प्रयागराज (कुंभनगरी) : ८ फरवरी को यहां सनातन संस्था तथा हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से आयोजित ‘ग्रंथ एवं धर्मशिक्षण फलक ’ प्रदर्शनी को पंजाब के प्रवचनकार आचार्य सतीश शास्त्री ने भेंट दी । उस समय उन्होंने प्रतिपादित किया कि, ‘मैं यह मानता हूं कि, यह मेरा भाग्य है कि, कुंभमेले में मेरे कार्यक्रम के पश्चात् मुझे ग्रंथ तथा धर्मशिक्षण फलक प्रदर्शनी देखने की संधी प्राप्त हुई । वर्तमान में सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले के संकलित किए ग्रंथ अर्थात् बडी मेजवानी है; क्योंकि मुझे यह प्रतीत होता है कि, यह ग्रंथ पडने के पश्चात्, सुनने के पश्चात्, देखने के पश्चात् संपूर्ण भारत में परिवर्तन होगा; इसलिए इस प्रदर्शनी की मैं प्रशंसा करता हूं ।’
आगे आचार्य सतीश शास्त्री ने यह वक्तव्य किया कि,
१. भारत एक ऋषि एवं कृषि परंपरा, सनातन सिद्धांत, अपनी मर्यादा, गौरव से जुडा देश है; किंतु दुर्भाग्यवश हिन्दु समाज ने सनातन
संस्कृति तथा धर्मशिक्षण के साथ आयुर्वेद का त्याग किया है ।
२. ऋषिमुनियों द्वारा हिन्दुओं को अधिक प्रसाद प्राप्त हुआ है । उन्होंने अनेक विषयों का प्रचंड अन्वेषण किया है ।
३. परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी के समान संतों ने हमें इतना ज्ञान दिया है कि, हमारी झोली में वह रहता नहीं है । अधिक मात्रा में वह
बाहर गिर रहा है । साथ ही दुर्भाग्य से हमारी दृष्टि पाश्चात्त्य संस्कृति की ओर मुडती है ।
४. मुझे यह प्रतीत होता है कि, कुंभमेले का आनंद यहां ही देखने का भाग्य प्राप्त होता है । यह कुंभ का कलश परिपूर्ण होने के लिए सनातन
के ग्रंथों की जानकारी ही बस है ।
५. हिन्दू जनजागृति समिति के उत्तर-पूर्व भारत के मार्गदर्शक पू. नीलेश सिंगबाळ तथा ओडिशा राज्य के समन्यवक श्री. प्रकाश मालोंडकर ने कुशल नेतृत्व से यह प्रदर्शनी आयोजित की गई है ।
६. यदि देश में ऐसी प्रदर्शनी १०० स्थानों पर आयोजित की जाएगी, तो १२५ करोड जनता परिवर्तित हो सकती है । मैं कुछ भी अवास्तव
वक्तव्य नहीं कर रहा हूं, तो वर्तमान की परिस्थिती के अनुसार वक्तव्य कर रहा हूं ।
मैं पठाणकोट (पंजाब) में इस प्रकार की प्रदर्शनी आयोजित करने का प्रयास करूंगा ! – आचार्य सतीश शास्त्री
‘प्रयागराज के कुंभमेले में आनेवाले सभी श्रद्धालुओं को मैं आवाहन करता हूं कि, यदि प्रत्येक श्रद्धालु इस प्रदर्शनी को भेंट दे, तो अनादि कालावधी से चलती आई भारतीय, ऋषि एवं सनातन परंपरा का स्मरण होगा । यह प्रदर्शनी पठाणकोट पंजाब में आयोजित करने का प्रयास करूंगा । मनुष्य को इससे अधिक अन्य दूसरी कोई भी सेवा नहीं है । हम इस प्रदर्शनी के माध्यम से स्वदेश का प्रचार कर रहे हैं । इससे तुम पाश्चात्त्य संस्कृति को बाहर निकाल रहे हैं । किसी ढक्कन के अनुसार हिन्दुओं पर जो आवरण आया है, वह आवरण बाहर निकालने का कार्य यह प्रदर्शनी कर रही है । अतः ईश्वर के चरणों में मैं यह प्रार्थना करता हूं कि, राष्ट्र के साथ संपूर्ण विश्व में इस प्रदर्शनी का पता होना चाहिए ।’