भावी भीषण आपातकाल का सामना करने हेतु विविध स्तरों पर अभी से प्रयास आरंभ करें !

‘वर्ष २००० से ही कालमहिमा के अनुसार शीघ्र ही आपातकाल आनेवाला है’, इस बात का ज्ञान साधकों को है । परंतु, अब यह आपातकाल हमारे द्वार तक आ पहुंचा है । घोर आपातकाल का आरंभ होने में अब कुछ महीने ही बचे हैं । अनेक नाडीभविष्य बताने वालों ने तथा द्रष्टा साधु-संतों ने वर्ष २०१९ के पश्‍चात धीरे-धीरे तीसरे महायुद्ध का आरंभ होने की बात कही है । पहले चरण में यह महायुद्ध मानसिक होगा । क्योंकि, किसी भी २ राष्ट्रों के बीच का महायुद्ध पहले मानसिक स्तर का होता है, उदा. कोरिया-अमेरिका संघर्ष, चीन-अमेरिका संघर्ष इत्यादि । आगे, २-३ वर्ष पश्‍चात यह मानसिक स्तर का संघर्ष स्थूल स्तर का महायुद्ध होगा । तब ‘गेहूं के साथ घुन भी पिसता है’, इस सिद्धांत के अनुसार समाज में रहनेवाले दुर्जनों के साथ-साथ सज्जन, साधक आदि सभी इस आपातकाल से प्रभावित होंगे । 

आपातकाल में चक्रवाती तुफान, भूकंप आदि के कारण बिजली की आपूर्ति बंद हो जाती है । पेट्रोल-डीजल आदि इंधनों की किल्लत होने से यातायात की व्यवस्था भी रूक जाती है । उसके कारण रसोई गैस, खाने-पीने की वस्तुएं भी कई मास तक नहीं मिलतीं अथवा मिली, तो भी उनकी नियंत्रित आपूर्ति (रेशनिंग) की जाती है । आपातकाल में डॉक्टर, वैद्य, औषधियां, चिकित्सालय आदि की उपलब्धता होना लगभग असंभव होता है । यह सब ध्यान में लेते हुए आपातकाल का सामना करने हेतु सभी को शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, आर्थिक, आध्यात्मिक इत्यादि स्तरों पर पूर्वसिद्धता करना आवश्यक है । इस विषय में निम्न प्रकार से सर्वसामान्य विवेचन किया गया है । इस विवेचन के अनुसार, इसके क्रियान्वयन का जितना संभव हो सके, उसका अभी से प्रारंभ करें ।

 

१. आपातकाल की दृष्टि से शारीरिक स्तर पर आवश्यक सिद्धता !

१ अ. मानवनिर्मित अथवा प्राकृतिक विपदाओ में रक्षा हेतु यह करें !

१ अ १. आगामी तीसरे महायुद्ध में उपयोग किए जानेवाले परमाणु अस्त्रों के कारण होनेवाले विकिरण के प्राणघातक प्रभाव को नष्ट करने हेतु प्रतिदिन अग्निहोत्र करें !

सनातन द्वारा इस विषयपर प्रकाशित किया गया ग्रंथ पढें ।

१ अ २. परिवार का न्यूनतम एक सदस्य तो ‘प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षण’ ले !

हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से विविध स्थानों पर निःशुल्क प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षणवर्ग लिए जाते हैं । इन प्रशिक्षणवर्गों का लाभ उठाएं । (सनातन की ग्रंथमाला ‘प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षण (३ खंड)’ भी उपलब्ध है ।)

१ अ २ अ. पारिवारिक उपयोग के लिए प्राथमिक चिकित्सा पेटी बनाकर रखें !

इस प्राथमिक चिकित्सा पेटी में वेदना शामक गोलियां, मरहम, गॉज (घाव पर लगाने हेतु जालीयुक्त पट्टी), घाव पर लगाने हेतु सफेद चिपकाने की पट्टी इत्यादि; साथ ही बुखार, उलटियां आदि विकारों की औषधियां रखे । इस पेटी को घर में ऐसे स्थान पर रखें, जिससे कि आवश्यकता पडने पर वह सहजता से मिल सके । इस पेटी में संभवतः गोलियों की पट्टी (स्ट्रीप) न रखें; क्योंकि उससे गोलियां निकालते समय उसपर अंकित उस औषधि की अंतिम तिथी (एक्स्पाईरी डेट) का भाग फट सकता है । ऐसा होेने से कुछ मास पश्‍चात हमें उन गोलियों की वैधता कितनी है, यह ज्ञात नहीं हो सकता । अतः पैकेट से गोलियां निकालकर उन्हें हवाबंद डिब्बे में रखें तथा उस डिब्बे पर गोली का नाम, उसका उपयोग, उत्पादन का दिनांक (मैन्यफैक्चरिंग डेट) तथा अंतिम तिथि आदि जानकारी वाली चिठ्ठी (लेबल) चिपकाएं । (इस प्राथमिक चिकित्सा पेटी के विषय में विस्तृत जानकारी सनातन का ग्रंथ ‘रोगी की जीवनरक्षा तथा मर्मघातादि विकारों की प्राथमिक चिकित्सा’ में दी गई है ।)

१ अ ३. परिवार का एक सदस्य अवश्य अग्निशमन प्रशिक्षण लें !

सनातन द्वारा इस विषय पर ग्रंथ भी प्रकाशित किया है ।

१ अ ४. परिवार का एक तो सदस्य आपातकालीन सहायता प्रशिक्षण ले !

१ आ. अन्न-पानी के बिना भूखमरी न हो; इसके लिए यह करें !

१ आ १. दलहन, गेहूं आदि वस्तुओ को सुखाकर तथा उन्हें हवाबंद कर पर्याप्त संग्रह करें, साथ ही न्यूनतम ५ वर्ष पर्याप्त हो, ऐसी अन्य वस्तुओ का, उदा. माचीस का संग्रह भी घर में रखें ।
१ आ २. गांव में अथवा अन्य कहीं अपनी भूमि हो, तो उस भूमि में सब्जी की बोआई करना, साथ ही चावल, दलहन आदि फसलें लेना तथा गोपालन प्रारंभ करें !
१ आ ३. घर में चूल्हे की व्यवस्था करें, चूल्हे पर रसोई बनाना सीख लें, साथ ही वर्तमान में रसोई बनाते समय यंत्रों का, उदा. मिक्सर का उपयोग करना टालकर पारंपरिक साधन, उदा. सिल्ली-बट्टा के उपयोग की आदत डाल लें !

अन्य पुरानी वस्तुएं, उदा. पीसने के लिए चक्की, कूटने के लिए ओखली तथा मूसल जैसे साधन की उपलब्धता हो, तो उनके भी उपयोग की आदत डाल लें । अतः आगे जाकर नित्य जीवन कठिन नहीं लगेगा ।

१ आ ४. सौरऊर्जा से चलनेवाले उपकरणों का उपयोग करें !

रसोई के लिए सौरऊर्जा का उपयोग किया जा सकता है । उसके लिए आवश्यक युनिट तथा उपकरण, उदा. सोलर कुकर लें । इसके साथ ही सौरऊर्जा का उपयोग घर में दीप जलाना, स्नान का पानी गर्म करना आदि के लिए भी किया जा सकता है ।

१ आ ५. घर के पास कुआं न हो, तो खुदवाएं !

आपातकाल में सरकार द्वारा पानी उपलब्ध न हुआ, तो घर के पास के कुएं के पानी का उपयोग हो सकता है । पडोस में रहनेवाले लोग एकत्रित होकर भी एक कुआं खुदवा सकते हैं ।

१ इ. आगामी आपातकाल में डॉक्टर, वैद्य, औषधियां, चिकित्सालय
आदि के अभाव को ध्यान में रखकर विकार-निर्मूलन की दृष्टि से यह करें !

१ इ १. औषधीय वनपस्तियों की बोआई करें तथा आवश्यकता के अनुसार उनका उपयोग करना भी आरंभ करें !

घर का छत अथवा पिछवाडे में, साथ ही गांव में भी औषधीय वनस्पतियों की बोआई करें । (औषधीय वनस्पतियों की बोआई के विषय में जानकारी तथा विविध विकारों पर उनके उपयोग सनातन के ‘भूमि की उपलब्धता के अनुसार औषधीय वनस्पतियों की बोआई’ तथा ‘औषधीय वनस्पतियों की बोआई कैसे करें ?, इन ग्रंथों में दी गई हैं । ?’ अब सनातन द्वारा ‘सुलभ घरेलु आयुर्वेदयी चिकित्सा’ यह ग्रंथ भी शीघ्र प्रकाशित होनेवाला है ।) आवश्यकता के अनुसार औषधीय वनस्पतियों का उपयोग करना भी आरंभ करें ।

१ इ २. विकार-निर्मूलन हेतु ‘बिंदुदाबन’, प्राणशक्तिवहन उपाय’, ‘खाली बक्सों के उपाय एवं नामजप’ इन उपायपद्धतियों को सीख लें तथा आवश्यकता के अनुसार उनका उपयोग भी आरंभ करें !

सनातन की ओर से इन विषयों के ग्रंथ प्रकाशित किए गए हैं ।

१ इ ३. अपने परिचित वैद्य से पूछकर घर में अगले कुछ वर्षोें तक टिक सकेंगी, ऐसी आयुर्वेदीय औषधियों का पर्याप्त संग्रह रखें !

१ ई. अन्य सूत्र

१ ई १. आधुनिक चिकित्सा उपकरण, उदा. आंखों का शस्त्रकर्म, दंतचिकित्सा इत्यादि अभी ही कर लें ।

१ ई २. कुल आवश्यकताएं, उदा. कुछ विशिष्ट पदार्थ ही पसंद होना, स्नान के लिए गर्म पानी ही लगना, निरंतर पंखे की हवा लगना, बिना एसी के नींद न आना, जहां पैदल जा सकते हैं, ऐसे स्थानों पर जाने के लिए भी दोपहिया-चारपहिया वाहन का उपयोग करना, आदि आदतों को धीरे-धीरे घटाने की आदत डाल लें !

१ ई ३. प्रतिकूल स्थिति में भी शरीर कार्यक्षम रहे; इसके लिए प्रतिदिन व्यायाम, (उदा. सूर्यनमस्कार, पैदल चलना आदि), प्राणायाम, योगासन आदि करें ।

 

२. आपातकाल की दृष्टि से मानसिक स्तर पर आवश्यक तैयारी

२ अ. भावना के स्तर पर परिजनों के प्रति अनासक्त होने हेतु स्वसूचना लें !

आनेवाले समय में परिवार के सदस्य, परिजन, मित्रपरिवार आदि के संदर्भ में उनके प्रारब्ध के अनुसार घटनाएं होनेवाली हैं; इसलिए उनमें भावनावश आसक्त न हों । उसके लिए आवश्यकता पडने पर स्वसूचनाएं लें ।

२ आ. परिजनों का वियोग

अल्प-अधिक कालावधि के लिए परिजनों का वियोग सहन करने की तैयारी करना

 

३. आपातकाल की दृष्टि से पारिवारिक स्तर पर सिद्धता

३ अ. आपातकाल द्वार पर आ खडा हुआ है; इसलिए
संभवतः नया घर व फ्लैट न खरीदकर किराए के घर का विकल्प चुनें !

१. आपातकाल में भूकंप, भूस्खलन आदि के कारण घर को हानि पहुंच सकती है, इसे ध्यान में लेकर नया घर अथवा सदनिका (फ्लैट) न खरीदें और किराए के घर के विकल्प चुनें ।

२. कुछ अनिवार्य कारणों से घर/सदनिका खरीदने की आवश्यकता हो, तो क्या वह प्रदेश उस दृष्टि से सुरक्षित है न ?, इसपर विचार करें ।

३. घर खरीदना हो, तो उसे संभवतः तीसरी मंजिल से ऊपर का न खरीदें; क्योंकि भूकंप की स्थिति में तीसरी मंजिल तक के घर से बाहर निकलना सरल होता है ।

४. किसी का वर्तमान घर तीसरी मंजिल से भी ऊपर का हो, तो उसके स्थान पर अन्य कहीं घर उपलब्ध होता हो, तो उस पर विचार करें ।

३ आ. गांव में स्वयं का घर हो, तो उसे रहनेयोग्य स्थिति में रखें !

आनेवाले समय में प्राकृतिक आपदाएं, बढता हुआ आतंकवाद इत्यादि के कारण अनेक नगर (शहर) नष्ट होंगे । तब गांवों में जाकर रहना पडेगा । तब किसी का गांव में घर हो, तो वे अभी से उसे रहनेयोग्य स्थिति में रखें ।

३ इ. नौकरी-व्यवसाय के कारण विदेश में
रहनेवाले परिजनों को संभवतः भारत में बुलाएं !

भारत मूलतः ही एक पुण्यभूमि है । आगामी आपातकाल में भारत की अपेक्षा अन्य देशों को अधिक हानि पहुंचने की संभावना है; क्योंकि विदेशों में रज-तम की मात्रा अधिक है, साथ ही महायुद्ध आरंभ हो जानेपर विदेश से भारत में निर्विघ्नरूप से वापस आना कठिन हो जाएगा ।

 

४. आपातकाल की दृष्टि से आर्थिक स्तरपर करनी आवश्यक सिद्धता

आजकल कई अधिकोषों के (बैंकों के) आर्थिक घोटाले उजागर हो रहे हैं । अतः स्वयं के पैसे सुरक्षित रहें, इसके लिए निम्न विकल्पोंपर विचार करें । निवेश करते समय ‘You should not put all eggs in one basket (भावार्थ : एक ही स्थानपर निवेश कर वह सब डुबाने की अपेक्षा सुरक्षा की दृष्टि से विविध स्थानोंपर निवेश करें ।) इस अर्थशास्त्र के तत्त्व के अनुसार करें ।

४ अ. आर्थिक निवेश करते समय निम्न सूत्रों पर विचार करें !

४ अ १. जमा पूंजी को अलग-अलग राष्ट्रीयकृत अधिकोषों में (बैंकों में) रखना

कोई अधिकोष दिवालिया होने की स्थिति में आ गया, तो हमारे सभी पैसे डूब गए, ऐसा न हो; इसके लिए अपने परिसर के अलग-अलग अधिकोषों में जमा पूंजी रखें; क्योंकि राष्ट्रीयकृत अधिकोषों में प्रत्येक सावधि जमाकर्ता की जमापूंजी को १ लाख रुपए का बीमा संरक्षण होता है । अतः प्रत्येक सावधि जमाकर्ता को एक अधिकोष में अधिकतम १ लाख रुपए तक की ही सावधि जमा रखनी चाहिए ।

४ अ २. पत्नी और सज्ञान बच्चों आदि को भी अधिकोषों के लेन-देन सिखाएं

अपने परिजनों को भी अधिकोष में पैसे जमा करना-निकालना आदि छोटे-छोटे लेन-देन करने आने चाहिए ।

४ अ ३. सोना-चांदी आदि मूल्यवान वस्तुओ में निवेश करना

किसी को निवेश के रूप में सोना खरीदना हो, तो उसे अंगूठी जैसे आभूषण न खरीदकर शुद्ध सोने का सांट खरीदना चाहिए, जिससे की आभूषण बनाने की मजदूरी नहीं देनी पडती । आगे जाकर स्थिति कैसी भी हो; तब भी हम ऐसी वस्तुओ का उपयोग कर सकते हैं ।

४ अ ४. भूमि में निवेश करना

जिन्हें संभव है, उनको बोआई के लिए योग्य भूमि खरीदनी चाहिए । किसी एक व्यक्ति के लिए उस भूमि को खरीदना संभव न हो, तो कुछ लोग एकत्रित होकर भूमि खरीदें । भूमि में किए गए निवेश से आज नहीं तो कल फलोत्पत्ति मिलती है ।

४ आ. जिन्होंने समभागों में (शेयर्स) में
निवेश किया हो, तो वे अभी से उपाय-योजना निकालें !

घर के उपयोग के लिए कुआं खोदना, सौरऊर्जा की व्यवस्था करना आदि सभी प्रकार के व्यय, तो एक प्रकार का निवेश ही है !

 

५. अन्य सूत्र

५ अ. घर की अनावश्यक सामग्री घटाना आरंभ करें !

जिससे आपातकाल में न्यूनतम वस्तुओ को हानि पहुंचेगी, साथ ही साधकों की वस्तुओ के प्रति आसक्ति भी अल्प होने में सहायता होगी । आपातकाल में स्वयं के प्राण बचाना महत्त्वपूर्ण होने से ऐसे समय केवल एक थैला लेकर घर से बाहर निकलना संभव होना चाहिए ।

५ आ. पुलिस थाना, अग्निशमन दल आदि अत्यावश्यक
स्थानों के दूरभाष क्रमांक, पते आदि को स्वतंत्र बही में लिखकर रखें !

आपातकाल में भ्रमणभाष की बैटरी चार्ज न होने से  उसका कोई उपयोग नहीं होता । इसलिए पुलिस थाना, अग्निशमन दल, अपने निकट में स्थित चिकित्सालय आदि अत्यावश्यक स्थानों के दूरभाष क्रमांकों को बही में भी लिखकर रखने चाहिए । इससे अन्य मार्ग से, उदा. दूसरे के भ्रमणभाष / दूरभाष की सहायता उनके साथ संपर्क करना संभव होगा ।

५ इ. छोटी पेटी (ब्रीफकेस) में महत्त्वपूर्ण कागदपत्र  एकत्रित करे

आपातकाल में घर से शीघ्र बाहर निकलना हो, तो उसकी पूर्वसिद्धता हो;  इसलिए किसी छोटी पेटी (ब्रीफकेस) में महत्त्वपूर्ण कागदपत्र, (उदा. राशनकार्ड, आधारकार्ड, बैंक पासबुक आदि) एकत्रित कर रखें ।

५ ई. घर की रक्षा हेतु कुत्ता, दूध के लिए गाएं,
बैलगाडी हेतु बैल, यात्रा के लिए घोडे आदि पशुओ को पालें !

इन पशुओ का पालन कैसे किया जाता है, इसे भी सीख लें । अपने पास साईकिल रिक्शा, बैलगाडी, घोडागाडी आदि में से एक अथवा उससे अधिक वाहन होने चाहिए । कुत्ते के कारण दंगलखोर-चोर इत्यादि से रक्षा होने में सहायता होगी, गाय के कारण दूध मिलेगा तथा बैल और घोडों के कारण यात्रा करना संभव हेगा अथवा रोगी व्यक्ति को वैद्य के पास ले जाना सुलभ होगा ।

 

६. आपातकाल की दृष्टि से आध्यात्मिक स्तरपर करनी आवश्यक सिद्धता

६ अ. आगामी समय में भीषण आपदाओं से बचने
के लिए साधना करना और ईश्‍वर का भक्त बनना अनिवार्य

आगामी आपातकाल का सामना करना संभव हो; इसके लिए इस लेख में दी गई जानकारी के अनुसार कृतियां करें । अर्थात हमने चाहे बिंदूदाबनादि चिकित्सापद्धतियां सीख लें । परिजनों को भूखमरी का सामना न करना पडे, इसके लिए जीवनावश्यक वस्तुओ का कितना भी संग्रह करा हो, तब भी सुनामी, भूकंप जैसी कुछ ही क्षणों में सहस्रों लोगों को अपने आगोश में लेनेवाले महाभयानक आपदा में हम जीवित बचे, तब ही हम इनका उपयोग कर सकते हैं । ऐसी प्राणघातक आपदाओं में हमें कौन बचा सकता है, तो केवल ईश्‍वर ही बचा सकते हैं ! ईश्‍वर हमें बचाएं, ऐसा हमें लगता हो, तो हमें साधना व भक्ति करनी चाहिए । हमपर कितनी भी बडी आपदा आए पर ईश्‍वर अपने भक्तों की रक्षा करता है, यह बतानेवाले भक्त प्रल्हाद जैसे उदाहरण हैं । श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में अपने भक्तों को ‘न मे भक्तः प्रणश्यति ।’ अर्थात ‘मेरे भक्तों का नाश नहीं होगा’ यह वचन दिया है । इसका यही अर्थ है कि किसी भी संकट से बचने के लिए हमारे लिए साधना करना अनिवार्य है ।

६ अ १. साधक आश्रम में रहकर पूर्णकालीन साधना के लिए मन की तैयारी करें !

कुछ साधकों ने उन्हें साधना के लिए विरोध करनेवाले अपने परिजनों को अभीतक बहुत बार साधना का महत्त्व समझाने का प्रयास किया है; परंतु उनके परिजन अपनी इच्छा पर अडे हुए हैं । अब आपातकाल आरंभ होने जा रहा है, ऐसे में साधकों को उनकी ओर ध्यान न देकर आश्रम में रहकर पूर्णकालीन साधना हेतु अपने मन की तैयारी करनी चाहिए; क्योंकि साधना में केवल ‘मैं और ईश्‍वर’ इतना ही होता है । आपातकाल में परिजन, पैसा इत्यादि बातें हमें नहीं बचाएंगी, अपितु साधकों की साधना ही उन्हें बचाएगी । अतः मन की तैयारी हेतु साधक अपने उत्तरदायी साधक तथा संतों का मार्गदर्शन लें । पूर्णकालीन साधक बनने हेतु अ ३ सूचनापद्धति के अनुसार प्रसंगों का अध्ययन भी करें, साथ ही बीच-बीच में आश्रम में सेवा हेतु रहने के लिए आने से मन की सिद्धता होने में सहायता होगी ।

६ अ २. गंभीरता से साधना करें !

सनातन प्रभात के नियतकालिकों में समय-समय पर प्रकाशित होनेवाले साधना के संदर्भ में मार्गदशकसूत्रों का अचूकता से पालन करने का प्रयास करें ।

६ अ ३. अपनी व्यष्टि साधना अच्छी प्रकार से करें !

साधक अपनी व्यष्टि साधना अच्छे से तथा नियमित करने का  प्रयास करें ।

६ अ ४. अनिष्ट शक्तियों से रक्षा हेतु नियमितरूप से और गंभीरता से आध्यात्मिक उपाय करें !

 

७. आपातकाल का सामना करने की
दृष्टि से जनजागृति करना भी साधना ही है !

आगामी  आपातकाल के विषय में परिजन तथा मित्रों को बताना, प्रस्तुत लेख अपने कार्यालयीन सहयोगियों को पढने के लिए देना आदि स्तरोंपर जनजागृति करना आवश्यक है । ऐसा करना समाजऋण चुकाना है । ऐसा जो करेंगे, उनकी इस माध्यम से साधना होगी ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले 

(आपातकाल में सुरक्षित रखने की योजना बनाने के लिए साधक और पाठक यह लेख संभालकर रखें । )

 

सूचना और आवाहन

१. ‘आगामी आपातकाल का सामना करने की योजना कैसे बनाएं, यह थोडा तो भी समझ में आए, इसके लिए कुछ बातें उपर्युक्त लेख में संक्षेप में बताई गई हैं । इस विषय में अधिक जानकारी देनेवाला लघुग्रंथ अथवा ग्रंथ भी शीघ्र प्रकाशित करनेवाले हैं ।

२. उपर्युक्त विषय के संबंध में अन्य क्षेत्र के जानकारों अथवा साधकों के पास कोई जानकारी हो, तो वह [email protected] इस पते पर अथवा निम्नांकित डाक पते पर ८ – १० दिन के भीतर भेजें  । इससे, यह विषय लघुग्रंथ / ग्रंथ के माध्यम से समाज के सामने पूर्णरूप से रखने में सहायता होगी ।

डाक से पत्र भेजने का पता : श्रीमती भाग्यश्री सावंत, ‘सनातन आश्रम’, २४/बी, रामनाथी, बांदिवडे, फोंडा, गोवा ४०३ ४०१.
स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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