पुण्य का परिणाम 

व्यष्टि पुण्य का परिणाम

मनुष्यको पुण्य की मात्रा अनुसार इहलोक में निम्नानुसार सुखप्राप्ति होती है और अंत में उसी पुण्य के बलपर स्वर्गसुख भी मिलता है ।

अ. धनवान एवं सुसंस्कृत परिवार में जन्म

आ. आय में वृद्धि

इ. भौतिक सुखप्राप्ति

ई. इच्छापूर्ति

उ. आरोग्यसंपन्न जीवन

ऊ. समाज, संस्था एवं प्रशासन द्वारा प्रशंसा और सत्कार

ए. आध्यात्मिक उन्नति

ऐ. मृत्यु के उपरांत स्वर्गसुख

 

समष्टि पुण्य का परिणाम

समष्टि पुण्य बढनेपर राष्ट्र आचारविचार संपन्न एवं समृद्ध होता है ।

 

पुण्य जला देनेवाली बातें

१. व्यक्ति के हाथोें अधिकाधिक बुरा कर्म होना

जबतक पुण्य समाप्त नहीं होता, तबतक ईश्‍वर भी उस व्यक्ति के दुष्कर्मों का दंड उसे नहीं देते; परंतु किसी व्यक्ति का पुण्य शीघ्र समाप्त हो, इसलिए अनिष्ट शक्तियां ऐसे व्यक्ति द्वारा अधिकाधिक दुष्कर्म करवाती हैं एवं उसका पुण्यसंचय समाप्त करवाती हैं ।

२. सत्पुरुषको कष्ट देना या देवीसमान स्त्री की निंदा करना

किसी दुर्जन व्यक्ति का पुण्य शीघ्र समाप्त हो, इसलिए अनिष्ट शक्तियां उससे सत्पुरुषको बिना कारण कष्ट देने या देवीसमान स्त्री की निंदा करने जैसे दुष्कर्म करवाती हैं ।

 

पुण्य समाप्त होने के लक्षण

१. पुण्य समाप्त होनेपर प्रार्थना करनेपर भी अपना काम न होना

मनुष्य जब उसके अथवा अन्यों के जीवन की कठिनाइयां, रोग अथवा अन्य किसी भी समस्या के निराकरण एवं इच्छापूर्ति हेतु प्रार्थना करता है, तब उसके पुण्य का व्यय होता है । उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में सुख आता है, तब प्रत्येक क्षण उसके पुण्य का व्यय होता है । इसलिए आगे चलकर अनेक बार प्रार्थना करनेपर भी काम न हो रहा हो अथवा कार्य में सफलता न मिल रही हो, तो मनुष्यको समझ लेना चाहिए कि अपना पुण्य समाप्त हो गया है और ईश्‍वरको दोष न देते हुए पुण्य बढाने का (साधना करने का) प्रयत्न करना चाहिए ।

२. पुण्य-संचय समाप्त होनेपर उत्तम वस्तुको भी मूल्य प्राप्त न
होना एवं पुण्य-संचय होनेपर सर्वसामान्य वस्तुको भी मूल्य प्राप्त होना

निम्नांकित उदाहरण से यह सूत्र स्पष्ट होगा । कोई विद्वान लेखक कोई उत्तम श्रेणी की पुस्तक लिखता है । पुस्तक लिखकर पूर्ण होनेतक उसका पुण्य-संचय समाप्त हो जाए, तो वह पुस्तक अच्छी श्रेणी की होते हुए भी नहीं छपती और यदि छप गई तो विक्रय नहीं होती । अर्थात उस पुस्तक के संदर्भ में विविध स्तरोंपर अनेक प्रकार की कठिनाइयां आती हैं । इसके विपरीत, जिसके पास पुण्य-संचय है, ऐसा दूसरा कोई लेखक सामान्य श्रेणी की पुस्तक लिखे एवं उस पुस्तक की सहस्रों प्रतियां विक्रय होती हैं । उस लेखकको समाज में कीर्ति प्राप्त होती है ।

संदर्भ : सनातन निर्मित ग्रंथ ‘पुण्य-पाप के प्रकार एवं उनके परिणाम’

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