सारणी
२ आ. पूर्व दिशाके अतिरिक्त अन्य किसी भी दिशाकी ओर कूडा ढकेलें ।
२ इ. कूडा आगे ढकेलते समय झाडूको भूमिसे विपरीत दिशामें रगडकर न ले जाएं ।
२ ई. झाडू भूमिपर न पटकें और न ही उसे बलपूर्वक घिसकर कूडा निकालें ।
३. कूडा एकत्रित करनेवाले निर्वात यंत्रसे (वैक्यूम क्लीनरसे) वातावरणमें रज-तमका प्रदूषण बढना
५ अ. पोंछा लगानेके लिए उपयोग किए जानेवाले पानीमें चुटकीभर विभूति डालें ।
५ आ. नीचे झुककर दाहिने हाथसे गीले कपडेसे पोंछा लगाएं ।
६. यंत्रकी सहायतासे भूमि पोंछनेसे संभावित हानि
१. झाडू कब लगाएं ?
‘यदि घर अस्वच्छ हो गया हो, तो नामजप भावपूर्वक करते हुए क्षात्रभावसे, किसी भी समय झाडू लगाएं । ऐसा करनेसे ही झाडू लगानेकी कृतिसे निर्मित कष्टदायक स्पंदनोंका देहपर प्रभाव नहीं होगा ।
कर्मबंधनके आचाररूपी नियम स्वयंपर लागू कर दिनमें ही, अर्थात् रज-तमात्मक क्रियाका अवरोध करनेवाले समयमें ही यह कर्म कर लें ।
सायंकाल झाडू न लगाना
दिनमें एक बार ही झाडू लगाएं । सायंकालके समय झाडू न लगाएं; क्योंकि इस कालमें वायुमंडलमें रज-तमात्मक स्पंदनोंका संचार अधिक मात्रामें होता है । इसलिए झाडू लगानेकी रज-तमात्मक क्रियासे संबधित इस प्रक्रियासे घरमें अनिष्ट शक्तियोंके प्रवेशकी आशंका अधिक रहती है । दिनमें वायुमंडल सत्त्वप्रधान होता है, इसलिए झाडू लगानेकी रज-तमात्मक क्रियासे निर्मित कष्टदायक स्पंदनोंपर यह वायुमंडल यथायोग्य अंकुश लगाए रखता है । अतः इस क्रियासे किसीको भी कष्ट नहीं होता ।
त्रिकालसंध्यासे पूर्व झाडू लगाना
संकलनकर्ता : दिनभर घरमें एकत्रित हुआ कूडा संध्याके समय निकालनेसे, उसके उपरांत आनेवाले रज-तमात्मक स्पंदन वास्तुमें कम मात्रामें आकृष्ट होते हैं । इसलिए संध्यासमय भी झाडू लगाते हैं । आपने ऐसा क्यों बताया है कि ‘सायंकालमें झाडू न लगाएं ?’
सूक्ष्म-जगतके एक विद्वान : कलियुगके जीव रज-तमप्रधान हैं । अतः जहांतक हो सके, वे रज-तमात्मक स्पंदनोंको आकृष्ट करनेवाले कर्म सायंकालमें न करें । सायंकालमें वायुमंडलमें रज-तमात्मक तरंगोंका संचार बढ जाता है । झाडू लगानेकी घर्षणात्मक कृतिद्वारा भूमिसे संलग्नता साध्य होती है । इससे पातालके कष्टदायक स्पंदनोंकी गतिमें वृद्धि हो जाती है ।
कूडा बाहर फेंकनेकी कृतिकी अपेक्षा नादके स्तरपर सूक्ष्म स्वरूपमें वास्तुमें रज-तमात्मक स्पंदनोंके घूमते रहनेकी मात्रा अधिक हो जाती है । इसीलिए जहांतक संभव हो, त्रिकालसंध्याका समय बीतनेपर झाडू न लगाएं । अतः कहा गया है कि, ‘यथासंभव, सायंकालमें झाडू न लगाएं ।’ त्रिकालसंध्यासे पूर्व झाडू लगाते समय उत्पन्न नादसे रज-तमात्मक तरंगें कम आकृष्ट होती हैं ।
ऐसा कहते हैं कि, त्रिकालसंध्याके समय घरमें लक्ष्मी (टीप)आती है । अर्थात् त्रिकालसंध्यासे पूर्व झाडू लगाकर त्रिकालसंध्याके समय तुलसीके निकट दीप जलानेसे शक्तिरूपी तरंगें दीपकी ओर आकृष्ट होकर वास्तुमें प्रवेश करती हैं । इस तेजदायी देवत्वके कारण सायंकालके कष्टदायक स्पंदनोंसे रक्षण होता है ।’
– सूक्ष्म-जगतके एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, २६.१०.२००७, दोपहर ५.२०)
२. झाडूसे कूडा कैसे निकालें ?
२ अ. झाडू लगाते समय कमरकी दाहिनी ओर झुककर
दाहिने हाथमें झाडू लेकर, पीछेसे आगेकी ओर कूडा धकेलते हुए ले जाएं ।
कमर झुकानेसे होनेवाली प्रक्रिया
‘कूडा निकालते समय कमरसे झुकनेसे नाभिचक्रपर दबाव पडनेसे पंचप्राण जागृत होते हैं । घुटने झुकाकर कभी भी कूडा न निकालें; क्योंकि इस मुद्रासे घुटनेके रिक्त स्थानमें संग्रहित अथवा घनीभूत रज-तमात्मक वायुधारणाको गति प्राप्त होनेकी आशंका रहती है । इस मुद्रासे झाडू लगानेपर पातालसे वायुमंडलमें ऊत्सर्जित कष्टदायक स्पंदन देहकी ओर आकृष्ट होनेका भय रहता है । इसलिए यथासंभव, देहमें रज-तमात्मकताका संवर्धन करनेवाली ऐसी कृति न करें ।
दाहिनी ओरसे झुकनेसे होनेवाली प्रक्रिया
दाहिनी ओर झुककर कूडा निकालनेसे देहकी सूर्य नाडी जागृत रहती है तथा तेजके स्तरपर, भूमिसे उत्सर्जित कष्टदायक स्पंदनोंसे रक्षण होता है ।’ – सूक्ष्म-जगतके एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, २६.१०.२००७, दोपहर ५.२०)
२ आ. पूर्व दिशाके अतिरिक्त अन्य किसी भी दिशाकी ओर कूडा ढकेलें ।
‘पूर्व दिशाकी ओरसे देवताओंकी सगुण तरंगोंका पृथ्वीपर आगमन होता है । कूडा रज-तमात्मक होता है, इसलिए पश्चिमसे पूर्वकी ओर कूडा ढकेलते समय कूडा और धूलका प्रवाह पूर्व दिशामें होता है तथा इसके माध्यमसे रज-तम कण एवं तरंगोंका प्रक्षेपण होता है । इससे पूर्व दिशासे आनेवाली देवताओंके सगुण तत्त्वकी तरंगोंके मार्गमें बाधा निर्माण होती है । अतः झाडू लगाते हुए पूर्वकी ओर जाना अयोग्य है । पूर्व दिशाके अतिरिक्त अन्य किसी भी दिशाकी ओर झाडू लगाते हुए जा सकते हैं ।’ – ईश्वर (कु. मधुरा भोसलेके माध्यमसे, २८.११.२००७, रात्रि १०.५५)
झाडू लगाते समय अंदरसे बाहरकी दिशामें, अर्थात् द्वारकी दिशामें ढकेलते हुए आगे ले जाएं ।
२ इ. कूडा आगे ढकेलते समय झाडूको भूमिसे विपरीत दिशामें रगडकर न ले जाएं ।
‘झाडू लगाते समय उसे आगेकी ओर ढकेलते हुए ले जाएं । एक बार कूडा आगे करनेके उपरांत झाडूको पुनः पीछेकी ओर घिसते हुए झाडू न लगाएं; क्योंकि इस घर्षणात्मक क्रियासे भूमिपर घडीकी सुइयोंकी विपरीत दिशामें घूमनेवाले गतिमान भंवरोंकी निर्मिति होती है । झाडू लगाते समय भूमिके निकटके पट्टेसे पातालसे उत्सर्जित कष्टदायक स्पंदन इन भंवरोंमें घनीभूत होते हैं । इस कारण कूडा निकालनेके उपरांत भी सूक्ष्म दृष्टिसे वास्तुमें अशांति ही रहती है । अतः झाडू विपरीत दिशामें, पीछे ले जाकर कूडा न निकालें । प्रत्येक बार आगेसे पीछे आते समय झाडू भूमिको बिना घिसे उठाकर पीछे ले जाएं, फिर उसे भूमिपर रखकर कूडा निकालें ।’ – सूक्ष्म-जगतके एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, २६.१०.२००७, दोपहर ५.२०)
२ ई. झाडू भूमिपर न पटकें और न ही उसे बलपूर्वक घिसकर कूडा निकालें ।
‘कूडा निकालते समय झाडू भूमिपर मारने अथवा बलपूर्वक घिसकर कूडा निकालने जैसी कृतियोंसे कष्टदायक नाद उत्पन्न होते हैं । इससे पातालके तथा वास्तुके कष्टदायक स्पंदन कार्यरत होते हैं । कालांतरसे इन तरंगोंका वातावरणमें प्रक्षेपण आरंभ होता है एवं वास्तुमें अनिष्ट शक्तियोंका संचार भी बढता है । इसलिए ऐसी कृतियां न करें । उपरोक्त सभी कृतियां तमोगुणी वृत्तिकी प्रतीक हैं ।’ – सूक्ष्म-जगतके एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, २८.१.२००५, रात्रि ८.२०)
(‘सन् २००४ में गोवाके फोंडा स्थित सनातनके आश्रममें कूडा निकालनेके संदर्भमें विविध प्रयोग किए गए । तब अनुभव हुआ कि, ऊपर बताए अनुसार कूडा निकालनेपर अधिक लाभ होता है । प्रत्येक बार ईश्वर पहले अनुभूति देते हैं, तदुपरांत ज्ञान देते हैं । २६.१०.२००७ को प्राप्त ज्ञान एक अन्य उदाहरण है ।’ – डॉ. जयंत आठवले)
३. कूडा एकत्रित करनेवाले निर्वात यंत्रसे
(वैक्यूम क्लीनरसे) वातावरणमें रज-तमका प्रदूषण बढना
‘कूडा एकत्रित करनेवाले निर्वात यंत्रसे वायुकी आकर्षणशक्तियुक्त तेज-वायुयुक्त वेगधारी ऊर्जासे भूमिसे संलग्न कूडा संपूर्णतः खींच लिया जाता है । इस प्रकार भूमिको घिसनेवाले तेज-वायुयुक्त प्रवाहसे कण-कण कूडा यंत्ररूपी थैलीमें खींच लिया जाता है । तब भी वायुके भूमिसे होनेवाले (तेज-वायुरूपी घर्षणात्मक स्तरपर) स्पर्शसे पातालकी अनिष्ट शक्तियोंके काली शक्तिके स्थान कार्यरत होते हैं । उसी समय फुवारेके समान वायुमंडलमें काली शक्तिका फुवारा उडाते हैं । अर्थात् बाह्य स्तरपर मनुष्यको लगता है कि ‘पूरा परिसर स्वच्छ हो गया’; परंतु ऐसी प्रक्रिया नहीं होती । संपूर्ण वायुमंडल कष्टदायक वेगधारी ऊर्जासे आवेशित होता है । भूमिसे लगभग पांचसे छः फुट ऊंचाईतक इस कष्टदायक ऊर्जाका कार्यक्षेत्र निर्माण हो जाता है । साधारण पुरुषकी ऊंचाईका क्षेत्र कष्टदायक स्पंदनोंसे आवेशित होता है । इस कारण बाह्यतः इस स्वच्छ परिसरमें विचरण करनेवाला मनुष्य संपूर्णतः काली शक्तिके स्पंदनोंमें रहता है एवं इन काले आवरणोंमें ही दिनभर अपना व्यवहार पूर्ण करता है । इसलिए वह जिस स्थानपर जाता है, उस स्थानके वायुमंडल तथा उसके संपर्कमें आनेवाले मनुष्यदेहको भी सूक्ष्म-स्तरपर दूषित कर देता है ।
इसीलिए विदेशमें प्रचलित स्वच्छताकी यांत्रिक पद्धति सूक्ष्म-स्तरपर वायुमंडलको दूषित बनानेमें ही अग्रसर होती है । इससे यही स्पष्ट होता है कि, वहांका वातावरण बाह्यतः सर्व आधुनिक सुख-सुविधाओंसे युक्त तथा स्वच्छताको प्रोत्साहित करता हुआ प्रतीत होता है; परंतु सूक्ष्म-स्तरपर रज-तमात्मक प्रक्रियाकी निर्मिति करनेके स्तरपर अत्यंत पिछडा हुआ है । यह विदेशमें जीवको रज-तमात्मक स्पंदनोंसे आवेशित कर नरकप्राप्ति करवाता है ।’
– सूक्ष्म-जगतके एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, २५.१०.२००७, रात्रि ८.३२ और २८.१०.२००७, रात्रि ८.०८)
आधुनिकताकी ओर नहीं; अपितु विनाशकी ओर ले जानेवाला विज्ञान
विश्वका शोध करनेवाले ऋषि-मुनियोंकी झाडूसे कूडा निकालनेकी पद्धतिको ‘जंगली’ कहकर, उसकी घृणा करनेवाले तथा कूडा एकत्र करनेवाले निर्वात यंत्रका (वैक्यूम क्लीनरका) आविष्कार कर मानवजातिको विनाशकी ओर ले जानेवाले वर्तमान वैज्ञानिक उन्नत नहीं हैं; अपितु पिछडे हुए हैं !
(‘मनुष्य अध्यात्मका जितना आधार लेगा, उतना वह सुखी रहेगा’, यह सभी ध्यान रखें ।’ – डॉ. जयंत आठवले (२८.१०.२००७))
४. कूडेका विनियोग कैसे करें ?
‘कूडा निकालनेके उपरांत उसे घरके बाहर रखे कूडेदानमें डालकर अग्निकी सहायतासे जलाएं ।
कूडा यदि तत्काल बाहर फेंकना संभव न हो तो घरके कोनेमें रखे कूडेदानमें फेंकें । कोनेमें विद्यमान इच्छाशक्तितत्त्वात्मक तरंगोंकी घनीभूत धारणामें कूडेकी कष्टदायक स्पंदनोंको एकत्र करनेकी क्षमता रहती है । इससे कूडेके कष्टदायक स्पंदन सर्वत्र नहीं फैलते ।’
– सूक्ष्म-जगतके एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, २६.१०.२००७, दोपहर ५.२०)
५. पोंछा कैसे लगाएं ?
कूडा निकालनेके उपरांत तत्काल पोंछा लगाएं ।
५ अ. पोंछा लगानेके लिए उपयोग किए जानेवाले पानीमें चुटकीभर विभूति डालें ।
विभूतिमें सात्त्विक शक्ति होती है । विभूतियुक्त जलसे पोंछा करनेसे, भूमिपर आई अनिष्ट शक्तियोंकी काली परत नष्ट होनेमें सहायता मिलती है ।
जलदेवतासे प्रार्थना
पोंछा लगानेसे पूर्व जलदेवतासे प्रार्थना करें, ‘अनिष्ट शक्तियोंके कारण भूमिपर आया काला आवरण पानीके चैतन्यद्वारा नष्ट होने दें’ ।
५ आ. नीचे झुककर दाहिने हाथसे गीले कपडेसे पोंछा लगाएं ।
झुककर दाहिने हाथसे भूमिपर पोंछा लगानेसे होनेवाली प्रक्रिया
‘झुककर दाहिने हाथसे भूमि पोंछनेपर निर्माण होनेवाली मुद्रासे मणिपूर-चक्रमें विद्यमान पंचप्राण कार्यरत स्थितिमें आते हैं । इससे देहकी तेजरूपी चेतना अल्पावधिमें कार्य करने हेतु तत्पर होती है । इस सिद्धतासे ही सूर्य नाडी जागृत होती है । दाहिने हाथसे तेजका प्रवाह पोंछेके कपडेमें संक्रमित होनेसे वह जलके आपतत्त्वके स्तरपर भूमिसे संलग्न तेजका निर्माण करती है । इसलिए भूमिपर पोंछा लगानेकी यह प्रक्रिया एक प्रकारसे भूमिपर तेजका कवच निर्माण करती है । इससे पातालसे प्रक्षेपित कष्टदायक स्पंदनोंका अवरोध होता है तथा वास्तुकी रक्षामें सहायता मिलती है ।’ – सूक्ष्म-जगतके एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, २५.१२.२००७, सायं. ७.३२)
भूमि पोंछने हेतु प्रयुक्त गीले कपडेको समय-समयपर स्वच्छ जलसे धो लें ।
भूमि पोंछनेके उपरांत उदबत्ती जलाकर घरमें निर्मित सात्त्विकता बनी रहे, इसके लिए वास्तुदेवतासे प्रार्थना करें ।
६. यंत्रकी सहायतासे भूमि पोंछनेसे संभावित हानि
वास्तु दूषित होना
‘यंत्रकी सहायतासे भूमि पोंछनेपर संलग्न घर्षणात्मक नादकी ओर पातालकी कष्टदायक तरंगें तीव्रगतिसे आकृष्ट होती हैं । ये तरंगें जलमें स्थित आपतत्त्वकी सहायतासे भूमिपर प्रसारित होती हैं । इस कारण यांत्रिक पद्धतिसे भूमि पोंछनेसे कष्टदायक तरंगोंका आवरण भूमिपर निर्माण होता है तथा भूमि इन तरंगोंको स्वयंमें घनीभूत करनेके लिए सिद्ध होती है । इससे वास्तु दूषित होती है ।
अस्थि और स्नायुरोग होना
यांत्रिक पद्धतिसे भूमि पोंछनेसे निर्माण होनेवाली कष्टदायक तरंगोंके कारण पैरमें स्नायुरोग, अस्थिरोग, अस्थिक्षय, जोडोंमें वेदना इत्यादि कष्ट हो सकते हैं ।
अनिष्ट शक्तियोंसे अधिक कष्टकी आशंका होना
यंत्रसे भूमि पोंछते हुए शरीर अधिकांशतः झुका हुआ नहीं होता, हम खडे-खडे ही भूमि स्वच्छ करते हैं । ऐसेमें शरीरकी विशिष्ट मुद्राके अभावके कारण सूर्य नाडी जागृत नहीं होती । परिणामस्वरूप यंत्रसे भूमि पोंछनेकी कृतिद्वारा निर्मित कष्टदायक तरंगोंसे देहमंडलका भी रक्षण नहीं हो पाता । इस कारण जीवको अनिष्ट शक्तियोंसे कष्ट अधिक हो सकता है । इसलिए झुककर यंत्रविरहित, अर्थात् दाहिने हाथसे भूमि पोंछना अधिक लाभदायक है ।’
– सूक्ष्म-जगतके एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, २५.१२.२००७, सायं. ७.३२)