अभी अभी सर्वत्र नवरात्रोत्सव मनाया गया । उस पृष्ठभूमि पर सतना, मध्यप्रदेश स्थित श्री शारदादेवी मंदिर की यह महत्त्वपूर्ण जानकारी देवी भक्तों के लिए प्रकाशित कर रहे हैं । श्री शारदा देवी के चरणों में हमारा प्रणाम !
१. श्री शारदादेवी मंदिर का प्राचीन इतिहास
सतना, मध्यप्रदेश स्थित रामगिरि पर्वत पर श्री शारदा देवी का मंदिर है । श्री विष्णु ने शिव की पीठ पर विद्यमान माता सती की निष्प्राण देह के सुदर्शन चक्र से ५१ टुकडे किए । जहां जहां वे गिरे, वहां शक्तिपीठ निर्मित हुआ । यहां सती देवी का दाहिना स्तन गिरा था ।
मैहर शहर के ६०० फीट ऊंचे पर्वत पर श्री दुर्गा देवी के शारदीय रूप का श्री शारदा देवी का मंदिर है । मंदिर में १ सहस्र ६३ सीढियां हैं । प्रसिद्ध योद्धा आल्ह और उदल श्री शारदा देवी के नि:स्सीम भक्त थे । आद्य शंकराचार्यजी ने इस देवी का दर्शन किया था ।
मंदिर में देवी के पास ही नृसिंहजी की मूर्ति है । हिरण्यकश्यपु के वध के पश्चात नृसिंह अवतार ने श्री शारदा देवी की वीणा सुनी थी । तत्पश्चात वे शांत हुए । इस कारण शंकराचार्यजी ने मंदिर में श्री नृसिंहजी की मूर्ति और पास ही श्री शारदा देवी की छोटी मूर्ति स्थापित की ।
मंदिर के पास एक प्राचीन शिलालेख है जिस पर मंदिर के स्थापना काल का उल्लेख है । प्राचीन समय में मंदिर में बलि देने की प्रथा थी ; किंतु सतना के राजा ब्रजनाथजी ने इस प्रथा को पूर्णत: रोका । बाणभट्टजी ने सम्राट हर्षवर्धन के जीवन पर लिखे ‘हर्ष चरित’ ग्रंथ में लिखा है कि श्री सरस्वती देवी शाप से मुक्त होने के लिए स्वर्ग से यहां आयी थीं । यहां विद्यमान देवी की मूर्ति लगभग१० वीं शताब्दी की है । इससे पहले यहां के शक्ति पीठ का स्थान पिंडी के रूप में था ।
२. मंदिर के श्री हनुमानजी की मूर्ति की आख्यायिका !
लगभग २५० वर्ष पूर्व मैहर के किले में हनुमानजी की मूर्ति थी । उस प्रदेश के राजा ने कहा ‘जो कोई इस मूर्ति को श्री शारदा देवी के मंदिर में रखेगा, वहीं यह मूर्ति स्थापित की जाएगी और उसी को श्री शारदा देवी के पुजारी के रूप में नियुक्त किया जाएगा ।’ मंदिर में विद्यमान मुख्य पुजारी श्री. प्रवीणजी महाराज के पूर्वज हनुमानजी की मूर्ति लाए थे । इससे पूर्व के पुजारियों की समाधि मंदिर के प्रांगण में है ।
३. वीर योद्धा आल्ह और उदल की शारदा माई !’
आल्ह और उदल, ये २ भाई इस देवी के भक्त थे । वे पराक्रमी थे । उन्होंने पृथ्वीराज चौहान से भी युद्ध किया था । प्रथम इन्हीं दोनों ने इस मंदिर को ढूंढा था । आल्ह ने अगले १२ वर्ष तप किया और देवी के सामने स्वयं अपना मस्तक काट कर अर्पित किया था । तब देवी ने प्रकट होकर उसे जीवित किया और अमरत्व प्रदान किया । आल्ह श्री शारदा देवीजी को ‘शारदा माई’ नाम से संबोधित करते थे । इसलिए यह मंदिर ‘श्री शारदामाता’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
आज भी ऐसा माना जाता है कि आल्ह और उदल प्रतिदिन सबसे पहले मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं । मंदिर के निकट पहाडी में तालाब है और उसका नाम ‘आल्ह तालाब’ है । आल्ह और उदल यहां स्नान कर मंदिर में जाते हैं । तालाब से २ कि.मी. अंतर पर मल्ल विद्या का अखाडा है । पहले यहां आल्ह और उदल मल्ल युद्ध खेलते थे ।’