रिफ्लेक्सॉलॉजी

हथेली एवं तलवों के बिंदुओं पर दाब

संत-महात्माओं, ज्योतिषियों आदि के कथनानुसार आगामी काल भीषण आपदाओं से भरा होगा, जिसका सामना समाज को करना पडेगा । ऐसे काल में अपने और अपने परिजनों के स्वास्थ्य की रक्षा करना बडी चुनौती होगी । आपातकाल में जन-संचार के साधनों का अभाव होने से रोगियों को चिकित्सालय ले जाना, डॉक्टर अथवा वैद्य से संपर्क करना और दुकान में औषधियों का मिलना कठिन होगा । आपातकाल में आनेवाली समस्याओं और रोगों का सामना करने के लिए सनातन संस्था, आगामी आपातकाल के लए संजीवनी नामक ग्रंथमाला प्रकाशित कर रही है । दिनांक ३०.३.२०१७ तक इसके १२ ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं । इसी का एक ग्रंथ है, हथेली एवं तलवों के बिंदुओं पर दबाव (रिफ्लेक्सोलॉजी) । हम इस लेख के माध्यम से आपको इस ग्रंथ का परिचय दे रहे हैं ।

 

१. बिंदुदाब (एक्यूप्रेशर) और रिफ्लेक्सोलॉजी

बिंदुदाब (एक्यूप्रेशर) उपचार-पद्धति में रोग के निदान और उपचार के लिए पूरे शरीर पर स्थित विशिष्ट बिंदुओं का उपयोग किया जाता है । रिफ्लेक्सोलॉजी भी बिंदुदाब उपचार-पद्धति की ही एक शाखा है । इसमें केवल हाथ-पैर के तलवों में स्थित बिंदुओं को दबाकर रोग का निदान और उपचार किया जाता है । रिफ्लेक्सोलॉजी को ही जोन थेरेपी भी कहते हैं ।

 

२. रिफ्लेक्सोलॉजीमें प्रयुक्त उपकरण

२ अ. महत्त्वपूर्ण लकडी के उपकरण

आकृति १
२ अ १. बिंदुदाब लेखनी (जिमी)

यह आकृति क्र. १ में दिए अनुसार लेखनी समान उपकरण है । इस उपकरण के २ भाग होते हैं, एक भाग पर गोलाकार धारियां होती हैं, जबकि दूसरे भाग पर पिरामिड समान कांटे होते हैं । जो लोग कंटीले भाग का दबाव नहीं सह पाते, वे धारीवाले भाग से बिंदुदाब कर सकते हैं । एक-एक बिंदु पर दबाव देने के लिए जिमी के छोटे अथवा बडे सिरे का उपयोग करें । हाथ-पैर की उंगलियों पर उपचार करने के लिए जिमी के कंटीले भाग का उपयोग करें ।

आकृति २
२ अ २. बिंदुदाब का बेलन (रोलर)

यह आकृति क्र. २ में दर्शाए अनुसार कंटीला, एक बित्ता लंबा और एक इंच मोटा बेलन समान उपकरण होता है । इसका एक ही समय अनेक बिंदुओं पर दबाव डालने में अच्छा उपयोग होता है । तलवों पर और हथेलियों पर रोलर चलाना सुविधाजनक होता है ।

आकृति ३

२ आ. उपकरणों के प्रयोग की पद्धति

उपर्युक्त उपकरणों का प्रयोग हथेलियों और तलवों के विविध स्थानों पर आगे दिए अनुसार करें ।

२ आ १. उंगलियां

आकृति क्र. ३ में दर्शाए अनुसार उंगली एवं उपकरण का कंटीला भाग हाथ की चिमटी में पकडकर एक-दूसरे पर दबाएं । पैरों की उंगलियां भी इसी प्रकार दबा सकते हैं ।

आकृति ४
२ आ २. उंगलियों के बीच का स्थान

जिमी का कंटीला भाग उंगलियों के बीच में रखकर आकृति क्र. ४ में दर्शाए अनुसार दबाएं । पैरों की उंगलियों के बीच में भी इसी प्रकार दबाएं ।

आकृति ५
२ आ ३. तलवे पर स्थित विशेष बिंदु

आकृति क्र. ५ में दिखाए अनुसार जिमी के सिरे से हथेली के बिंदुओं को बार-बार दबाकर छोडते रहें अथवा जिमी या दबाते हुए आगे-पीछे चलाएं ।

आकृति ६
२ आ ४. तलवे का विशिष्ट भाग

जिस प्रकार उंगलियों को दबाते हैं, उसी प्रकार रोलर अथवा जिमी से तलवे के विशिष्ट भाग को दबाएं । इसके लिए रोलर पर एक पैर का तलवा रखकर, यदि संभव हो, तो उस पर दूसरे पैर का तलवा रखकर दबाएं । (देखिए, आकृति क्र. ६)

२ आ ५. संपूर्ण हथेली तथा तलवा

पूरी हथेली पर दबाव डालने के लिए रोलर को मुट्ठी में पकडकर दएं । पूरे तलवे पर दबाव डालने के लिए रोलर तलवे के नीचे दबाकर उसे आगे-पीछे चलाएं ।

२ इ. लकडी के उपकरणों के अभाव में प्रयोग किए जा सकनेवाले वैकल्पिक साधन

उपर्युक्त उपकरणों के अभाव में हाथ की उंगलियां, लेखनी (पेन), कंघी, स्केल, पापड बेलने का धारवाला बेलन आदि से भी बिंदुदाब किया जा सकता है । खिडकी की छड, आसंदी (कुर्सी) अथवा पटल (टेबल) की आडी पट्टियां, सीढियों के किनारे आदि से हाथ-पैर की उंगलियों के बीच का भाग को दबाया जा सकता है । नदी के चिकने पत्थर, कंकड अथवा ऊबड-खाबड भूमि पर नंगे पैर चलने से भी तलवों के बिंदुओं पर अपनेआप उपचार होते हैं ।

 

३. कंधे पर स्थित बिंदु

आकृति १३

आकृति क्र. १३ में दिखाए अनुसार ये बिंदु दोनों कंधों के मध्य पर होते हैं । इसे विरुद्ध हाथ की उंगलियों से दबाएं । यह बिंदु प्रतिदिन दबाने से आनुवंशिक विकार दूर होते हैं और रोग अगली पीढी में संक्रमित नहीं होते । यह बिंदु थाइरॉइड ग्रंथि के विकार तथा सिर से कंधे तक के सर्व विकारों में उपयोगी है । बिंदु प्रतिदिन दबाने से कैल्शियम की न्यूनता दूर होती है । गरदन, पीठ, कटि और कान की पीडा; केश झडना-पकना, पथरीरोग, साइटिका (पैर की नस दबने से पैर में होनेवाली विशिष्ट प्रकार की वेदनाएं) इनमें भी यह बिंदु उपयोगी है । तात्पर्य यह कि यह बिंदु शरीर को जीवनरस देता है यह बिंदु उचित स्थान पर ही दबाएं ।

 

४. बिंदुदाब आरंभ करने के पहले ध्यान देेने-योग्य बातें

४ अ. बिंदुदाब उपचार कब और कितनी बार करने चाहिए ?

बिंदुदाब उपचार, रोग ठीक होनेतक प्रतिदिन नियम से करना आवश्यक है । साधारणतः ये उपचार दिन में दो बार अर्थात प्रातः-सायं. अथवा सवेरे उठनेपर और रात में सोनेे के पहले करें ।

४ आ. बिंदुदाब में दबाव कैसे और कितना देना चाहिए ?

बिंदु एक सेकेंड में एक बार, इस प्रकार बार-बार दबाकर छोडें । दबाव उतना हो, जितना आप सह पाएं । जैसे-जैसे सहनशक्ति बढती जाए, दबाव बढाते जाएं ।

४ इ. एक बिंदु कितनी बार दबाना चाहिए ?

कोई अंग अधिक दुख रहा हो, तो उसके लिए संबंधित बिंदु को साधारणतः २ मिनट (१२० बार) तथा न दुखता हो, तो १० सेकेंड (१० बार) दबाएं । कुछ दिन पश्‍चात स्वास्थ्य में सुधार होनेपर जब वेदना घट जाए, तब दबाने की अवधि घटा दें ।

४ ई. उपकरण से दबाते समय क्या सावधानी बरतें ?

बिंदुदाब में किसी भी उपकरण से केवल हाथ-पैरों के तलवों को ही दबाएं । इसके अतिरिक्त, शरीर के अन्य भाग को कंटीले उपकरण से नहीं दबाना चाहिए; क्योंकि कंटीले उपकरणों से शरीर की कोमल त्वचा को हानि पहुंच सकती है ।

४ उ. सभी, विशेषतः अनिष्ट शक्तियों के तीव्र कष्ट से पीडित व्यक्ति नामजप करते हुए बिंदुदाब उपचार करें !

 

५.  ‘रिफ्लेक्सोलॉजी’ में महत्त्वपूर्ण बिंदु

५ अ. दाहिने पैर के तलवे पर स्थित बिंदु

आकृति ७

५ आ. बाएं पैर के तलवे पर स्थित बिंदु

आकृति ८

५ इ. टखने के बाहरी ओर का (कनिष्ठिका के समीप का) बिंदुु

आकृति ९

५ ई. टखने के भीतरी ओर का (अंगूठे के समीप का) बिंदुु (आकृति १० देखें ।)

आकृति १०

५ उ. दाहिनी हथेली पर स्थित बिंदु

आकृति ११

५ ऊ. बाईं हथेली पर स्थित बिंदुु

आकृति १२

 

६. दैनिक जीवन में रिफ्लेक्सॉलॉजी का उपयोग

टिप्पणी – बिंदु क्र. २७ दाहिनी हथेली पर नहीं होता ।

दैनिक जीवन में दिखाई देनेवाले विकारों की सूची तथा उन विकारों में दबानेयोग्य बिंदु विशिष्ट विकारों में कौन से बिंदु दबाने चाहिए, यह आगे बताया है । विकारों के नामों के आगे दिए बिंदु क्रमांक आकृति ७ से १२ में दर्शाए अनुसार हैं ।

६ अ. सिरदर्द, सर्दी, बुखार (ज्वर) एवं खांसी

४, ५, ९, १०, १६, १६ अ, २८ अ तथा २८ आ

६ आ. आंख, कान तथा दांत के अचानक उत्पन्न हुए विकार

२, ३, ४, ५, ९ तथा १०

६ इ. पाचनतंत्र के विकार (पेट के विकार)

६ इ १. भूख न लगना, अम्लपित्त (बद्धकोष्ठता), बवासीर

कंधों पर स्थित बिंदु, ४, ५, २०, २३ अ, २८ अ, २८ आ, २९, ३० तथा ३३ से ३५

६ इ २. उल्टी एवं अतिसार (जुलाब)

४, ५, २०, २८ अ, २८ आ, २९ तथा ३०

६ ई. मूत्रवहनतंत्र के विकार (मूत्र से संबंधित सर्व विकार)

४, ५, २० से २२, २८ अ, २८ आ, २९, ३० तथा ३३ से ३५

६ उ. हड्डियां, जोड एवं स्नायु से संबंधित विकार

कंधों पर स्थित बिंदु, २०, २६, २८ अ, २८ आ, २९ से ३५ तथा ४१

६ ऊ. स्थूलता (मोटापा), कृशता (वजन घटना)

२०, २५, २८ अ, २८ आ, २९, ३० तथा ३३

विस्तृत विवेचन हेतु पढें : सनातन का ग्रंथ ‘हथेली एवं तलवों के बिंदुओं पर दबाव (रिफ्लेक्सोलॉजी)’

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