सारिणी
१. भगवान दत्तात्रेय
दत्त अर्थात वह जिसने निर्गुणकी अनुभूति प्राप्त की है; वह जिसे यह अनुभूति प्रदान की गई है कि ‘मैं ब्रह्म ही हूं, मुक्त ही हूं, आत्मा ही हूं ।’
२. भगवान दत्तात्रेयके कुछ नाम
२ अ. अवधूत : भगवान दत्तात्रेयका एक नाम ‘अवधूत’ भी है । ‘अवधूत’ शब्दकी कुछ व्युत्पत्तियां एवं अर्थ निम्नानुसार हैं ।
अ · आनंदे वर्तते नित्यम् । (अर्थ : सदैव आनंदमय ही रहनेवाला)
व · वर्तमानेन वर्तते । (अर्थ : प्रत्येक क्षण वर्तमानकालमें रहनेवाला)
धू · ज्ञाननिर्धूत कल्याणः । (अर्थ : वह जिसका अज्ञान ज्ञानद्वारा पूर्णतः धुल गया हो अर्थात वह जो कल्याणकारी है ।)
त · तत्त्वचिन्तनधूत येन । (अर्थ : वह जिसने तत्त्वचिंतनद्वारा अपने अज्ञानको नष्ट कर दिया है ।)
२ अ १. अवधूतोपनिषद्में ‘अवधूत’ शब्दका अर्थ इस प्रकार है
अ · अक्षरत्व । अवधूत वह है जिसे अक्षरब्रह्मका साक्षात्कार हुआ है । अक्षरत्व अर्थात कार्यस्थिति भी ।
व · यह ‘वरेण्यत्व’का प्रतीक है । इसका अर्थ है – श्रेष्ठत्वकी, पूर्णत्वकी चरमसीमा ।
धू · सर्व प्रकारके बंधनोंसे मुक्त, जो किसी भी उपाधि एवं आवरणसे मर्यादित नहीं होता ।
त · ‘तत्त्वमसि’ महावाक्यका बोधक है ।
तात्पर्य यह कि स्वरूपमें अखंड भावनासहित विचरनेवाले महापुरुषको ‘अवधूत’की संज्ञा देते हैं ।
२ अ २. सर्वान् प्रकृतिविकारान् अवधुनोतीत्यवधूतः ।
(जो सर्व प्रकृतिविकारोंको धो डालता है, नष्ट कर देता है; वह है अवधूत ।) ऐसी उसकी ‘सिद्धसिद्धांतपद्धति’ (६.१) अनुसार व्याख्या है ।
२ आ. दत्तात्रेय देवताके भक्त ‘अवधूत चिंतन श्री गुरुदेव दत्त ।’ का जयघोष करते हैं ।
अवधूत अर्थात भक्त । भक्तोंका चिंतन करनेवाले अर्थात भक्तोंके शुभचिंतक श्री गुरुदेव दत्त हैं ।
२ इ. दत्तात्रेय
यह शब्द दत्त+अत्रेयकी संधिसे बना है । दत्तका अर्थ ऊपर दिया ही है । अत्रेय अर्थात अत्रिऋषिके पुत्र ।
३. जन्मका इतिहास
अत्रि ऋषिकी पत्नी अनसूयाकी पवित्रताकी परीक्षा लेने हेतु ब्रह्मा, श्रीविष्णु एवं महेश गए । अनसूयाकी पतिव्रताके कारण ब्रह्मा, श्रीविष्णु एवं महेशके अंशोंसे तीन छोटे बालकोंका जन्म हुआ । श्रीविष्णुके अंशसे भगवान दत्तात्रेयका जन्म हुआ । यह रूपकात्मक पुराणकथा लोकप्रिय है । उसका अध्यात्मशास्त्रानुसार भावार्थ इस प्रकार है ।
अ अर्थात नहीं (अ नकारार्थक अव्यय है) एवं त्रि अर्थात त्रिपुटी; अतः अत्रि अर्थात वह जिसमें जागृति -स्वप्न – सुषुप्ति, सत्त्व – रज – तम एवं ध्याता – ध्येय – ध्यानकी त्रिपुटी नहीं है । ऐसे अत्रिकी बुद्धि असूयारहित अर्थात काम-क्रोधरहित, षट्कर्मरहित शुद्ध होती है । उसीको ‘अनसूया’ कहा गया है । ऐसी बुद्धिको ‘अनसूया’ कहा गया है । इस शुद्ध बुद्धिके संकल्पसे ही भगवान दत्तात्रेयका जन्म हुआ ।