विदेशी व्यक्तियों का स्पर्श होने पर सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ को अनुभव हुआ सात्त्विक स्पर्श और असात्त्विक स्पर्श में भेद !

सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

१५ वीं शताब्दी तक इंडोनेशिया में हिन्दू राजाओं का राज्य था । कभी पूरे विश्‍व में फैली हिन्दू संस्कृति का अध्ययन करने के लिए महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की ओर से सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ और उनके साथ ४ विद्यार्थी साधक इंडोनेशिया की यात्रा पर गए थे । उन्होंने भेंट दिए स्थानों की विशेषताएं, मान्यवरों से हुई भेंट और वहां की हिन्दू संस्कृति के पद चिह्न दर्शांनेवाला यह स्तंभ !

श्री. सत्यकाम कणगलेकर

 

१. सात्त्विकता का अथवा चैतन्य का अंश न रहनेवाला देह निष्प्राण कलेवर जैसा !

सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की ओर से दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की आध्यात्मिक अध्ययन यात्रा की । उसके अंतर्गत विविध देशों में अनेक स्थानों पर जाकर वहां की प्रथा-परंपराएं, संस्कृति आदि विषय की जानकरी लेने की सेवा वे कर रही है । उस समय वहां विविध देशों से आए अनेक पर्यटक भी होते हैं । भारतीय पद्धति से साडी पहने और स्वयं अपने दैवी आकर्षण से ओतप्रोत महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ को देखकर अनेक विदेशी पर्यटक उनकी ओर आकर्षित होते हैं । उनके साथ छायाचित्र खिचवाने की विनति करते हैं । छायाचित्र खींचते समय कभी कभी पर्यटकों का उन्हें स्पर्श भी होता है । तब ‘विदेशी लोगों के स्पर्श मेें सजीवता नहीं लगती’, ऐसा सद्गुरु (श्रीमती) गाडगीळ ने बताया । इंडोनेशिया में रहते हुए ऐसे ही एक प्रसंग का विवरण बताते हुए सद्गुरु ने कहा ‘मनुष्य की देह पर आध्यात्मिक साधना से निर्माण हुई सात्त्विकता का अथवा चैतन्य का संस्कार होना चाहिए । नहीं तो वही देह किसी कलेवर जैसी निष्प्राण लगती है । साधना से ईश्‍वरी चैतन्य जागृत होता है । इस कारण देह में सजीवता आती है ।’’ इससे साधना का महत्त्व समझ में आता है ।

 

२. विदेश में रहकर भी योग्य साधना करने पर विदेशी साधक और
एस.एस.आर.एफ. के संत पू. रेन्डी इकारान्तियो जैसे देह पर चैतन्य का संस्कार करना संभव !

विदेश में मांसाहार बडी मात्रा में किया जाता है । योग्य आचरण नहीं होता । स्त्री-पुरुषों के भालपर कुमकुम अथवा तिलक नहीं होता । वासनांधता भी यहां बडी मात्रा में दिखाई देती है । इस कारण साधना अथवा धर्माचरण का संस्कार उनकी देह पर नहीं हुआ होता । ऐसा होते हुए भी विदेश में रहकर उचित आध्यात्मिक साधना करनेवाले इसाई साधकों के स्पर्श में भी सजीवता अनुभव होती है । एस.एस.आर.एफ. के संत पू. रेन्डी इकारान्तियो के साथ छायाचित्र लेने का प्रसंग आया, तब उनमें विद्यमान चैतन्य ही अनुभव हुआ ।

इससे केवल भोगवादी आचरण नहीं तो साधना कर मोक्ष पाना, यही मानव जीवन का उद्देश्य है’, यह समझ में आता है । गुरुकृपा से सनातन के सभी साधकों को योग्य साधना समझ में आई है । उसे कृति में लाने के लिए मार्गदर्शन भी मिल रहा है । इसलिए हम सब परात्पर गुरु डॉ.आठवलेजी और भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में शरण जाकर कृतज्ञता व्यक्त करेंगेें !’

– श्री. सत्यकाम कणगलेकर, बाली, इंडोनेशिया. (१९.०३.२०१८, सवेरे ८.३० बजे ।)

 

इंडोनेशिया की अध्ययन यात्रा के अन्य कुछ विशेषतापूर्ण क्षणचित्र !

श्री. दिवाकर आगावणे

१. इंडोनेशिया में मांसाहार का अत्यधिक उपयोग होना

यहां लगभग सभी लोग नियमित मांसाहार करते हैं । बहुत ढूंढने पर कहीं कोई एक शाकाहारी भोजन के लिए उपाहारगृह मिलता है । कई बार शाकाहारी भोजन की मांग की तो वह पूर्ण शाकाहारी होगा’, ऐसा नहीं है । कई बार यहां कुछ शाकाहारी पदार्थाें में अंडें का उपयोग होता है । यहां रसोई में सर्वत्र मछली के तेल का उपयोग होता है । ऐसे असात्त्विक भोजन के कारण सर्वत्र रज-तम का वातावरण बढ रहा है ।

इस कारण यहां के भोजन की एक विशेष गंध होती है । इस देश का पर्यटन करने आए भारतीयों की भी दयनीय अवस्था दिखाई दी । पर्यटन के लिए आए भारतीय खुलकर मांसाहार और मद्यपान करते दिखाई देते हैं । यहां के स्थानीय लोगों ने दी जानकारी के कारण हमने यहां आने से पहले ही भोजन का नियोजन कर रखा है । आजकल बने बनाए भोजन के पैकेट (Ready to Eat) उपलब्ध हैं । पोहा, उपमा जैसे पदार्थाें के फैकेट हम भारत से ही लाए हैं । उसमें केवल गरम पानी मिलाने से ३-४ मिनिट में ही पदार्थ बन जाता है ।

 

२. मजापाहित राज्य की पताका पर आधारित इंडोनेशिया का राष्ट्रध्वज !

इंडोनेशिया का राष्ट्रध्वज १३ वीं शताब्दी में वहां के मजापाहित इस हिन्दू साम्राज्य की पताका पर आधारित है । उसमें ऊपर लाल और नीचे श्‍वेत, ऐसे दो समान रंगों की पट्टियों का समावेश है । इनमें लाल रंग धैर्य का और श्‍वेत रंग पवित्रता का प्रतीक है ।

लाल अर्थात मानव शक्ति और श्‍वेत अर्थात मनुष्य को सच्चे अर्थ में पूर्णत्व की ओर ले जाने वाली आध्यात्मिक शक्ति ! इस प्रकार दोनों मिलकर संपूर्ण मनुष्य बनता है । कुछ लोग कहते हैं कि लाल रंग गुड का और श्‍वेत रंग नारियल से बनी शक्कर का और चावल का है । यहां के लोगों के दैनिक भोजन में गुड और चावल, ये पदार्थ प्रमुखता से पाएं जाते हैं । इस कारण भी यह राष्ट्र ध्वज यहां के लोगों के दैनिक रहन सहन के निकट है ।’

– श्री. दिवाकर आगावणे, इंडोनेशिया.

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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