प.पू. श्री अनंतानंद साईश एक अद्वितीय गुरु थे । उन्होंने अलग-अलग मार्ग से साधनारत ३ शिष्य सिद्ध किए !
१. सर्वसंग परित्यागगगी प.पू. भुरानंदबाबा
२. तांत्रिक श्रीराम पंडित
३. भक्तिमार्ग के संत भक्तराज महाराज (सनातन संस्था के प्रेरणास्रोत)
इनमें से मध्य प्रदेश के प.पू. भुरानंदबाबा सनातन के प्रेेरणास्रोत संत भक्तराज महाराज के गुरुबंधु हैं । प.पू. भुरानंदबाबा का पारिवारिक जीवन, बचपन, गृहत्याग, गुरुभेंट, साधकों को इस संदर्भ में प्राप्त अनुभूतियां तथा उनके देहत्याग के विषय में आज उनके निर्वाणोत्सव के उपलक्ष्य में जान लेते हैं –
१. पारिवारिक जीवन
प.पू. भुरानंदबाबा मूलतः मध्य प्रदेश के बडवानी जिले से थे । उनका मूल नाम शंकर था । वे भिल्ल समुदाय से थे । उनका १ भाई और १ बहन थी । शंकर जब घर में था, तब उसकी बहन का विवाह हुआ । घर में इतनी निर्धनता की शंकर आधा ओढना शरीरपर तथा आधी शरीर के नीचे बिछाकर सोता था ।
२. बचपन
शंकर बचपन में पीपल के वृक्ष की कोटर में छिप जाता था । जब वहां का नाग उसे देखकर फुस्सऽऽ करता, तब वह भी उसे फुस्सऽऽ करता था । ७-८वे वर्ष की आयु में शंकर के शरीरपर इतने फोडे आए कि उससे पीप बहने लगा; इसलिए उसकी मां उसे दूर से ही भोजन परोसती थी । एक बार वह नाले की बाजू में मलविसर्जन के लिए गया था, तब वहां एक साधु ने वहां आकर उससे कहा, तुम स्नान करो, तो तुम्हें अच्छा लगेगा परंतु तब ठंड बहुत थी; इसलिए शंकर ने स्नान नहीं किया । तब साधु ने कहा, लड्डू खाओ । जब शंकर लड्डू खाने उसके पास गया, तब उस साधु ने उसे पानी में ढकेल दिया और उसे पानी से आधे घंटेतक बाहर ही नहीं आने दिया । उसके पश्चात जैसे-जैसे धूप खिलने लगी, वैसे-वैसे उसकी फोडियों सी पीप आना न्यून हुआ और दोपहर १२ बजे फोडियां सुखने भी लगीं । उसके पश्चात उसके शरीरपर उसके दांग भी नहीं रहे ।
३. गृहत्याग तथा प.पू. अनंतानंद साईश (गुरु) के पास जाना
कुछ दिन पश्चात शंकर के पिता का देहांत हुआ । तब एक व्यक्ति ने कहा, ईश्वर ने पिता को ले जाया । तब शंकर ईश्वर की खोज में बाहर निकला । वह पैदल चलते-चलते ३ दिन पश्चात प.पू. श्री अनंतानंद साईश के पास पहुंचा । तब भी वह लोगों को साधु ही लगता था । तब किसी ने उसे खाने दिया और पूछा कि आप कहां जा रहे हैं ?, तो वह कहता, मैं सूर्य से मिलने जा रहा हूं । क्या आपको भी आना है ? तब लोग कहतें, देखो ! यह महाराज क्या बोल रहे हैं । कुछ लोग उनकी बातोंपर हंसते भी थे । वह ३ दिन पश्चात प.पू. श्री अनंतानंद साईश की कुटिया के पास आया । तब वे बडवाह गऐ थे । आने के पश्चात उन्होंने देखा की उनकी कुटिया के बाहर एक लडका सोया है । उन्होंने उसे खाने के लिए तिक्कड दिए । २४ घंटे पश्चात जग जानेपर उन्होंने उसका हाल पूछा और कहा, यहां १-२ दिन रहो । उसके पश्चात वे उसे बडवाह ले गए । वह पुनः प.पू. अनंतानंद साईश के पास आ गया । उन्होंने उसे कहा, तुम अपने घर चले जाओ । इसपर शंकर ने कहा, मेरा तो घर-बार ही नहीं है । आप मुझे भोजन दें । मैं आपके पैर दबाऊंगा । इस प्रकार से उसकी गुरुसेवा आरंभ हुई ।
प.पू. बाबाजी ने इस अनाथ लडके को अपने माता-पिता का अभवा प्रतीत ही नहीं होने दिया । उस अशिक्षित लडके ने भी बाबाजी की सेवा में कोई भी कसर नहीं छोडी । वह दिनरात उनकी सेवा करता था और उनके बताए जाने के अनुसार ही करता था ।
४. गुरुमंत्र मिलना और शंकर का भुरानंदबाबा बन जाना
२-३ मास पश्चात कोटावालेबाबाजी ने प.पू. अनंतानंद साईशजी से कहा, यह लडका अच्छा है, उसे तुम अपने पास रखो और उसकी शिखा काट दो । प.पू. श्री अनंतानंद साईशजी ने हनुमानजी के अभिषेक की सामग्री ली और मंगलवार के दिन (उत्तर भारत में मंगलवार को भी हनुमानजी का दिन माना जाता है ।) उन्होंने शंकर को स्नान करवाकर हनुमानजी का अभिषेक किया और उसके माथेपपर और दोनों पैरों के अंगूठों को शेंदूर लगाकर उसे नमस्कार किया । उसके पश्चात उन्होंने शंकर को स्वयं को (प.पू. अनंतानंद साईशजी को) ऐसा ही करने के लिए कहा । ऐसा करनेपर उन्होंने उसकी शिखा काट दी, हनुमानजी के सामने उसे गुरुमंत्र दिया और कहा, शंकर, आज तुम्हारा पुनर्जन्म हुआ है । अब तुम शंकर नहीं रहे । अब तुम भोलानंद हो; परंतु मेरे लिए तुम शंकर ही हो । बाबाजी का यह संबोधन शंकर के लिए संपूर्णरूप से लागू था; क्योंकि वह सचमुच ही भोला था और अंततक वह वैसा ही रहा । आगे जाकर उसका नाम भुरानंद पडा ।
५. प.पू. भुरानंदबाबाबा के संदर्भ में साधकों को प्राप्त अनुभूति
रात २ बजे नदी को पार करने से पहले भुरानंदबाबा द्वारा अब मेरी बैटरी चार्ज होगी, ऐसा कहा जाता और उसी समय उनके सामने प्रकाश दिखाई देना : एक बार प.पू. भुरानंदबाबा मोरटक्का आए थे । वहां रात के २ बजेतक भजन का कार्यक्रम चला । उसके पश्चात प.पू. भुरानंदबाबा संत भक्तराज महाराज से कहने लगे, मैं अब मेरी कुटिया में सोने के लिए जाता है । तब बाबा ने मुझसे कहा, आप भुरानंदबाबा नदी को कैसे पार करते हैं, वह जाकर देखिए । तब मैं और कुछ भक्त उनके साथ गए । तब सर्वत्र अंधेरा फैला था और सामने का कुछ नहीं दिखाई दे रहा था । हमने उन्हें टॉर्च का प्रकाशि दिखाया । उसे देखकर प.पू. भुरानंदबाबा हमपर चिल्लाकर कहने लगे, टॉर्च बंद कीजिए । अब मेरी बैटरी चार्ज होगी । उसी समय उनके सामने प्रकाश दिखाई दे रहा था । गुरुदेव अपने शिष्यों को मार्ग कैसे दिखाते हैं, यह हमें प्रत्यक्ष देखने के लिए मिला ।- श्री. बापू जोशी, ठाणे
६. देहत्याग
प.पू. श्री अनंतानंद साईशजी ने भुरानंदबाबा को बताया था, तुम्हें अंततक इस कुटिया को और इस तटपर छोडकर नहीं जाना है । उसके अनुसार भुरानंदबाबा कहीं न जाकर जीवनभर वहीं रहें और उसी स्थानपर उन्होंने १५ दिसंबर १९८९ को अपना शरीर त्याग दिया ।
६ अ. देहत्याग के पश्चात भी स्थूल से अनुभूतियां देकर सिखाना
प.पू. भुरानंदबाबा के देहत्याग के पश्चात उनका शिष्य परमानंद को अब क्या करें ?, यह समझ में नहीं आ रहा था । वह एक दिन ऐसी ही विषण्ण स्थिति में बैठा था । तब उसे भुरानंदबाबा दिखाई दिए । उन्होंने उससे बीडी मांग और परमानंद ने उन्हें बीडी दी । बीडी को आधी पीने के पश्चात उसे वही फेंककर वे चले गए । तब परमानंद सचेत हुआ । तब उसे वहां आधी जली हुई बीडी दिखाई दी; इसका अर्थ जो हुआ था, वह सच था और उसके गुरुदेव का अस्तित्व अभी भी है, इसके प्रति वह आश्वस्त हुआ ।