सारिणी
२. श्रीगुरुचरित्रके वाचनसे हुई अनुभूति
२.१ अधिवक्ताके परामर्शके अनुसार श्रीगुरुचरित्रका वाचन करना और पारिवारिक समस्याका निवारण होना
४. श्री नृसिंह सरस्वतीजीने भगवान दत्तात्रेयके द्वितीय अवतारके रूप जन्म लिया
४.२ जागृत तीर्थक्षेत्र होनेके संदर्भमें अनुभूति
१. दत्त उपासना
अ. वर्णाश्रमोचित आचारधर्मका यथातथ्य पालन
आ. योगमार्ग एवं शक्तिपातदीक्षाके अनुसार
इ. सांप्रदायिक अनुशासन महत्त्वपूर्ण
ई. अत्यंत कठोर अनुष्ठान एवं कायाक्लेश
उ. पवित्र वस्त्र इत्यादि नियमोंका कठोर अनुपालन
ऊ. पहले मूर्ति प्रायः एकमुखी होती थी । आजकल त्रिमुखी मूर्ति अधिक प्रचलित हो रही है । कुछ स्थानोंपर पूजाके लिए सगुण मूर्तिके स्थानपर पादुका एवं उदुंबर (गुलर) वृक्षकी भी पूजा की जाती है । विविध दत्तक्षेत्रोंमें स्थापित पादुकाओंके नाम एवं उनकी विशेषताएं आगेकी सारणीमें दी हैं ।
तीर्थक्षेत्र | पादुकाओंका नाम |
विशेषताएं |
१. गाणगापुर | निर्गुण पादुका | सजीव (हाथ लगानेपर सजीवता प्रतीत होती है, कोमल लगती हैं ।) एवं निर्जीव, दोनों; इसलिए उन्हें `निर्गुण’ कहते हैं । |
२. नरसोबाकी वाडी | मनोहर पादुका | मूल बालूकी पादुकाओंपर चांदीकी पादुकाएं हैं । |
३. उदुंबर | विमल पादुका | विमल अर्थात् अत्यंत शुद्ध, पवित्र । |
२. श्रीगुरुचरित्रके वाचनसे हुई अनुभूति
२.१ अधिवक्ताके परामर्शके अनुसार श्रीगुरुचरित्रका
वाचन करना और पारिवारिक समस्याका निवारण होना
दत्तभक्त गुरुचरित्रका वाचन, पाठ एवं श्रवण बडे भक्तिभावसे करते हैं । ‘पुत्रवधूके अनुचित व्यवहारसे त्रस्त होकर एक परिवारके कुछ लोग विवाहविच्छेदके उद्देश्यसे एक अधिवक्ताके पास परामर्श लेने गए थे । अधिवक्ताने उन्हें समझाया और उन्हें ‘संक्षिप्त श्रीगुरुचरित्र’ पोथी देकर उसका प्रतिदिन पाठ करनेके लिए कहा । अधिवक्ताका यह परामर्श सुनकर ससुरजी तो चकरा गए; किंतु सासने पोथी पढनेका परामर्श मान लिया ।
वर्तमान कलियुगमें अनेक परिवारोंमें अतृप्त पूर्वजोंके कारण शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कष्ट होते हैं । उपरोक्त वधूका विक्षिप्त आचरण पितृदोषके (पूर्वजोंकी अतृप्तिके कारण होनेवाली पीडाके) कारण था । गुरुचरित्रके पाठसे, अर्थात् दत्तात्रेय देवताकी उपासनासे संबंधित पूर्वजोंको आगेकी गति मिल गई । परिणामस्वरूप आध्यात्मिक कारणोंसे उत्पन्न पारिवारिक समस्याएं दूर हो गईं । – संकलनकर्ता
३. प्रमुख तीर्थक्षेत्र
३.१ माहूर : तहसील किनवट, जनपद नांदेड, महाराष्ट्र.
३.२ गिरनार : जुनागढके निकट, सौराष्ट्र. यहां १०,००० सीढियां हैं ।
३.३ कारंजा : श्री नृसिंह सरस्वतीजीका जन्मस्थान । इसका दूसरा नाम है लाड-कारंजे । काशीके ब्रह्मानंद सरस्वतीजीने इस स्थानपर प्रथम दत्तमंदिर बनाया ।
३.४ उदुंबर : श्री नृसिंह सरस्वतीजीने यहां चातुर्मास-निवास किया । यह स्थान महाराष्ट्रके भिलवडी स्थानकसे १० कि.मी. की दूरीपर कृष्णा नदीके तटपर है ।
३.५ नरसोबाकी वाडी : जनपद कोल्हापुर, महाराष्ट्र.
४. श्री नृसिंह सरस्वतीजीने भगवान
दत्तात्रेयके द्वितीय अवतारके रूपमें जन्म लिया
वे यहांपर बारह वर्षतक रहे । इस क्षेत्रमें अष्टतीर्थ एवं दत्तात्रेयकी उपासना परंपराके सात संतोंकी समाधियां हैं । यह कृष्णा तथा पंचगंगा नदियोंका संगम क्षेत्र है । यह टेंबेस्वामीजीका प्रेरणास्थान है ।
४.१ आध्यात्मिक महत्त्व
४.२ जागृत तीर्थक्षेत्र होनेके संदर्भमें अनुभूति
दत्तके सभी तीर्थक्षेत्र अत्यंत जागृत हैं । इन तीर्थक्षेत्रोंमें जानेपर अनेक भक्तोंको शक्तिकी अनुभूति होती है । नरसोबाकी वाडी यह स्थान कितना जागृत है, यह आगे दी हुई अनुभूतिसे भी स्पष्ट होता है ।
४.३ अनिष्ट शक्तियोंके कष्टके कारण नृसिंहवाडीके
दत्तमंदिरमें अस्वस्थ लगना और थकान होकर सिरमें वेदना होना
‘मैं, मेरी पत्नी एवं सास, हम सांगलीके समीप नृसिंहवाडीके दत्तमंदिरमें गए थे । वहां कुछ समयमें ही मुझे अस्वस्थता अनुभव होने लगी । भगवानके दर्शन करनेके उपरांत परिक्रमा करते समय परिक्रमाकी संख्याके साथ मेरी अस्वस्थता बढने लगी । तब भी मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि, एक शक्ति मुझे आगे ढकेल रही है । तदुपरांत कुछ घंटोंतक मेरे सिरमें वेदना हो रही थी एवं दिनभर थकान भी अनुभव हो रही थी ।’ – एक साधक
५. गाणगापुर
यह पुणे-रायचूर मार्गपर कर्नाटकमें है । भीमा एवं अमरजा नदियोंका यहां संगम है । यहां श्री नृसिंह सरस्वतीजीने तेईस वर्ष वास किया एवं यहींपर सर्व कार्य किया । यहींसे उन्होंने श्रीशैल्यके लिए प्रयाण किया ।
६. कुरवपुर
कर्नाटक के रायचूर जनपद में स्थित एक गांव ‘कुरवपुर’ है, जो बहुत जाग्रत तीर्थक्षेत्र है ! कृष्णा नदी से घिरे इस निसर्गरम्य द्वीप पर श्री दत्तात्रेय के पहले अवतार ‘श्रीपाद श्रीवभ’ ने १४ वर्ष निवास किया था । अवतार कार्य समाप्त होने पर, वे अंतर्धान हो गए ।
श्री दत्तात्रेय के अवतार योगिराज श्री वासुदेवानंद सरस्वती (टेंबेस्वामी) को श्रीक्षेत्र कुरवपुर में ही ‘दिगंबरा दिगंबरा श्रीपाद वभ दिगंबरा’ इस अठारह अक्षरी मंत्र का साक्षात्कार हुआ । यहीं पर वासुदेवानंद सरस्वती के निवास से पावन हुई गुफा है । यहीं, पाचलेगावकर महाराज को श्रीपाद श्रीवभ के दर्शन हुए थे ।
७. पीठापुर
आंध्रप्रदेशमें श्रीपाद श्रीवल्लभजीका जन्मस्थान, जिसे टेंबेस्वामीजीने उजागर किया ।
८. वाराणसी
यहां नारदघाटपर दत्तात्रेय मठ है । श्री नृसिंह सरस्वतीजीके जो वंशज आज भी यहां हैं, उनका उपनाम ‘काळे’ है । आगे चलकर ‘काळे’ नामका अपभ्रंश ‘कालिया’ हो गया । आज भी वहां कालिया नामक बाग एवं गली है ।
९. श्रीशैल्य
हैदराबादके निकट है । श्री नृसिंह सरस्वतीजीने वहां गमन किया था ।
१०. भट्टगांव (भडगांव)
यह काठमंडूसे (नेपाल) ३५ कि.मी. की दूरीपर है ।
११. पांचाळेश्वर
जनपद बीड, महाराष्ट्र.
१२. प्रमुख ग्रंथ
१२.१ दत्त पुराण : इस पुराणके आगे दिए अनुसार तीन भाग हैं ।
१. कर्मकांड
२. उपासनाकांड
३. ज्ञानकांड
१२.२ अवधूतगीता : यह नाथपंथका एक प्रमाणभूत ग्रंथ है । दत्तात्रेयने इस गीताका उपदेश कार्तिकेयको दिया है ।
१२.३ विठ्ठल अनंतसुत कावडीबोवाकृत ‘श्री दत्तप्रबोध’
१२.४ श्री गुरुचरित्र : इसमें गुरुमहिमा एवं संप्रदायके आचारधर्मका विवरण किया गया है । अध्याय १ से २४ : ज्ञानकांड, २५ से ३७ : कर्मकांड एवं ३८ से ५३ : भक्तिकांड, ऐसा इसका स्वरूप है ।
Gujarat k kachchh district me Kala dungar k upar bhi bhagvan datatrayaji ka sthan he…..jaha datt Jayanti ko mela lgta he…..
नमस्कार श्री. नीलेश दवे जी,
हमें संपर्क कर के ये बताने के लिए धन्यवाद । क्या आप हमें उस स्थान की जानकारी भेज सकते है ? वह जानकारी जिस ग्रंथ में होगी, उस ग्रंथ का संदर्भ भी कृपया हमें भेजिए । उस स्थान के कुछ छायाचित्र (फोटो) है, तो वो भी हमें अवश्य भेजिए ।
हमारे यहां कच्छ की सीमा पर खावडा के पास कालाडुंगर पर भी भगवान दत्तात्रेय का मंदिर इस इलाके समस्त गुजरात एवम पुरे देश मे प्रख्यात है
नमस्कार श्री. हीरालाल राजदेजी,
हमें संपर्क कर के ये बताने के लिए धन्यवाद । क्या आप हमें उस स्थान की जानकारी भेज सकते है ? वह जानकारी जिस ग्रंथ में होगी, उस ग्रंथ का संदर्भ भी कृपया हमें भेजिए । उस स्थान के कुछ छायाचित्र (फोटो) है, तो वो भी हमें अवश्य भेजिए ।
Broadly explains, Good information,
jankari prapt kar bahut achha laga
Jai datta bhagwan
i believe in sansthan