विश्वव्यापी सनातन हिन्दू संस्कृति के पदचिन्हों के अध्ययन दौरे की कुछ छायाचित्रमय झलकियां
परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी अध्यात्म के उच्चतम स्तर पर हैं । तब भी उनमें अद्वितीय जिज्ञासा और सीखने की लगन है । इसलिए वे विश्व में बिखरे अनंत ज्ञान के ज्ञानमोती एकत्रित करने की सीख स्वयं के कृत्य से देते हैं । प्राप्त ज्ञान समाज को देने के लिए वे अखंड प्रयासरत रहते हैं । ये ज्ञानमोती एकत्रित करने के लिए उन्हीं की कृपा से मैं और मेरे साथ महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के ४ – ५ साधक वर्ष २०१० से पूरे भारत की यात्रा कर रहे हैं तथा वर्ष २०१७ और २०१८ की अवधि में हमने नेपाल, श्रीलंका, इंडोनेशिया, कंबोडिया, थाइलैंड, मलेशिया और सिंगापुर आदि देशों में यात्रा की । समुद्रमंथन से जैसे महालक्ष्मी, अमृत, कामधेनु, हरसिंगार वृक्ष, विविध रत्न आदि अनमोल वस्तुएं मिली, उसी प्रकार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के आशीर्वाद से की हुई यात्रा के ज्ञानमंथन से हमें अनमोल वस्तुएं मिली हैं । हम जहां जाते हैं, वहां देवालय, सांस्कृतिक विरासत, ऐतिहासिक वास्तु, हिन्दुओं की विशिष्ट प्रथाएं, महान व्यक्ति और संतमहात्माओं का चित्रीकरण, भेंटवार्ता, उनसे संबंधित पुस्तकें, दृश्य-श्रव्य चक्रिकाएं, ग्रंथ आदि के माध्यम से उसकी विशिष्ट जानकारी एकत्रित करते हैं । वहां की कुछ वस्तुएं भी आध्यात्मिक शोध के लिए संजो कर रखते हैं । कुछ स्थानों पर हम वैज्ञानिक उपकरणों द्वारा आध्यात्मिक शोध भी करते हैं । यदि किसी स्थान पर हिन्दू संस्कृति का र्हास हुआ हो अथवा धर्मपालन का अभाव दिखाई दे रहा हो, तो उसकी जानकारी भी प्रबोधन करने के उद्देश्य से एकत्रित करते हैं । इन सर्व दौरों से विशेषतः विदेश दौरों से हमें सीखने मिले सूत्र संक्षेप में प्रस्तुत कर रहे हैं ।
इंडोनेशिया, मलेशिया, कंबोडिया और थाइलैंड आदि देशों में हिन्दू संस्कृति के मंदिरों के अवशेष हैं; परंतु डिस्कवरी और नेशनल जियोग्राफिक चैनल आदि वहां की मूल हिन्दू संस्कृति नहीं दिखाते । १५ मार्च को महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के साथ साधक-अध्ययनकर्ता सुराबाया (इंडोनेशिया) में पहुंचे । वहां १०० कि.मी. दूरी पर ज्वालामुखी उगलनेवाले पर्वतों की शृंखला है । वहां तीन पवित्र पर्वत हैं । ब्रोमो अर्थात साक्षात ब्रह्मा, सुमेरू अर्थात श्रीविष्णु (पुराणों में वर्णित समुद्रमंथन का कार्य में मथनी का कार्य इस पर्वत ने किया था) और मेरापी अर्थात शिव ! इन तीनों पर्वतों में एक ही समय विस्फोट होता है ।
१. अध्यात्म का प्रसार
विज्ञान नहीं, अपितु अध्यात्म ही मानव की खरी उन्नति कर सकता है और उसे आनंद और शांति दे सकता है । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा किए जा रहे अध्यात्म के प्रसार का परिचय करवाने और अन्यों को इसमें सम्मिलित करने के लिए हमारी यात्रा चल रही है । अन्य कुछ विभूतियां भी अध्यात्म के अनुसार अपना जीवनयापन करती हैं । वह जानने के लिए ही तथा उनसे सीखने के लिए हम यह यात्रा कर रहे हैं ।
२. साधना की आवश्यकता
वर्तमान में साधना और धर्मपालन के अभाव के कारण वातावरण में रज-तम अधिक बढ गया है । ऐसे वातावरण में बने रहने के लिए स्वयं के पास आध्यात्मिक बल होना आवश्यक है । हमें अनुभूति होती थी कि, विदेश में हम होटल के जिस कक्ष में रुकते थे, वहां सात्त्विक वातावरण निर्माण हो जाता था । उस कक्ष के बाहर निकलते ही रज-तम का बोध होता था ।
३. श्रद्धा का महत्त्व
किसी स्थान पर चित्रीकरण करने के लिए जाने पर वहां कुछ दिनों से वर्षा हो रही होती थी अथवा अन्य कुछ प्राकृतिक बाधाएं होती थी । तब हमारे द्वारा किया जानेवाला सत् का कार्य ईश्वर ही करवानेवाले हैं, यह श्रद्धा रखकर प्रार्थना करने पर बाधाएं दूर हो जाती थीं ।
४. गुरुकृपा महत्त्वपूर्ण
हम आज एक देश में, तो कल दूसरे देश में होते थे । प्रत्येक देश की जलवायु अलग अलग होती थी । हमारी यात्रा लगभग ६ लाख कि.मी. हो चुकी है । जब हम एक स्थान से सेवा समाप्त कर दूसरे स्थान पर जाते हैं, तब पहले स्थान पर दुर्घटना हुई, ऐसा समाचार हमें अनेक बार सुनने को मिलता है । उस स्थान पर जनधन की हानि होती है अथवा लोगों को कष्ट होता है । हमारी सर्व सेवा ईश्वर निर्विघ्न रूप से संपन्न करवा लेते हैं । श्रीलंका से जब हम भारत लौटे, तब वहां एक सप्ताह पश्चात ही बौद्ध और मुसलमान दंगे का समाचार हमें मिला । इंडोनेशिया स्थित सुराबाया और बाली के मध्य ज्वालामुखी है । उस स्थान से विषैली वायु निकली और ३० लोगों की मृत्यु हो गई ।
हम परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के आशीर्वाद से निरंतर यह यात्रा करने के कारण यात्रा में हममें से कोई कभी बीमार नहीं हुआ, यह विशेष है । इसे ही गुरुकृपा कहते हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से यात्रा में सीखने को मिले सूत्र उनके जन्मोत्सव के निमित्त उनके चरणों में अर्पण !
– (सद्गुरु) श्रीमती अंजली मुकुल गाडगीळ, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा (३.५.२०१८)
संसार की सबसे बडी दूरचित्रवाहिनियों द्वारा विविध देशों में स्थित हिन्दू संस्कृति के मंदिरों के अवशेष के चित्रीकरण में वहां मूल हिन्दू संस्कृति का होना न दिखाना, संसार भर में स्थित हिन्दू धर्म के चिन्हों के संबंध में भारत शासन उदासीन है, इस कारण परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने साधकों को इन देशों में भेजा होगा ।
इंडोनेशिया, मलेशिया, कंबोडिया और थाइलैंड आदि देशों में हिन्दू संस्कृति के मंदिरों के अवशेष हैं; परंतु डिस्कवरी और नेशनल जियोग्राफिक चैनल आदि संसार के सबसे बडे दूरचित्रप्रणाल वहां के मंदिरों का व्यवस्थित चित्रीकरण नहीं करते तथा इसका सत्य इतिहास भी नहीं बताते, यह इन देशों में आने के उपरांत हमारे ध्यान में आया । ये प्रणाल उनके चित्रीकरण में मूल हिन्दू संस्कृति नहीं दिखाते । वास्तव में भारत के शासनकर्ता भी इस संबंध में निष्क्रिय और उदासीन हैं । संसार भर में स्थित हिन्दू
धर्म के चिन्हों और उनकी जानकारी के लिए भारत शासन कुछ नहीं करता । भारत शासन यह भूल चुका है कि, यह अपनी संस्कृति है तथा हमें उसे सुरक्षित करना है । भारतीय संस्कृति की महानता भारत को दिखानी चाहिए; परंतु वैसा नहीं होता, इसलिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने साधकों को इन देशों में भेजा होगा, ऐसा लगता है ।
– (सद्गुरु) श्रीमती अंजली गाडगीळ, कंबोडिया (२८.३.२०१८)