कुछ मंदिरों में महिलाओ को प्रवेश नहीं है, इसके वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण को समझ लेना चाहिए ! – श्रीमती नयना भगत, प्रवक्ता, सनातन संस्था

मराठी समाचारवाहिनी ‘जय महाराष्ट्र’ पर
आयोजित परिचर्चा में सनातन संस्था का सहभाग

मुंबई : केरल के अय्यप्पा स्वामी मंदिर में कुछ महिलाओ ने वहां की परंपरा को तोडकर मंदिर में प्रवेश किया । क्या ये महिलाएं श्रद्धा और भक्ति के कहीं आसपास भी तो हैं ? केवल कुछ ही मंदिरों में महिलाओ को प्रवेश नहीं है । उसके पीछे कुछ वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण हैं,  इसे समझ लेना चाहिए । सनातन संस्था की प्रवक्ता श्रीमती नयना भगत ने ऐसा प्रतिपादित किया । शबरीमला के अय्यप्पा स्वामी मंदिर में सभी आयुसमूहों की महिलाओ के प्रवेश के संदर्भ में मराठी समाचारवाहिनी ‘जय महाराष्ट्र’ पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया था । उसमें वे ऐसा बोल रही थीं । इस परिचर्चा में नागपुर की अधिवक्ता स्मिता सिंगलकर, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की पुणे नगर महिला मोर्चा की अध्यक्षा रूपाली पाटिल तथा भूमाता ब्रिगेड की तृप्ती देसाई ने भी भाग लिया । परिचर्चा का सूत्रसंचालन ‘जय महाराष्ट्र’ वाहिनी के आशीष जाधव ने किया ।

श्रीमती नयना भगत ने आगे कहा, ‘‘अय्यप्पा स्वामी मंदिर में महिला प्रवेश का समर्थन करना, तो वर्ष २०१९ के चुनाव की हवा है । स्वयं को किसी से भी टिकट मिले, इस उद्देश्य से यह सब किया जा रहा है । सामाजिक प्रसारमाध्यमों में चल रहे ‘रेडी टू वेट’ अभियान से शबरीमला मंदिर की परंपराओ को संजोने का समर्थन किया जा रहा है । इसमें लाखों अय्यप्पा भक्त महिलाएं और युवतियों ने भाग लिया है; परंतु यह समाज को नहीं दिखाई जाता, जिससे की समाज का बुद्धिभ्रम हो जाता है ।’’

(कहती हैं) ‘भावभक्ति विरहित और केवल पर्यटन हेतु मंदिर में जानेवाली
महिलाओ का भी सम्मान होना ही चाहिए !’ – अधिवक्ता स्मिता सिंगलकर

मंदिर में प्रवेशबंदी करना असंवैधानिक है । आज भी मध्ययुगीन मानसिकता को चिपककर रहना और परिवर्तन की ओर न जाना अयोग्य है । (एक ओर तीन तलाक, हलाला जैसे कुपरंपराओ के संदर्भ में शांत रहना, यह कैसा परिवर्तनवाद है ? यह तो केवल पाखंड और चर्चा में बने रहने का स्टंट है, ऐसा कहा जाए, तो उसमे अयोग्य क्या है ? – संपादक) सभी ने सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय को नहीं स्वीकारा, यह दुर्भाग्यजनक है । (धर्मशास्त्र से संबंधित इस निर्णय के विषय में यदि अध्यात्म के अधिकारी व्यक्तियों का मत लिया जाता, तो यह दुर्भाग्यजनक नहीं लगता ! – संपादक) जब किसी राजनीतिक उद्देश्य से हम ऐसे प्रकरणों को गंभीरता से लेते हैं, तब क्या उसका भी स्वरूप अयोध्या जैसा बडा करेंगे ?, यह प्रश्‍न उपस्थित हो रहा है । धर्मांध लोगों को  साथ लेकर राजनीतिक दल महिलाओ के अधिकारोंपर बंधन डाल रहे हैं । भावभक्ति विरहित और केवल पर्यटन हेतु मंदिर में जानेवाली महिलाओ का भी सम्मान होना चाहिए । प्राचीन वस्तुओ के अध्ययन हेतु मंदिर जानेवालों का भी सम्मान होना चाहिए । (अधिवक्ता सिंगलकर को यह ध्यान में लेना चाहिए कि मंदिर कोई पर्यटनस्थल नहीं, अपितु ईश्‍वरीय चैतन्य के स्रोत हैं ! जहां मंदिरों का आध्यात्मिक महत्त्व ज्ञात नहीं है, तो वहां भावभक्ति का महत्त्व कैसे समझ में आएगा ? – संपादक)

(कहती हैं) ‘महिलाओ द्वारा दर्शन किए जाने के पश्‍चात पुजारियों द्वारा
मंदिर स्वच्छ किया जाना, विकृति है !’ – रूपाली पाटिल, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना

मंदिर प्रवेश के विषय में केरल में एक भूमिका रखना और अन्य राज्यों में अलग भूमिका रखना प्रधानमंत्रीपद को शोभा नहीं देता । यह राजनीति है । चुनाव के लिए देवता और धर्म का उपयोग किया जा रहा है । (इस विषय में भाजपा का क्या कहना है ? – संपादक) पहले महिलाओ को दर्शन करने नहीं देना और महिलाआें ने दर्शन किया भी, तो दर्शन के पश्‍चात पुजारियों द्वारा मंदिर की स्वच्छता करना विकृति है । (धर्म के प्रति घोर अज्ञान होते हुए भी धार्मिक कृत्यों को विकृती कहना हास्यास्पद ! – संपादक) 

सूत्रसंचालक द्वारा दिए गए कूटनितीक वक्तव्य
का श्रीमती नयना भगत द्वारा किया गया समर्पक प्रत्युत्तर !

श्रीमती नयना भगत ने जब कहा कि श्रद्धावान महिलाओ को दृढता से खडे रहना चाहिए, तब सूत्रसंचालक ने कहा कि इसका अर्थ उन्हें घर में बंद कर देना चाहिए । तब उसपर श्रीमती नयना भगत ने कहा कि मैं स्वयं महिला होते हुए भी समाचारवाहिनी के मंचपर आकर बोल रही हूं और किसी पुरुष सूत्रसंचालक के सामने संपूर्ण राज्य ४ महिलाओ के मत सुन रहा है । इसलिए ‘महिलाओ के साथ अन्याय हो रहा है’, ऐसा कहना पाखंड है, ऐसा कहनेपर सूत्रसंचालक के इस सूत्र को बदलने का प्रयास किया ।

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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