श्री हालसिद्धनाथजी तथा श्री बिरदेवजी का सनातन के आश्रम में हुआ शुभागमन ।
हिन्दू राष्ट्र स्थापना का देने से आशीर्वाद कृतज्ञ हुए संत एवं साधकजन ॥
सनातन आश्रम, रामनाथी (गोवा) : आनेवाले भीषण संकटकाल में साधकों की रक्षा हेतु तथा हिन्दू राष्ट्र स्थापना हेतु साधकों को आशीर्वाद प्रदान करने हेतु श्री क्षेत्र आप्पाचीवाडी-कुरली (तहसील निपाणी, जनपद बेळगाव, कर्नाटक) के श्री हालसिद्धनाथ देव तथा श्री बिरदेवजी का २५ जनवरी की सुबह १०.३० बजे सनातन के रामनाथी आश्रम में मंगलमय वातावरण में शुभागमन हुआ ।
इस समय ढोलों की गूंज (वालंग), नामघोष, गजी नृत्य, तलवार नचाना (बनगर नृत्य) के कारण आश्रम का वातावरण चैतन्यमय बन गया था । सायंकाल में पू. भगवान डोणे महाराज का भविष्यवाणी का विशेष कार्यक्रम था । श्री हालसिद्धनाथ देव एवं श्री बिरदेवजी की मूर्तियों के साथ पू. डोणे महाराज, मुरारी पुजारीसहित १७५ भक्तगण उपस्थित थे । इस समय सनातन की सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी, और सनातन संस्था के संतों की भी वंदनीय उपस्थिति थी ।
प्रारंभ में ढोलवादन का कार्यक्रम हुआ । सनातन के ६४ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त साधक श्री. प्रकाश मराठे के हस्तों श्री हालसिद्धनाथजी एवं श्री. बिरदेवजी की मूर्तियां, पू. भगवान डोणे महाराज और श्री. मुरारी पुजारी का प्रवेशद्वारपर पाद्यपूजन कर उन्हें माल्यार्पण किया गया । सुबह १०.३० बजे पू. डोणे महाराज ने मूर्तियों का पूजन किया । उसके पश्चात श्री विठ्ठल बिरदेवजी एवं श्री हालसिद्धनाथजी की आरती गाई गई । अत्यंत शारिरीक कष्ट होते हुए भी परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने श्री हालसिद्धनाथजी तथा श्री बिरदेवजी के दर्शन किए ।
समारोह में सहभागी मानदार
कुरली के पाटिल वंश के श्री. कृष्णात दिनकर पाटिल, श्री. कृष्णात चव्हाण, पू. डोणे महाराज के सहयोगी श्री. वसंत पाटिल एवं संजय पाटिल, वालंग समूह के सर्वश्री राघू निकाडे, पी. आर. पाटिल, राजाराम ढगे, बाळासाहेब आबणे, नेताजी पाटिल, शंकर वासकर तथा उनके सहयोगी, निपाणी के श्री. वीरभद्र विभूते, श्री. पोतदार, श्री. संदीप पिष्टे, श्रीमती रंजना विभूते, श्रीमती सगूताई वासकर, देवस्थान समिति, छत्र एवं पालकीवाला समूह (इस समारोह में देहभान भूलकर बडे उत्साह के साथ ११ ढोल बजाए जा रहे थे ।)
देवताओं को पुकारने हेतु धनगरी गीत, गजी नृत्य, भजनोंसहित ढोलों की गूंज में बनगर नृत्य का अविष्कार !
पूजन-आरती के पश्चात ढोलों की गूंज में बनगर नृत्य कर हल्दी बिखेरी गई । उसके पश्चात धनगरी गीत, गजी नृत्य और भजनों का कार्यक्रम हुआ । देवता को पुकारने हेतु भक्तों ने देहभान भूलकर किए गए इस कार्यक्रम से वातावरण में एक अलग ही प्रकार का चैतन्य फैल गया था ।