‘यूटीएस (यूनिवर्सल थर्मो स्कैनर)’ उपकरण द्वारा
‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ ने किया वैज्ञानिक परीक्षण
‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी विश्वकल्याण हेतु सत्त्वगुणी लोगों का ईश्वरी राज्य स्थापित करने हेतु प्रयासरत हैं । ज्योतिषशास्त्रानुसार वर्ष १९८९ से उनके जीवन में अनेक बार महामृत्युयोग आए हैं । ईश्वरीय राज्य की स्थापना हेतु उनका देहधारी अस्तित्व आवश्यक होने के कारण योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन (कल्याण, जिला ठाणे, महाराष्ट्र), प.पू. श्रीकृष्ण कर्वे गुरुजी (पुणे) जैसे कुछ संत स्वप्रेरणा से उनकी आध्यात्मिक सहायता कर रहे हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की आध्यात्मिक पीडा से रक्षा हो तथा उन्हें धर्मकार्य हेतु उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त हो, इस उद्देश्य से योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन ने उन्हें १३.१०.२०१७ को आध्यात्मिक उपचारों के लिए (टिप्पणी १ एवं २) दत्तात्रेय देवता की संस्कारित मूर्ति दी । ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा आध्यात्मिक उपचारों के लिए (मूर्ति को स्पर्श कर मंत्रपठन करना) उसका उपयोग करने के पूर्व तथा उपयोग करने के पश्चात दत्तात्रेय देवता की मूर्ति की आध्यात्मिक विशेषताओं का वैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन करना’, इस परीक्षण का उद्देश्य था । इस मूर्ति का उपयोग १४.१०.२०१७ को उपचारों के लिए करने के पूर्व तथा योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन द्वारा बताए अनुसार उपचारों के लिए उपयोग करने के उपरांत तथा लगातार ५ दिन उपयोग करने पर १८.१०.२०१७ को परीक्षण किया गया । इस परीक्षण के लिए ‘यूटीएस (यूनिवर्सल थर्मो स्कैनर)’ उपकरण का उपयोग किया गया । रामनाथी, गोवा स्थित सनातन के आश्रम में यह परीक्षण किया गया । इस परीक्षण का स्वरूप, निरीक्षण तथा उनका विवरण आगे दिया है ।’
टिप्पणी १ – ‘आध्यात्मिक उपचार’ क्या हैं ? : किसी विशिष्ट घटक की सात्त्विकता के कारण आध्यात्मिक पीडा से ग्रस्त व्यक्ति के नकारात्मक स्पंदन घट जाना अथवा नष्ट होना तथा सकारात्मक स्पंदनों में वृद्धि होना, इसे ‘आध्यात्मिक उपचार’ कहते हैं । आध्यात्मिक पीडा से ग्रस्त व्यक्ति साधना करता हो, तो उसकी संवेदनशीलता बढ जाती है । इसलिए उसे यह अनुभव हो सकता है कि ‘स्वयं पर आध्यात्मिक उपचार हो रहे हैं अथवा नहीं ?’
टिप्पणी २ – परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को दत्तात्रेय देवता की मूर्ति के माध्यम से करने के लिए बताए आध्यात्मिक उपचार : योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन ने आध्यात्मिक उपचारों के संदर्भ में कहा – ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की आध्यात्मिक पीडा से रक्षा होने हेतु वे इस संस्कारित मूर्ति को ५ दिन, प्रतिदिन हस्तस्पर्श कर, न्यूनतम ४ बार दत्तमाला मंत्र कहें । तदुपरांत मूर्ति कक्ष में बने पूजाघर में रखें ।’
१. परीक्षण का स्वरूप
इस परीक्षण में योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन द्वारा दी गई दत्तात्रेय देवता की संस्कारित मूर्ति को हस्तस्पर्श कर, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा दत्तमाला मंत्रजप करने के पूर्व ‘यूटीएस’ उपकरण से मिले निरीक्षण की प्रविष्टि की गई । तदुपरांत परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा इस संस्कारित मूर्ति को हस्तस्पर्श कर मंत्रजप करने पर पुनः इस मूर्ति के निरीक्षण लेकर उनकी प्रविष्टि की गई । इसके पश्चात अगले ४ दिन परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने प्रतिदिन संस्कारित मूर्ति को हस्तस्पर्श कर मंत्रजप किया । इस प्रकार कुल ५ दिन मंत्रजप पूर्ण होने पर पुनः मूर्ति के निरीक्षण लेकर उनकी प्रविष्टि की गई । इन सभी निरीक्षणों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया ।
२. योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन द्वारा
दी गई दत्तात्रेय देवता की संस्कारित मूर्ति का
परात्पर गुरु डॉ.आठवलेजी द्वारा आध्यात्मिक
उपचारों के लिए प्रयोग करने के पूर्व,तथा पहले दिन
और पांचवें दिन आध्यात्मिक उपचारों के लिए प्रयोग करने
के उपरांत ‘यूटीएस’ उपकरण द्वारा किए निरीक्षणों का विवेचन
२ अ. नकारात्मक ऊर्जा के संदर्भ में किए निरीक्षणों का विवेचन
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने दत्तात्रेय देवता की मूर्ति का आध्यात्मिक उपचारों के लिए (मूर्ति को स्पर्श कर मंत्रपठन करना) उपयोग करने के पूर्व, पहले दिन उपचारों के लिए प्रयोग करने के उपरांत तथा पांचवें दिन उपचारों के लिए उपयोग करने के उपरांत उसमें नकारात्मक ऊर्जा बिलकुल भी नहीं पाई गई ।
२ आ. सकारात्मक ऊर्जा के संदर्भ में निरीक्षणों का विवेचन –
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने दत्तात्रेय की मूर्ति को हस्तस्पर्श कर प्रतिदिन
मंत्रजप करने पर उसमें विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा उत्तरोत्तर घटती जाना
सभी व्यक्ति, वास्तु अथवा वस्तु में सकारात्मक ऊर्जा नहीं होती । योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन द्वारा दी गई दत्तात्रेय देवता की संस्कारित मूर्ति का, परीक्षण के आरंभ में निरीक्षण किया, तब स्कैनर की भुजाएं १८० अंश के कोण में खुलीं । इसका अर्थ मूर्ति में पूर्णतः सकारात्मक ऊर्जा थी । इस समय इस ऊर्जा का प्रभामंडल मूर्ति से ०.९४ मीटर दूर तक अनुभव हुआ । परात्पर गुरु डॉ. आठवले जी द्वारा पहले दिन मूर्ति को हस्तस्पर्श कर मंत्रजप करने पर किए निरीक्षण में, ऊर्जा का प्रभामंडल ०.६५ मीटर था । इसका अर्थ परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा मूर्ति को हस्तस्पर्श कर मंत्रजप करने पर मूर्ति की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल २९ सें.मी. घट गया था । अगले ४ दिन प्रतिदिन परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने मूर्ति को हस्तस्पर्श कर मंत्रजप किया, तब अंतिम दिन किए निरीक्षण में स्कैनर की भुजाएं १६० अंश के कोण में खुलीं । इसका अर्थ इस समय मूर्ति में विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा और घट चुकी थी तथा केवल थोडी मात्रा में ही शेष थी; परंतु इस ऊर्जा का प्रभामंडल नहीं था । (स्कैनर की भुजाएं १८० अंश के कोण में खुलने पर ही प्रभामंडल मापा जा सकता है ।)
२ इ. मूर्ति के प्रभामंडल संबंधी निरीक्षणों का विवेचन –
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा दत्तात्रेय देवता की मूर्ति को
हस्तस्पर्श कर प्रतिदिन मंत्रजप करने पर मूर्ति का प्रभामंडल उत्तरोत्तर घटते जाना
सामान्य व्यक्ति अथवा वस्तु का प्रभामंडल लगभग १ मीटर होता है । योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन द्वारा दी गई दत्तात्रेय देवता की संस्कारित मूर्ति का कुल प्रभामंडल परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा मूर्ति को हस्तस्पर्श कर मंत्रजप करने के पूर्व १.०२ मीटर था । पहले दिन मूर्ति को हस्तस्पर्श कर मंत्रजप करने पर वह ०.७३ मीटर हो गया, अर्थात २९ सें.मी. घट गया । पांचवें दिन परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा मूर्ति को हस्तस्पर्श कर मंत्रजप करने पर वह ०.६६ मीटर था, अर्थात और ७ सें.मी. घट गया था ।
इन सभी सूत्रों का अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण सूत्र ‘३ अ’, ‘३ अ १’ और ‘३ आ’ में दिया है ।
३. ‘योगतज्ञ दादाजी द्वारा
परात्पर गुरु डॉ.आठवलेजी को उपचार
हेतु दी दत्तात्रेय देवता की संस्कारित मूर्ति
में आरंभ में सकारात्मक ऊर्जा होना तथा परात्पर
गुरु डॉ.आठवलेजी द्वारा उसका आध्यात्मिक उपचारों
के लिए उपयोग करने पर घट जाने का अध्यात्मशास्त्र
३ अ. योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन द्वारा संकल्पशक्ति से दत्तात्रेय देवता
की मूर्ति में कार्यानुरूप आवश्यक शक्ति (सकारात्मक ऊर्जा) संक्रमित करना
योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन ने ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी पर हुए अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण दूर हों तथा उन्हें धर्मकार्य हेतु उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त हो’, इस उद्देश्य से विधि द्वारा दत्तात्रेय देवता की मूर्ति में कार्यानुरूप आवश्यक शक्ति (सकारात्मक ऊर्जा) संक्रमित की थी ।
३ अ १. दत्तात्रेय देवता की संस्कारित मूर्ति में परात्पर
गुरु डॉ. आठवलेजी को अत्यधिक चैतन्य तथा शक्ति अनुभव होना
उपचारों के समय परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने दत्तात्रेय देवता की मूर्ति को हस्तस्पर्श किया । उस समय उन्हें हुई अनुभूति के विषय में उन्होंने कहा, ‘‘मूर्ति में इतना चैतन्य और शक्ति है कि उसे ३ – ४ सेकंड भी हाथ में नहीं पकड सकते । इससे अत्यधिक भाव जागृत होता है तथा आनंद भी अनुभव होता है ।’’
सूत्र ‘३ अ’ और ‘३ अ १’ में दिए अनुसार योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन द्वारा दी संस्कारित मूर्ति में अत्यधिक शक्ति एवं चैतन्य होने के कारण परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा मूर्ति को हस्तस्पर्श कर मंत्रजप करने के पूर्व ‘यूटीएस’ उपकरण द्वारा की जांच में इस मूर्ति में नकारात्मक ऊर्जा नहीं, सकारात्मक ऊर्जा पाई गई ।
३ आ. योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन द्वारा दी दत्तात्रेय
देवता की संस्कारित मूर्ति का परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी
द्वारा आध्यात्मिक उपचारों के लिए उपयोग करने पर उसमें
विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा घट जाना तथा मूर्ति का प्रभामंडल भी घट जाना
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा पहले दिन इस संस्कारित मूर्ति पर हाथ रखकर मंत्रजप करने पर, अर्थात उपचार करने पर मूर्ति में विद्यमान शक्ति एवं चैतन्य उन्हें मिला । मूर्ति में विद्यमान सकारात्मक स्पंदन परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने ग्रहण किए, जिसके कारण वे घट गए, तथा मूर्ति का कुल प्रभामंडल भी घट गया । आगे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने और ४ दिन मूर्ति को हस्तस्पर्श कर प्रतिदिन मंत्रजप किया, उस समय प्रत्येक दिन उन्हें उस मूर्ति में विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा मिलती गई । इस कारण मूर्ति में विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा और प्रभामंडल भी उत्तरोत्तर घटता गया; परंतु मूलतः मूर्ति में इतनी बडी मात्रा में शक्ति और चैतन्य था कि परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा कुल ५ दिन उपचार करने पर भी उस मूर्ति में सकारात्मक स्पंदन कुछ मात्रा में शेष थे । ‘इन सकारात्मक स्पंदनों का भी लाभ होने हेतु योगतज्ञ दादाजी ने यह मूर्ति परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कक्ष में बने पूजाघर में रखने के लिए बताया’, यह ध्यान में आता है ।
४. ‘अक्टूबर २०१७ में उपचारों के लिए दी
मूर्ति में विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा ५ दिनों
में अत्यधिक घट जाएगी’, यह योगतज्ञ दादाजी
वैशंपायन को पहले ही ज्ञात होने के कारण उनका
उतने ही दिन उसके माध्यम से पचार करने के लिए
कहना और आगे उसे पूजाघरमें रखने के लिए बताना,जबकि
जनवरी २०१७ में दी मूर्ति में विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा अधिक
काल बनी रहने के कारण उसे अभी भी पूजाघर में रखने के लिए कहना
१३.१०.२०१७ को योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन ने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को उपचारों के लिए दी इस मूर्ति के माध्यम से केवल ५ दिन उपचार करने के लिए कहा था । १४.१०.२०१७ को इस मूर्ति के माध्यम से उपचार प्रारंभ करने पर चौथे दिन (१७.१०.२०१७ को) मूर्ति का चैतन्य घट गया है, ऐसा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को प्रतीत हुआ । उसके अगले दिन, अर्थात १८.१०.२०१७ को किए निरीक्षण में मूर्ति में विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा अत्यधिक घट गई है, यह स्पष्ट हुआ । साथ ही मूर्ति का कुल प्रभामंडल भी आरंभ की तुलना में अत्यधिक घट गया, यह ध्यान में आया । इससे यह समझ में आता है कि योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन को यह पहले ही ज्ञात था कि ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा उपचारों के लिए उपयोग करने पर इस मूर्ति में विद्यमान चैतन्य ५ दिन में अत्यधिक घट जाएगा ।’ इसलिए उन्होंने इस मूर्ति के माध्यम से केवल पांच दिन ही उपचार करने के लिए कहा । ये उपचार होने के उपरांत योगतज्ञ दादाजी ने यह मूर्ति परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कक्ष के पूजाघर में रखने के लिए कहा ।
इससे पहले योगतज्ञ दादाजी ने ३०.१.२०१४ को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को और एक मूर्ती उपचारों के लिए दी मूर्ति परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पूजाघर में रखने के लिए कहा था । तबसे यह मूर्ति भी उनके पूजाघर में है ।
‘इन दोनों मूर्तियों के स्पंदनों में क्या अंतर है ?’, यह जानने हेतु इन दोनों मूर्तियों का १८.१०.२०१७ को परीक्षण किया गया ।
४ अ. योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन द्वारा
१३.१०.२०१७ और ३०.१.२०१४ को दी दत्तात्रेय देवता की संस्कारित
मूर्तियों का ‘यूटीएस’ उपकरण द्वारा १८.१०.२०१७ को किया निरीक्षण
योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन द्वारा १३.१०.२०१७ को दी दत्तात्रेय देवता की संस्कारित मूर्ति में विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा ५ दिन उपचारों के लिए मूर्ति का उपयोग करने के उपरांत अत्यधिक घट गई थी । ‘मूर्ति में अभी भी कुछ मात्रा में सकारात्मक ऊर्जा होने के कारण उसका भी लाभ होने हेतु योगतज्ञ दादाजी ने यह मूर्ति परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कक्ष में बने पूजाघर में रखने के लिए कहा’, ऐसा ध्यान में आता है । योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन ने ३०.१.२०१४ को दी दत्तात्रेय देवता की मूर्ति में पौनेचार वर्ष के उपरांत भी सकारात्मक ऊर्जा थी और उस ऊर्जा का प्रभामंडल मूर्ति से ६२ सें.मी. दूर तक था । यह मूर्ति परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को उपचारों के लिए दी थी, तभी योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन ने तत्कालीन उपचार होने के उपरांत वह आगे पूजाघर में रखने के लिए कही थी । इस मूर्ति में अभी भी सकारात्मक ऊर्जा है, यह इस परीक्षण से सिद्ध हुआ । ‘योगतज्ञ दादाजी ने अभी भी उस मूर्ति को पूजाघर में रखने के लिए क्यों कहा है ?’, इसका कारण इस परीक्षण से समझ में आता है, इससे भी उनकी त्रिकालदर्शिता स्पष्ट होती है !
४ आ. योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन द्वारा पहले दी
दत्तात्रेय देवता की मूर्ति में विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा अबाधित
होते हुए भी तात्कालिक कार्य के लिए अस्थायी शक्ति से युक्त दत्तमूर्ति देना
‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पूजाघर में रखी पहले की दत्तमूर्ति में विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा अबाधित थी, तब भी योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन ने १३.१०.२०१७ को उपचारों के लिए दत्तात्रेय देवता की नई संस्कारित मूर्ति क्यों दी?’, ऐसा प्रश्न किसी के मन में हो सकता है । योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन उच्च कोटि के संत होने के कारण, उन्हें ईश्वरीय राज्य स्थापित होने की दृष्टि से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के देहधारी अस्तित्व का महत्त्व ध्यान में आता है । इस कारण परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी पर होनेवाले अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों पर वे स्वप्रेरणा से ध्यान देकर समय समय पर इसके लिए आध्यात्मिक स्तर पर प्रतिबंधात्मक उपाययोजना करते रहते हैं । इस कारण उन्होंने १४.१०.२०१७ से १८.१०.२०१७ की कालावधि में होनेवाले अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों को विफल करने का तात्कालिक कार्य करने हेतु उतनी अस्थायी शक्ति संस्कारित कर दत्तात्रेय देवता की मूर्ति दी । इससे भी उनका आध्यात्मिक अधिकार स्पष्ट होता है ।’
– डॉ. (श्रीमती) नंदिनी सामंत, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (२३.१०.२०१७)
इ-मेल : [email protected]
पाठकों को सूचना
स्थान अभाव वश इस लेख में ‘यूटीएस’ उपकरण का परिचय’ ‘उपकरण द्वारा किए गए परीक्षण के घटक और उनका विवरण’, ‘घटक का प्रभामंडल मापना’, ‘परीक्षण की पद्धति’ और ‘परीक्षण में समानता लाने के लिए बरती गई सावधानी’ आदि सूत्र सनातन के जालस्थल की लिंक www.sanatan.org/hindi/universal-scanner पर दिए हैं ।