ऐसी है अस्थाई भव्य कुंभनगरी !

कुंभपर्व का जीवंत शब्दचित्रण करनेवाला स्तंभ : कुंभदर्शन

प्रयागराज के कुंभक्षेत्र में गंगा नदीपर बडी-बडी लोहे की टंकियोंपर खडा किया गया तथा तार के घेरेवाला ‘पीपापुल’!

 

१. गंगाजी के चरणों में ‘युनेस्को’!

‘भव्य कुंभ, दिव्य कुंभ; लक्ष्य भी प्रयास भी’, कुंभ के आयोजन हेतु योगी सरकार का ब्रीदवाक्य है । इसका अर्थ यह है कि कुंभपर्व दिव्य एवं भव्य हो, यह हमारा लक्ष्य भी है और प्रयास भी ! यह ब्रीद सरकार के प्रयासों की अपेक्षा कुंभ की भव्यता को दर्शाता है । इस भव्यता के कारण संयुक्त राष्ट्रों के ‘युनेस्को’ की आंखें भी चमक गई हैं । युनेस्को ने इसके संदर्भ में ‘विश्‍व का सबसे बडा शांतिपूर्ण एवं धार्मिक सम्मेलन’ कहकर ‘मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर’, के रूप में कुंभ को स्वीकृती दी है । ‘सूर्य को कौन प्रमाणपत्र दे सकता है ?’ उस प्रकार से ‘कुंभ को प्रमाणपत्र कौन देगा ?’, यह वास्तविकता है; किंतु आज बिना प्रमाणपत्र के विश्‍व को उसका महत्त्व समझ में नहीं आता । उसके कारण युनेस्को ने भी यह कार्य कर बहती गंगा में अपने हाथ धो लिए, जो अच्छा ही हुआ । ‘सेक्युलर’ भारतीयों के लिए यह प्रमाणपत्र कुंभ का महत्त्व अधोरेखित कर देगा । इस कुंभ के जितनी हैी प्रयागराज की कुंभनगरी की विशेषता है । इस लेख के माध्यम से आपको उसका दर्शन कराने का यह प्रयास है ।

 

२. श्रद्धालुओ को कुंभक्षेत्र ले जानेवाला आज का ‘गंगासेतू’ अर्थात पीपापुल !

प्रयागराज नगर गंगातटपर बसा है; किंतु कुंभनगरी इस नगर में नहीं है । लगभग २५ कि.मी. व्यासवाले गंगाजी के नदीक्षेत्र में ही स्वतंत्ररूप से कुंभनगरी बसाई जाती है और वह भी तात्कालीन ! जिस नदीक्षेत्र में वर्षाऋतु में पानी और रेत के बिना कुछ नहीं होता, उस नदीक्षेत्र की दोनो बाजुओ के नदीक्षेत्र में कुंभनगरी बसाई गई है । नगर से सटे नदीक्षेत्र में कुंभ का अल्प क्षेत्र है; किंतु दूसरी बाजू में विशाल कुंभक्षेत्र है । नगर और कुंभक्षेत्र को जोडने हेतु गंगाजी के नदीक्षेत्रपर ‘पोंटून’ अर्थात पीपापुल बनाया गया है । स्वतंत्रता के पश्‍चात वर्ष १९५४ में आयोजित कुंभ में इस प्रकार के ६ पुल बनाए गए थे । अब उनकी संख्या २२ तक पहुंच गई है । इस पीपापुल की विशेषता यह कि नदी की रेत में १०-१५ फीट की दूरीपर लोहे की बडी-बडी टंकियां डाली जाती हैं । पहले उसपर लोहे की पट्टियां बिछाकर उसके पश्‍चात उसपर खडे-आडे लकडी की पट्टियों को जोडा जाता है । उसपर ‘पुवाल’ (घांस) और रेत का उपयोग कर सडक बनाई जाती है । इन दोनों पुलों की दोनों बाजुओ में तार का घेरा है । इसपर एक समयपर एक ही चारपहिया वाहन जा सकता है । यह पुल ऐसा होने से प्रत्येक प्रमुख सडक से आने और जाने के लिए अलग-अलग पुल बनाए गए हैं । पुल के उस पार नगर के पास मेला कार्यालय, प्रशासन के विविध विभाग तथा प्रसारमाध्यमों के लिए सुविधा उपलब्ध कराई गई है ।

 

३. अस्थाई नियोजन का सबसे अच्छा प्रारूप !

कुंभ का नदीक्षेत्र में विद्यमान भव्य क्षेत्र देखनेपर ऐसा लगता है कि वास्तव में यह गंगाजी की कृपा है । गंगामाता वर्षाऋतु में सभी क्षेत्र को घेरकर बहती है और अन्य समयपर वह अपने क्षेत्र को अपने भक्तों के लिए उपलब्ध कराती है !, अन्यथा धनवानों ने इस क्षेत्र को भी घेरने में कोई कसर न छोडी होती । इतने बडे क्षेत्र का अस्थाई नियोजन भी प्रशासन की कुशलता ही कहनी पडेगी । इतने बडे नदीक्षेत्र में इतनी कुशलता से समांतर खडे-आडे मार्ग बनाकर उन्हें २० सेक्टरों में वर्गीकृत किया गया है । सभी सडकों को नाम देकर विविध स्थानोंपर दिशादर्शक फलक लगाए गए हैं । भले ऐसा हो; किंतु जिन्हें दिशा का ज्ञान नहीं होता, उनके लिए कोई पता मिलना थोडा कठिन ही होता है । ऐसे लोगों को अंत में नदीक्षेत्रपर बनाए गए रेलपुल तथा शास्त्रीपुल का आधार लेकर पता समझ लेना पडता है । प्रशासन ने प्रत्येक सेक्टर के लिए स्वतंत्र पुलिस थाना, अग्निशमन केंद्र, चिकित्सालय और विद्युत वितरण केंद्र बनाकर उस संबंधित सेक्टर की सुविधा सुसज्जित की गई है । यह व्यवस्था इतनी सुसज्जित है कि जब सनातन के शिविर में उपस्थित एक साधक को जब पेटदर्द का कष्ट होने लगा, तब उस स्वास्थ्यकेंद्र में उसके ‘सोनोग्राफी’ की व्यवस्था भी उपलब्ध थी । इतने बडे क्षेत्र में पेयजल, बिजली आदि सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, साथ ही ड्रेनेज और सुरक्षा हेतु सीसीटीवी की भी तात्कालीन व्यवस्था खडी की जाती है और पुनः निकाली भी जाती है । प्रत्यक्षरूप से कुंभ देखनेवाले इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते; किंतु प्रशासन ने इसे कर दिखाया है !

 

४. श्रद्धालुओ के पैर न धंसे; इसके लिए ‘चेकर्ड प्लेट्स’!

कुंभक्षेत्र में यातायात सुचारू हो; इसके लिए विविध स्थानोंपर तात्कालीन सडकें बनाई गई हैं । इन सडकोंपर लगभग १५x३ फीट की पट्टियां बिछाई गई हैं, जिन्हें नट-बोल्ट के साथ एक-दूसरे के साथ जोडा गय है । इन ‘चेकर्ड प्लेट्स’ के बिना यहां यातायात संभव नहीं ।

इन सडकोंपर स्थित रेत में चारपहिया वाहन तो दूर, अपितु दोपहिया वाहन भी आगे नहीं जा सकता और यदि कोई चारपहिया वाहन गया भी, तो उसका पहिया रेत में धंसने की संभावना होती है । आप गाडी चालू कर जितना उसे बाहर निकालने का प्रयास करेंगे, उतना उसका पहिया अंदर धंसता चला जाता है । इस रेत का अनुभव न होने से उसमें हमारी चारपहिया गाडी धंस गई । सडक से आने-जानेवाले लोगों ने रुककर हमारी गाडी को रेत से बाहर निकालने के लिए सहायता करने का प्रयास किया; किंतु पहिया और अंदर धंसता चला गया । अब अंत में ‘क्रेन लाकर गाडी निकालनी पडेगी’, इस विचार में हम थे, तब सुरक्षा के लिए खडे सेनादल के कमांडों सहायता के लिए आ गए । उनकी सहायता से गाडी को धक्का देकर गाडी बाहर निकालनी पडी । इन सडकोंपर बिछाई गई रेत न उडे; इसके लिए दिन में एक बार इन सडकोंपर पानी छिडका जाता है । सडकें समतोल रहें, रेतपर से जाते समय किसी को कष्ट न हो; इसके लिए प्रशासन निरंतर प्रयास करता है । इस प्लेट से दोपहिया वाहन भी बहुत ही सतर्कता से चलाना पडता है; क्योंकि यदि २ ‘चेकर्ड प्लेट्स’ के बीच में दोपहिया वाहन धस गया, तो गाडी फिसले बिना नहीं रहती । बिना अनुभववाला व्यक्ति इस प्लेटपर धीरे से गिर ही जाता है !

कुंभक्षेत्र की भव्यता एवं विशेषता इतनी है कि उसकी महिमा को एक लेख में समाना कठिन है । इस दिव्यता को कागदपर उतारना, तो गंगामाता की कृपा के बिना संभव ही नहीं है । आज कुंभक्षेत्र की भौगोलिक स्थिति अल्प मात्रा में आपके सामने रखने का प्रयास था, जिससे कि आप अगले कुंभदर्शन का आनंद ले सकें । इस लेख के माध्यम से कुंभक्षेत्र की दिव्यता का दर्शन भी आपतक पहुंचाना संभव हो; इसके लिए श्री गुरुदेवजी के चरणों में प्रार्थना कर यहीं रुकते हैं ।’

श्री. आनंद जाखोटिया, कुंभ विशेष प्रतिनिधि, सनातन प्रभात
(श्री. आनंद जाखोटिया हिन्दू जनजागृति समिति के मध्य प्रदेश एवं राजस्थान राज्यों के समन्वयक भी हैं ।)

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