परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी को स्वास्थ्यपूर्ण दीर्घायु
प्राप्त हो, हिन्दू राष्ट्र स्थापना के व्यापक कार्य में उत्पन्न अनिष्ट
शक्तियों की सभी बाधाएं दूर हों तथा साधकों की रक्षा हो; इसके लिए लिए गए संकल्प !
रामनाथी (गोवा) : श्रीरामदूत, पवनसुत, महाबली, महावीर, दास्यभक्ति के आदर्श जैसे अनेक विशेषणों से जिनका गुणगौरव किया जाता है, ऐसे चिरंजीव अंजनीपुत्र हनुमानजी ने श्रीरामचरणों की अखंड सेवा की । हनुमानजी कभी सूक्ष्मरूप धारण कर सीतामाता के सामने गए, तो कभी उग्र रूप धारण कर लंका को जला दिया, तो कभी भीमरूपी (विकराल रूप) धारण कर असुरों का संहार कर श्रीरामजी की कार्यपूर्ति की । अनेक ऋषी-मुनी तथा देवता जिनके गुणों का वर्णन करते हैं, ऐसे हनुमानजी की कृपा प्राप्त करने हेतु तथा धर्मकार्य हेतु उनके आशीर्वाद प्राप्त कर लेने हेतु यहां के सनातन आश्रम में बांदा, पानवळ, जनपद सिंधुदुर्ग (महाराष्ट्र) के प.पू. दास महाराज के मार्गदर्शन में तथा संतों की वंदनीय उपस्थिति में भावपूर्ण एवं चैतन्यमय वातावरण में कुल ५ हनुमानकवच यज्ञ संपन्न हुए । प.पू. दास महाराज द्वारा लिए गए संकल्प के आश्रम में इन ५ यज्ञों में से अंतिम पंचमुखी हनुमानकवच यज्ञ २० नवंबर २०१८ को भावपूर्ण एवं चैतन्यमय वातावरण में संपन्न हुआ । ‘परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी को स्वास्थ्यपूर्ण दीर्घायु प्राप्त हो, हिन्दू राष्ट्र स्थापना के व्यापक कार्य में उत्पन्न अनिष्ट शक्तियों की सभी बाधाएं दूर हों तथा साधकों की रक्षा हो; इसके लिए सनातन की सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने संकल्प लिया । प.पू. दास महाराज के मार्गदर्शन में अभीतक संपन्न पंचमुखी हनुमानकवच यज्ञों में से यह ५१वां यज्ञ था । सनातन के संत पू. (डॉ.) मुकुल गाडगीळजी ने यज्ञ के यजमानपद का निर्वहन किया । कपि, गरुड, वराह, नृसिंह तथा हयग्रीव इन ५ मुखों के लिए भावपूर्ण आहुति देकर हनुमानजी से प्रार्थना की गई ।
अंत में साधकों की रक्षा हेतु सिद्ध हनुमानजी की आर्तभाव से आरती उतारी गई और उसके पश्चात प्रार्थना कर यज्ञ का समापन किया गया । यज्ञ के समापन के पश्चात हनुमानजी के ५ मुखों के प्रतिकस्वरूप ५ बटुओ का पूजन किया गया । सनातन के पुरोहित साधक श्री. दामोदर वझेगुरुजीसहित श्री. सिद्धेश करंदीकर, श्री. ओकार पाध्ये, श्री. अमर जोशी, श्री. पंकज बर्वे, श्री. ईशान जोशी तथा श्री. चैतन्य दीक्षित ने इस यज्ञविधि में भाग लिया ।
उपस्थित साधकों में हिन्दू राष्ट्र स्थापना के कार्य में उत्पन्न सभी बाधाएं दूर होने के साथ ही साधक और हिन्दुत्वनिष्ठों के भी सभी कष्ट दूर होने हेतु प्रयास करनेवाले परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी, स्वयं के शरीर को होनेवाले कष्टों की भी चिंता न कर याग करनेवाले प.पू. दास महाराज के प्रति कृतज्ञताभाव उत्पन्न हो गया था ।
क्षणिकाएं
१. यज्ञ के आरंभ से पहले अर्थात सुबह १० बजे आश्रम के बाजू में वानर आ गया था ।
२. हनुमानजी के नृसिंह मुख के लिए जब आहुति दी जा रही थी, तब यज्ञकुंड की ज्वाला में वराह मुख दिखाई दिया । (छायाचित्र में वृत्त में दिखाया गया है ।)
३. सूक्ष्म-ज्ञान प्राप्तकर्त्री साधिका कु. मधुरा भोसले को ऐसा प्रतीत हुआ कि पंचमुखी हनुमानजी की मूर्ति की दोनों बाजू में रखी गई दीवटों की ज्योतियों में से किरण निकल रहे थे और वहां हवा न होते हुए भी ज्योतियां हिल रही थीं । इन ज्योतियों में सजीवता प्रतीत हो रही थी ।
४. अभीतक आश्रम में संपन्न यज्ञों के समय यज्ञकुंड से निकलनेवाला धुआं केवल यज्ञकुंड के परिसर में ही फैलता था; परंतु इस बार के यज्ञ के समय यज्ञ का धुआं आश्रम के प्रवेशद्वारतक फैल गया था ।
५. हयग्रीव मुख के लिए आहुति देने के समय हल्की वर्षा हुई, साथ ही यज्ञ के समापन के समय भी बिजली की गडगडाहट के साथ थोडी सी वर्षा हुई ।
६. यज्ञ के समापन के समय पू. (श्रीमती) लक्ष्मी (माई) नाईकजी ने ‘हे गजानन, आप दें मुझे आशीर्वाद …’ यह गीत गाकर गुुरुचरणों में प्रार्थना की । पू. (श्रीमती) माईजी द्वारा गाए गए इस भावपूण और आर्तता के साथ गाई गए इी गीत के कारण सभी की भावजागृति हुई ।