परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को स्वास्थ्यमय दीर्घायु प्राप्त हो,
हिन्दू राष्ट्र स्थापना में उत्पन्न सभी बाधाएं दूर हों; इसके लिए संकल्प !
रामनाथी (गोवा) : परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी को स्वास्थमय दीर्घायु प्राप्त हो, उनपर का महामृत्युयोग का संकट टले, हिन्दू राष्ट्र स्थापना में उत्पन्न सभी बाधाएं दूर हों तथा इस कार्य में सहभागी साधकोंसहित सभी हिन्दुत्वनिष्ठों के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कष्ट होकर उनका जीवनवर्धन हो, यह संकल्प कर भृगु महर्षिजी की आज्ञा के अनुसार सनातन आश्रम में श्री चामुंडादेवी का याग भावपूर्ण वातावरण में संपन्न हुआ ।
सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने २८ दिसंबर २०१८ को संपन्न याग का संकल्प लिया । उसके पश्चात गणेशपूजन के पश्चात सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने चामुंडादेवी याग, पूर्णाहुति, कुष्मांड बली और उसके पश्चात महाआरती उतारी गई । सनातन के साधक-पुरोहित श्री. दामोदर वझे के मार्गदर्शन में याग के धार्मिक विधि किए गए । सनातन के संत पू. (डॉ.) मुकुल गाडगीळजी भी याग के हवन के समय उपस्थित थे ।
भृगु महर्षि द्वारा देवी की उपासना बताए जाने का कारण
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने साधकों को स्वभावदोष एवं अहंनिर्मूलन प्रक्रिया सिखाई । उसके कारण अनेक साधकों ने इस प्रक्रिया को अपनाया और अपनी आध्यात्मिक उन्नति कर संत तथा सद्गुरुपद प्राप्त किया । उसके कारण अनिष्ट शक्तियों को साधकों के मन एवं बुद्धिपर आक्रमण करना संभव नहीं होता; इसलिए उन्होंने साधकों को शारीरिक स्तरपर कष्ट पहुंचाना आरंभ किया । रक्त शरीर से संबंधित होता है । वर्तमान में साधकों को कष्ट पहुंचानेवाली अनिष्ट शक्तियां रक्तबीज राक्षसों की वंशज हैं । उनका नाश होने हेतु भृगु महर्षिजी ने इस याग का सुझाव दिया था ।
याग से संबंधित विशेषतापूर्ण सूत्र
१. याग से पूर्व सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एक बार केपे, गोवा के श्री. चामुंडादेवी मंदिर में गई थीं, तब उन्होंने वहां हिन्दू राष्ट्र स्थापना के लिए प्रार्थना की, तब देवी ने उन्हें सूक्ष्म से यह बताया, ‘‘रामनाथी आश्रम में मेरा अस्तित्व है । आश्रमात किए जानेवाले याग के समय मैं वहां उपस्थित रहूंगी ।’’
२. हवन के आरंभ से पहले देवी की महिमा कथन करते समय, साथ ही प्रार्थना के समय जोरों की हवा चल रही थी । उस समय यज्ञस्थल बंदिस्त होते हुए की औदुंबर वृक्ष के कुछ पत्ते यज्ञस्थल के पास आकर गिर पडे ।
३. हवन के समय पू. (डॉ.) मुकुल गाडगीळजी जब देवी से प्रार्थना कर रहे थष, तब पूजन किए गए देवी की मूर्तिपर समर्पित फूल नीचे गिर गया ।
४. यज्ञ के समापन के पश्चात यज्ञस्थलपर विद्यमान नारियल के वृक्ष से एक नारियल छप्परपर गिरा । इससे देवी ने श्रीफल के माध्यम से यज्ञ की आहुति को स्वीकारे जाने की साक्ष मिली ।
५. यज्ञ के समय सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी जिस दिशा में बैठी थीं, उसी दिशा में अग्नि की ज्वालाएं जा रही थीं ।
६. हवन के समय सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी को यज्ञकुंड की अग्नि का स्पर्श हुआ; किंतु उन्हें कहींपर जला नहीं, अपितु उन्हें उसका शीतल स्पर्श प्रतीत हुआ ।
७. पूर्णाहुति के समय प्रज्वलित अग्नि की ज्वालाएं उपर की दिशा में आ रही थीं, उसे देखकर यज्ञकुंड की अग्नि से अग्निदेव प्रकट होकर आहुति का स्वीकार कर रहे हैं, ऐसा पू. (डॉ.) मुकुल गाडगीळजी को प्रतीत हुआ ।
८. पूर्णाहुति के समय समर्पित श्रीफल का अग्र यज्ञस्थलपर उपस्थित एक संतजी की दिशा में था । उसके पश्चात जब वे संतजी प्रार्थना कर रहे थे, तब श्रीफल की दिशा बदलकर उसका अग्र ऊर्ध्वदिशा में हुआ । उस समय वृक्ष के कुछ पत्ते उस श्रीफलपर आकर गिर गए ।
श्री चामुंडादेवी की विशेषताएं
जिस देवी ने चंड-मुंड राक्षसों का नाश किया, वह हैं श्री चामुंडादेवी ! इस देवी ने कालीमाता का रूप धारण कर रक्तबीज नामक राक्षस का नाश किया था । श्री चामुंडादेवी का मूल स्थान कांकडा, हिमाचल प्रदेश में है । यह स्थान ५१ शक्तिपीठों में से एक है । यहां महासतीदेवी के चरण अंकित हुए थे ।