रामनाथी, गोवा : भगवान परशुरामजी की कृपा प्राप्त तथा परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति उच्च कोटि का भाव रखनेवाली म्हापसा (गोवा) की पू. सुशीला आपटेदादीजी द्वारा आषाढ कृष्ण पक्ष दशमी/एकादशी के शुभदिनपर सद्गुरुपदपर विराजमान होने की घोषणा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की वंदनीय उपस्थिति में सनातन की सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने की । इस भावसमारोह में सद्गुरु आपटेदादीजी को अपने गुुरुरूप में देखकर उनकी मनोभाव से सेवा करनेवाली उनकी बहू श्रीमती प्रणिता आपटे ने भी ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करने की घोषणा की गई ।
‘शबरी का श्रीरामजी के प्रति का भाव समझ में आना तथा उसका अनुभव करना’, यह किसी साधारण व्यक्ति की समझ के परे है; परंतु परात्पर गुुरुदेवजी के प्रति मन में अखंडित भाव तथा भक्ति को संग्रहित कर उनकी भेंट के लिए तडपनेवाली ‘कलियुग की शबरी’ अर्थात सद्गुुरु सुशीला आपटेदादीजी ! ‘श्रीराम तथा शबरी’ की त्रेतायुग में हुई भेंट का साधकों द्वारा केवल कल्पना से ही अनुभव किया जाता है; परंतु आज सद्गुुरु आपटेदादीजी तथा परात्पर गुुरु डॉक्टरजी की भेंट को देखकर साधकों ने प्रत्यक्ष स्थूलरूप से ‘श्रीराम तथा शबरी’ की भेंट को ‘इसी शरीर तथा इसी नेत्रों से’ अनुभव किया और यह अमूल्य क्षण साधकों के मन में सुवर्णाक्षरों से अंकित हुआ । दादीजी के सद्गुुरपदपर विराजमान होने की घोषणा के पश्चात साधकों ने दादीजी की भावपूर्ण सेवा करनेवाली उनकी बहू श्रीमती प्रणिता आपटे की गुणविशेषताएं बताईं । उन्होंने सासूजी की ओर ‘सासूजी’ की दृष्टि से न देखकर उनमें गुुरुरूप देखकर उनका आज्ञापालन करनेवाली उनकी बहू श्रीमती प्रणिता आपटे द्वारा ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किए जाने की घोषणा भी सद्गुरु (श्रीमती) बिंदादीदीजी ने की । ‘सासूजी का सद्गुुरुपदपर विराजमान होना और उनकी बहू का जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाना’, इस प्रकार का अनोखा समारोह एक ही दिन और एक ही समय संपन्न हुआ । इस अवसरपर सद्गुुरु आपटेदादीजी के पौत्र श्री. प्रणव प्रकाश आपटे भी उपस्थित थे । सद्गुरु (श्रीमती) बिंदादीजी ने उनकी गोद भर तथा उन्हें भेंटवस्तुएं प्रदान कर सम्मानित किया ।
सम्मान के समय स्वयं को माल्यार्पण करना
प्रेमपूर्वक अस्वीकार करनेवाली अहंरहित सद्गुरु आपटेदादीजी !
सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदादीदीजी ने जब आपटेदादीजी को सम्मानित करने के लिए हाथ में पुष्पमाला ली, तब सद्गुुरु आपटेदादीजी ने उसे गले में डाल लेना प्रेमपूर्वक अस्वीकार किया तथा उन्होंने वह पुष्पमाला परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी के गले में डाल दी । सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदादीदीजी द्वारा सद्गुुरु दादीजी को सम्मानित करते हुए प्रदान की गई शॉल तथा श्रीफल भी उन्होंने परात्पर गुरु डॉक्टरजी को समर्पित किया । सद्गुुरु दादीजी ने केवल हाल ही में प्रकाशित ‘डॉ. आठवलेजी की शिष्यावस्था तथा गुुरुरूप’ ग्रंथ का स्वीकार किया ।
बालक के समान निष्पाप तथा माता के
समान वात्सल्यभाव से युक्त सद्गुरु आपटेदादीजी !
सद्गुरु सुशीला आपटेदादीजी की यह विशेषतः यह कि उनकी देहबुद्धि अत्यंत अल्प है । सद्गुुरु दादीजी में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति उच्च कोटि का भाव है और वे उन्हें अपने गुुरु मानती हैं । वे कई बार संतों से मिलने आश्रम आती हैं । उनमें दास्यभक्ति होने से वे संतों के चरणों के पास बैठती हैं । उनकी भेंट के समय उनमें वाप्त बालक के समना निष्पापता तथा माता के समान वात्सल्यभाव इन दोनों भावों को एक ही समय अनुभव किया जा सकता है । उनकी भेंट के कारण देवता और भक्त का नाता कितना अटूट होता है, साथ ही ‘भाव’ को आयु की कोई सीमा नहीं होती, यह ध्यान में आता है । उनके पति वेदशास्त्रसंपन्न थे । यज्ञकर्म में अपने पति की सहायता करते-करते दादीजी की आध्यात्मिक उन्नति होकर उन्होंने उच्च आध्यात्मिक स्तर को प्राप्त किया । वर्ष २०१७ में परात्पर गुरु डाक्टरजी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में आश्रम आनेपर उन्होंने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी से ‘‘आप मेरे इस शरीर से आपके लिए पादुका बनाईए !’’, यह प्रार्थना की ।
कलियुग में साधकों ने अनुभव किया । श्रीरामजी तथा शबरी की भेंट का वह विलक्षण समारोह ॥
परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी का जब इस भावसमारोह में आगमन हुआ, तब सद्गुुरु आपटेदादीजी ने उन्हें उनका हाथ पकडकर उन्हें सुखासनपर विराजमान किया और सद्गुुरु दादीजी उनके चरणों के पास बैठ गईं । कुछ समय पश्चात उनके द्वारा लाई गई अग्निहोत्र की विभूति उन्होंने परात्पर गुरुदेवजी के चरणों में, हाथों में तथा मस्तकपर लगाकर थोडी सी उनकी जीभपर रख दी । इन भावक्षणों को मन में संजोकर रखने के लिए साधक भी स्तब्ध बन गए थे ।
साधक जब सद्गुुरु दादीजी के विषय में उन्हें प्राप्त अनुभूतियां तथा उनकी गुणविशेषताएं बता रहे थे, तब परात्पर गुुरु डॉक्टरजी ने उन्हें साधक जो बता रहे हैं, उसे सुनने के लिए कहा । तब वे ‘मुझे कुछ सुनाई नहीं देता’, ऐसा कहने लगीं । (‘संतों में कर्तापन तथा अहं शून्य होता है । उसके कारण सद्गुुरु दादीजी ने ऐसा कहा होगा’, ऐसा लगा । कु. ऋतुजा शिंदे) तब सद्गुुरु दादीजी ने ‘‘मेरे विषय में कुछ न बताएं, केवल इ (परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी के विषय में) बताएं ।’’, ऐसा कहा । अंत में उन्होंने परात्पर गुरु डॉक्टरजी के विषय में ‘‘आप ही सब करते हैं और करवा भी लेते हैं ।’’, ऐसा कहा ।
सद्गुरु दादीजी द्वारा बताए जाने के अनुसार
किया, तो वह होता ही है ! – श्रीमती प्रणिता आपटे
इस अवसरपर श्रीमती प्रणिता आपटे ने कहा, ‘‘सासूजी मुझे सदैव ‘तुम डरो मत’, ऐसा कहकर आधार देती हैं । वे मुझे बहुत प्रेम देती हैं । उनके आशीर्वाद से ही सबकुछ होता है । उनके बताए जाने के अनुसार किया, तो वह होता ही है ! वे सदैव मेरे साथ खडी होती हैं ।
सद्गुरु आपटेदादीजी द्वारा भावसमारोह के विषय में दी गई पूर्वसूचना !
इस भावसमारोह के आरंभ से पहले सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदादीजी ने सद्गुुरु दादीजी के साथ बातें कर रही थीं । तब सद्गुरु दादीजी ने कहा, ‘‘आज का दिन सौभाग्यशाली है …’ मानो आज परात्पर गुुरदेवजी के भेंट के समय ‘वे सद्गुुरुपदपर विराजमान होनेवाली हैं’, यह उन्होंने पहले से ही पहचाना था !
सद्गुुरु आपटेदादीजी में व्याप्त साधकों के प्रति प्रेमभाव का उदाहरण !
यह भावसमोरोह दोपहर के समय होने से उसके लिए आए साधकों ने भोजन नहीं किया था । सद्गुुरु दादीजी बीच में ही ‘साधकों ने भोजन नहीं किया है । हम भोजन के लिए जाएंगे ।’, ऐसा कह रही थीं । उसपर परात्पर गुुरु डॉक्टरजी ने कहा, ‘‘आपको देखने से साधकों का पेट भर गया है । उससे साधकों को भूख नहीं है ।’’
सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळो सद्गुुरु आपटेदादीजी के प्रति ध्यान में आए सूत्र
इस अवसरपर सद्गुुरु आपटेदादीजी के संदर्भ में बोलते हुए सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदादीदीजी ने कहा, ‘‘सद्गुुरु आपटेदादीजी का घर तो ‘शबरी की कुटिया’ ही है ! उनके घर में प्रवेश करनेपर एक अलग ही विश्व का अनुभव हुआ । अनेक वर्ष पश्चात मैं उनके घर गई थी । अंदर जाते समय मैं सद्गुुरु आपटेदादीजी जिस पलंगपर सोती हैं, उस पलंग की ओर आकर्षित हुई । तब सद्गुुरु आपटेदादीजी उस पलंगपर सोती है, यह मुझे ज्ञात नहीं था । मुझे ‘उनके घर की कक्षाएं व्यापक हो गई हैं तथा उनके घर के कक्ष आकार में बढ गए हैं’, ऐसा प्रतीत हुआ । सद्गुुरु आपटेदादीजी के घर में प्रतिदिन अग्निहोत्र होता है । उससे उनके घर में सूक्ष्म से वेदमंत्र सुनाई दे रहे थे । तब मुझे ‘प्राचीन काल में जब यज्ञयाग होते थे, मैं उस युग में गई हूं’, ऐसा प्रतीत हुआ । एक ओर सद्गुुरु आपटेदादीजी मेरे साथ बातें कर रही थीं, तो ‘आसपास वेदमंत्रों का पठन हो रहा है और ब्राह्मण यज्ञकर्म कर रहे हैं’, ऐसा प्रतीत हो रहा था । घर में होते समय ‘ध्यान लग जाना, मन निर्विचार होना तथा स्थल-काल से परे जाने का प्रतीत होना’, ऐसी अनुभूतियां हुईं । सद्गुुरु दादीजी का हाथ हाथ में लेनेपर उसे छोडने का मन नहीं हो रहा था । उनके घर से निकलने का भी मन नहीं हो रहा था । सद्गुुरु आपटेदादीजी ने परात्पर गुुुरु डॉक्टरजी को अपना गुरु माना है । उनके घर में प्रवेश करने से लेकर वहां से निकलनेतक वे केवल परात्पर गुुरु डॉक्टरजी के विषय में ही बोल रही थीं । उन्हें गुुरुदेवजी का निदिध्यास लगा था । सद्गुुरु दादीजी आश्रम में आते समय नंगे पैर आती हैं । संतों के कक्ष से बाहर निकलते समय भी उनकी ओर अथवा उनके कक्ष की ओर अपनी पीठ न हो, इस प्रकार से बाहर आती हैं । आज भी ‘जिस प्रकार से भक्त ईश्वर के लिए व्याकुल होता है’, उसी प्रकार से सद्गुुरु दादीजी परात्पर गुुरु डॉक्टरजी की भेंट के लिए व्याकुल थीं । सद्गुुरु आपटेदादीजी को उनके स्वयं के बारे में बताया जाना अच्छा नहीं लगता । उनमें तनिक भी अहं नहीं है । सद्गुुरु दादीजी का रहन-सहन बहुत सादगीभरा है । कोई त्योहार-उत्सव आनेपर कोई व्यक्ति सजकर भी सुंदर नहीं दिखती; परंतु सद्गुुरु दादीजी का रहनसहन साधारण है, अपितु वे सुंदर दिखती हैं । वास्तविक सुंदरता है ईश्वर के प्रति का भाव और भक्ति !’’
सद्गुुरु आपटेदादीजी में तनिक भी अहं नहीं है, इसे दर्शानेवाले प्रसंग !
१. सद्गुरु आपटेदादीजी जब भावसमारोह के स्थानपर परात्पर गुुुरु डॉ. आठवलेजी से मिलीं, तब वे आसंदीपर न बैठकर भूमिपर ही बैठ गईं ।
२. कार्यक्रमस्थलपर उनका आगमन होनेपर उनके लिए रखे गए सुखासनपर (सोफा) न बैठकर वे साधारण आसंदीपर ही बैठीं । साधकों द्वारा प्रेमपूर्वक आग्रह किए जाने के पश्चात ही वे सुखासनपर बैठ गईं ।
३. सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदादीदीजी जब भावसमारोह के स्थानपर आगमन हुआ, तब सद्गुरु दादीजी ने उन्हें झुककर नमस्कार किया ।
४. भावसमारोह के समय छायाचित्रकार साधक सद्गुुरु दादीजी की विविध भावमुद्राएं खींच रहा था । उसे देखकर सद्गुुरु दादीजी कहने लगीं, ‘‘बहुत छायाचित्र खींचे, अब बस करो ।’’
सद्गुरु दादीजी की मनोभाव से सेवा करनेवाली उनकी बहू
श्रीमती प्रणिता आपटे ने भी प्राप्त की ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर !
केवल सेवा करनी है, इतना ही मेरी समझ में आता है ! श्रीमती प्रणिता आपटे
सम्मान के पश्चात अपना मनोगत व्यक्त करते हुए श्रीमती आपटे ने कहा, ‘‘मेरा आध्यात्मिक स्तर उतना नहीं है । आपही ने सब किया । हमें उन्नति इत्यादी कुछ समझ में नहीं आता । केवल सेवा करनी है, इतना ही समझ में आता है ।’’
सद्गुरु दादीजी की सेवा ‘गुुरुसेवा’ के रूप में करने से प्राप्त
किया ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर ! – सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी
सद्गुरु (श्रीमती) बिंदादीदीजी ने कहा, ‘‘हम जब सद्गुुरु दादीजी के घर गए थे, तब काकू ने थोडे ही समय में हम सभी के लिए भोजन बनाया । दादीजी की भांति उनमें ही प्रेमभाव दिखाई देता है । ‘आश्रम के सभी साधक हमारे परिवार के ही सदस्य हैं’, इस भाव से वे आश्रम के साधकों में घुल-मिल जाती हैं । उनमें स्वयं के लिए कोई इच्छा नहीं है । सद्गुरु दादीजी जो कहेंगी, उसके अनुसार वे करती हैं । वे दादीजी को ‘गुुरु’ मानकर उनकी सेवा करती हैं । उसके कारण उन्होंने ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया है ।’’
‘शिष्य कैसा होना चाहिए’, इसका आपने आदर्शन स्थापित किया हैं ! – परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी
‘आपके लिए दादीजी ईश्वर ही हैं । आपने ‘शिष्य कैसा होना चाहिए ?’, इसका आदर्श स्थापित किया है । इन शब्दों में परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी ने श्रीमती प्रणिता आपटे की प्रशंसा की । ‘आपटेकाकू अंतर्यामी शिष्य हैं । सद्गुरु दादीजी को कुछ बोलने नहीं लगता । उनके द्वारा बिना कुछ बताए ही उनकी आंखों में देखकर जो सूझता हैं, वह काकू करती हैं ।’, ऐसा कु. प्रियांका लोटलीकर ने कहा । परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने जब उनसे ‘कैसे सूझता है ?’, यह पूछा, तब काकू ने कहा, ‘‘आपके आशीर्वाद के कारण सूझता है ।’, ऐसा कहा । इससे सद्गुुरु आपटेदादीजी की भांति काकू में भी अहं अल्प है, यह ध्यान में आता है ।
श्रीमती प्रणिता आपटे का परात्पर गुरु डॉक्टरजी के प्रति भाव !
सम्मान के समय सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदादीदीजी ने श्रीमती आपटे को फूलों की बेनी दी, उसे उन्होंने परात्पर गुुरु डॉक्टरजी और सद्गुरु दादीजी के चरणों में रखकर उन्हें भावपूर्ण नमस्कार किया । उसके उपरांत उन्होंने उसे अपने बालों में पहना । श्रीमती आपटे में विद्यमान भाव के विषय में सद्गुरु दादीजी ने कहा, ‘‘अब यह बेनी ४ दिनोंतक अपने बालों में वैसी ही रखेगी !’’
विगत अनेक वर्षों से अखंडता से सेवारत श्रीमती प्रणिता आपटे
सद्गुरु आपटेदादीजी के घर में वर्ष १९६३ से ‘त्रेताग्नि अग्निहोत्र’ की उपासना की जाती थी । सद्गुरु दादीजी के पति का निधन होने के पश्चात उनके पुत्र ने इस परंपरा को आगे बढाया । त्रेताग्नि अग्निहोत्र की यह उपासना अत्यंत कठीन होती है । ३ कुण्डों में अग्नि को अखंडित चालू रखना होता है, साथ ही प्रत्येक अमावस्या तथा पूर्णिमा के दिन इष्टि (श्रौर्त यज्ञ का एक प्रकार) होती हैं । उन्हें भी अविरत करना पडता है । उस उपासना के कारण श्रीमती प्रणिता आपटेकाकू को अनेक वर्ष अपने माइके में रहना संभव नहीं हुआ । यदि वे कभी अपने माईके गईं, तो भी वे एक दिन में वापस आती है । वे सद्गुरुदादीजी की अखंडित सेवा करती हैं । उनमें व्याप्त सद्गुरु दादीजी के प्रति का भाव उनकी कृतियां तथा विचारों से व्यक्त होता है ।