने से उन्हें ‘मैकलकन्या’ भी कहा जाता है । भारत की ५वें क्रमांक की बडी नदी के रूप में नर्मदाजी का उल्लेख किया जाता है । नर्मदाजी एकमात्र ऐसी नदी है, जो पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होती हैं । उनकी लंबाई १ सहस्र ३१२ कि.मी. है और वे गुजरात के भडोच में अरब सागर से मिलती है । इस प्रकार से यह पवित्र नदी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं गुजरात राज्यों से प्रवाहित होती हैं ।
५. भारत की सभी पवित्र नदियों में से केवल नर्मदाजी की ही
परिक्रमा की जाना और सबसे पहले मार्कंडेय ऋषी द्वारा नर्मदा परिक्रमा की जाना
भारत में जो पवित्र नदियां हैं, उनमें से केवल नर्मदाजी की ही परिक्रमा की जाती है । अनेक साधु-संतों ने बताया है, ‘‘सभी देवी-देवता एवं साधु-संतों ने नर्मदा परिक्रमा की है । उनमें सबसे पहले मार्कंडेय ऋषीने नर्मदाजी की परिक्रमा की थी और उसके लिए उन्हें २७ वर्ष लगे ।’’
६. महापुरुषों के पदस्पर्श से पवित्र नर्मदाजी का परिसर !
ऐसे महापुरुषों के पदस्पर्श से नर्मदाजी का परिसर अत्यंत पवित्र बना है । नर्मदातट एक तपोभूमि है । आज भी नर्मदाजी के दोनों तटोंपर अनेक साधु-संत एवं ऋषि-मुनियों के आश्रम हैं और वहां परिक्रमा करनेवाले श्रद्धालुओ के निवास एवं भोजन का प्रबंध किया जाता है ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात
७. जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त कर शाश्वत आनंद की प्राप्ति करवानेवाली नर्मदा !
‘नर्मदा’, इस नाम में ही गूढ अर्थ छिपा है । ‘नर्म’, अर्थात आनंद तथा ‘दा’, अर्थात प्रदान करनेवाली । ‘नर्मदा अर्थात सभी को जन्म-मृत्यु के चक्र से, बंधन से मुक्त कर शाश्वत आनंद की प्राप्ति करवानेवाली नर्मदा है ।’
८. नर्मदा को रेवा के नाम से भी संबोधित किया जाना
सातपुडा, विंध्याचल जैसे विशाल पर्वतों से अपनी राह बनाती हुई ‘रव-रव’ की ध्वनि करती हुई जाने से उनका नामकरण ‘रेवा’ भी है ।
९. नर्मदा अर्थात जगज्जननी माता !
वैसे देखा जाए, तो वह जगज्जननी माता ही है । वह अपने सभी बाल-बच्चों को अपनी दिव्य ममता के आंचल में लेकर ज्ञानामृत प्रदान कराती हैं ।
१०. माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी को (रथसप्तमी को) नर्मदादेवी
प्रकट हुईं, इसलिए यह दिन नर्मदातट पर बडे धूमधाम से मनाया जाना
नर्मदा के जन्मदाता साक्षात महादेव-पार्वती होने से श्री नर्मदादेवी का वर्णन ब्रह्मदेव भी नहीं कर पाएंगे, तो अन्यों की क्या बात है ? ऐसी यह नर्मदामैया माघ शुक्ल पक्ष सप्तमी को (रथसप्तमी को) प्रकट हुईं; इसलिए यह दिन नर्मदातट पर बडे धूमधाम से मनाया जाता है ।
(संदर्भ : परम पूजनीय श्रीराम महाराज द्वारा रचित नर्मदापुराण के आशिर्वचनों से संकलित)
११. नर्मदा परिक्रमा के प्रकार
नर्मदाजी की ३ प्रकार से परिक्रमा की जाती है – १. रुद्र परिक्रमा २. जल हरि परिक्रमा एवं ३. हनुमान परिक्रमा इनमें से जल हरि परिक्रमा एवं हनुमान परिक्रमा करना अत्यंत कठिन होने से बहुत अल्प श्रद्धालु ये परिक्रमाएं करते हैं । अधिकांश श्रद्धालु रुद्र परिक्रमा ही करते हैं ।
१२. नर्मदा परिक्रमा की कालावधि
नर्मदा परिक्रमा की कालावधि कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वादशी से लेकर आषाढ शुक्ल दशमीतक होता है । आगे जाकर आषाढ शुक्ल पक्ष एकादशी (आषाढी एकादशी) से लेकर कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी (कार्तिकी एकादशी) तक परिक्रमा बंद होती है; क्योंकि वर्षा के कारण नर्मदाजी में बाढ आकर परिक्रमा का मार्ग बंद हो जाता है । इसलिए इस कालावधि में अर्थात चातुर्मास में अनेक परिक्रमावासी नर्मदा तटपर विद्यमान संतों के आश्रम में निवास कर कार्तिकी एकादशी के पश्चात पुनः परिक्रमा के लिए अग्रसर होते हैं । जिन श्रद्धालुओ को पैदल चलकर परिक्रमा करना संभव नहीं होता, वे गाडी से भी परिक्रमा करते हैं ।
१३. नर्मदाजी के विविध विलोभनीय रूप
नर्मदाजी की पैदल परिक्रमा करते समय नर्मदाजी के अनेक रूप देखने के लिए मिलते हैं । कभी विशाल नदीक्षेत्र, तो कभी शांति से प्रवाहित नर्मदामाता, तो कभी धुवांधार (जोरों से गिरनेवाला प्रवाह), तो कभी ७ खडकों से सप्तधाराओ से प्रवाहित नर्मदामाता दिखाई पडती है ।
१४. नर्मदा परिक्रमा करते समय प्राप्त विविध अनुभूतियां
नर्मदा परिक्रमा अनेक अनुभवों का कोष है । श्रद्धा एवं निष्ठा के साथ परिक्रमा करनेवाले की पात्रता के अनुसार उसे अनुभव प्राप्त होते हैं ।
अ. नर्मदामाता सचमुच ही माता की भांति बच्चों का पालन करती है, ऐसी अनुभूति होती है ।
आ. वे कभी-कभी क्रोध करती हैं, तो कभी-कभी दंडित करती हैं; किंतु कुछ ही समय में योग्य मार्ग भी दिखाती हैं ।
इ. किसी स्थानपर मार्ग चूक जाने के ध्यान में आते ही तुरंत ‘नर्मदा हर’ मंत्र को श्रद्धा के साथ और ऊंचे स्वर में जपने से कोई तो मार्ग दिखानेवाला मिल ही जाता है, यह निश्चित है ।
१५. नर्मदा परिक्रमा जीवन जीने की कला सिखने का एक पारमार्थिक विद्यापीठ !
इस परिक्रमा में अनेक विचारोंवाले लोग मिल जाते हैं, साथ ही अनेक भाषाएं, अलग-अलग स्वभाव, छोटे-बडे, वयस्क इन सभी से बहुत कुछ सीखने को मिलता है । कई लोगों से निरपेक्ष प्रेम मिलता है, तो कुछ लोगों से अपमान भी मिलता है । मुझे इस परिक्रमा से घर की सभी आदतों को बाजू में रखकर एक अलग वातावरण में रहना, आनेवाले प्रत्येक प्रसंग का संयम के साथ सामना करना और मन को अधिकाधिक नामचिंतन में लीन रखना, यह सब सीखने को मिला । इसका उपयोग परिक्रमा पूर्ण होने के पश्चात आगे के जीवनयापन में निश्चितरूप से होता है ।
१६. नर्मदा परिक्रमा हेतु सात्त्विक विचार, मन एवं बुद्धि का निश्चय और
त्याग की आवश्यकता होना और केवल गुरुकृपा होने से ही नर्मदा परिक्रमा संभव होना
नर्मदा परिक्रमा का प्रारंभ कहीं से भी किया जा सकता है; किंतु परिक्रम की समाप्ती ओकारेश्वर में ही होती है । इस परिक्रमा के विषय में अनेक विचारकों ने स्वयं परिक्रमा कर अपने-अपने अनुभवों का पुस्तकरूप में शब्दांकन किया है । उनका भी उपयोग परिक्रमा में होता है । इन सब में महत्त्वपूर्ण यह है नर्मदामाता की इच्छा एवं सद्गुरुदेवजी के आशीर्वाद ! अपना पुण्यसंचय और बडों के आशीर्वाद के होने से ही नर्मदा परिक्रमा संभव है । इसके साथ ही सकात्त्विक विचार, मन एवं बुद्धि का निश्चय और त्याग इन सभी को आचरण में लाने हेतु गुरुकृपा की ही आवश्यकता होती है और तभी १ सहस्र २०० कि.मी. की नर्मदा परिक्रमा पूर्ण होती है । हर नर्मदे, हर नर्मदे, हर नर्मदे !’